कैंसर एक लाइलाज बीमारी है लेकिन अगर शुरूआती स्टेज में इसकी जानकारी हो जाये तो इसका इलाज संभव है। कैंसर को सही समय पर पहचानकर उसकी रोकथाम में मददगार हो सकती है थेरेपी। थेरेपी के जरिए रोगी की प्रतिरोधक क्षमता को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। जिससे यह कैंसर से लड़ने में मदद कर सकती है। आइए हम आपको कैंसर थेरेपी के प्रकार और उनके बारे में आपको जानकारी देते हैं।
डेन्ड्रिटिक सेल्स थेरेपी
इसे डैनवैक्स थेरेपी भी कहा जाता है। डेंड्रिटिक सेल थेरेपी की मदद से कैंसर के रोगी की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ायी जाती है। इस थेरेपी का इस्तेमाल अमेरिका, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में तो काफी समय पहले से शुरू हो चुका है लेकिन भारत में इस विधि को आए कुछ ही साल हुए हैं। डेनवैक्स थेरेपी एक प्रकार की इम्यूनोथेरेपी है जिसमें शरीर के रक्त में प्रवाहित होने वाली व्हाइट ब्लड सेल को कैंसर प्रतिरोधी सेल-डेन्ड्रिटिक सेल में बदला जाता है जो कैंसर से लड़ने में शरीर की सहायता करती हैं। इस थेरेपी का प्रयोग कैंसर के उपचार के दौरान होने वाली दूसरी थेरेपी, जैसे- कीमोथेरेपी या रेडियेशन थेरेपी आदि के साथ करने में किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा इसलिए इसे प्रारंभिक चरण से शुरू किया जा सकता है। डेनवैक्स थेरेपी लीवर, ब्रेन, पैनक्रियाज, ब्रेस्ट और ओवरियन कैंसर के उपचार में उपयोगी उपचार है। चूंकि इस विधि में व्हाइट डब्ल्यू सेल्स का कल्चर किया जाता है इसलिए यह केवल सॉलिड कैंसर पर ही प्रभावी है। ब्लड कैंसर के उपचार के लिए इसका प्रयोग नही किया जा सकता है।
जीन थेरेपी
जीन थेरेपी के इस्तेमाल के द्वारा कैंसर के इलाज की संभावनाओं पर वैज्ञानिकों को कुछ सफलतायें मिली हैं। जीन थेरेपी के जरिए कुछ स्वस्थ कोशिकाओं को बढ़ावा देकर शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इस थेरेपी के माध्यम से कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं को समाप्त भी किया जाता है।हाल ही में न्यूयार्क के स्लोन कैटरिंग कैंसर सेंटर के डॉक्टरों ने दावा किया कि, जीन थेरेपी के जरिए कैंसर का इलाज किया जा सकता है। इस तकनीक से शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाया जाता है।जीन्स कोशिकाओं के क्रोमोजोन में स्थित होते हैं। ये डिओक्रिबोनुक्लेइक एसिड से बने होते हैं, सामान्यताया इन्हें डीएनए कहा जाता है। यह एक प्रकार का जैवकि अणु होता है।
टार्गेट थेरेपी
इस थेरेपी को व्यक्तिगत थेरेपी भी कहा जाता है। टार्गेट थेरेपी में केवल कैंसर प्रभावित कोशिकाओं का इलाज किया जाता है। यह कैंसर के इलाज का बेहतरीन तरीका है। जबकि पारंपरिक थेरेपियों में उन सभी कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है जो तेजी से बढ़ती हैं।लेकिन टार्गेट थेरेपी में डाक्टर मरीज की कैसर कोशिकाओं की पहचान करते हैं और फिर उसे एक विशिष्ट चिकित्सा थेरेपी के जरिये नष्ट करते हैं। टार्गेट कैंसर थेरेपी कैंसर बॉयोमॉर्कर या ट्यूमर मार्कर पर आधारित है। बॉयोमॉर्कर कोशिकाओं से उत्पन्न होने वाले पदार्थ हैं, जो विभिन्न प्रकार के कैंसर की कोशिकाओं का पता लगाने, निदान और कैंसर का प्रबंधन करते हैं। टार्गेट थेरेपियों में बॉयो मार्कर के जरिये कैंसर की कोशिकाओं की पहचान कर उन्हें नष्ट किया जाता है। ब्रेस्ट कैंसर, कोलोरेक्टल कैसर, फेफड़ों के कैंसर और क्रोनिक मॉयलार्ड ल्यूकीमिया में टार्गेट थेरेपी काफी सफल रही हैं।
रेडियेशन थेरेपी
कैंसर की चिकित्सा के लिए रेडियेशन थेरेपी का प्रयोग पहले से होता आया है। रेडियेशन थेरेपी के जरिए कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोका जाता है। बाहरी और आंतरिक दो प्रकार की रेडियेशन थेरेपी होती है। हालांकि इसके साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। रेडियेशन थेरेपी से इलाज के लिए 6-7 हफ्ते लगते हैं।एक्सटर्नल बीम रेडिएशन के जरिए बाह्य विकिरण से प्रभावित क्षेत्र में मशीनों का उपयोग करते हुए रेडियो तरंगो के प्रभाव से आसपास के क्षेत्र में शेष परिरक्षण दिया जाता है।इंटर्नल रेडिएशन में विशेष कैप्सूल या रेडियोधर्मी दवा का उपयोग कर सीधे शरीर के अंदर ट्यूमर के ऊतक के पास दिया जाता है, जो धीरे-धीरे प्रभाव करती है।
कीमोथेरेपी
पिछले दशक के दौरान लंग कैंसर को बढ़ाने और फैलाने वाले कारकों को काफी हद तक समझने में सफलता प्राप्त हुई है। कोशिका द्वारा की जाने वाली बायोकेमिकल प्रतिक्रियाओं को समझते हुए वैज्ञानिकों ने ऐसी नई दवाएं विकसित की हैं जो इनमें से कुछ प्रतिक्रियाओं को रोक सकती हैं। आमतौर पर ये नई दवाएं मोलिक्यूल टार्गेटेड ट्रीटमेंन्ट्स कहलाती हैं, क्योंकि ये विशेषकर लंग कैंसर की असमान्यताओं पर हमला करके उनमें सुधार करती हैं। रोचक तथ्य यह है कि अब कुछ आनुवंशिकी जांचों की मदद से यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन से कैंसर सेल इन अनियमित रासायनिक रास्तों के मार्ग में आते हैं और ये नए उपचार किन लंग कैंसरों के प्रति प्रभावी हैं।
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