कोरोना की गंभीरता को जांचने के लिए डॉक्टर्स तमाम तरह की जांचें कराते हैं। इन जांचों के आधार पर मरीज का इलाज हो पाता है। अभी तक आपने कोरोना की जांच के लिए रैपिड एंटिजन टेस्ट या आरटीपीसीआर टेस्ट सुना होगा, लेकिन इसके अलावा कई टेस्टिंग हैं जो कोरोना मरीजों के लिए जरूरी हैं। अगर आपको घर बैठे हिंदी भाषा (List of corona tests in hindi) में यह मालूम हो जाए कि कोरोना की जांच के लिए कौन से टेस्ट किए जाते हैं तो आपको इलाज में आसानी होगी। तो वहीं, परिजनों को भी मरीज की सेवा करने में आसानी होगी। गुरुवार से घर पर कोरोना की जांच करने के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट की मंजूरी भी मिल गई है। अब आप 250 रूपए में एंटिजन किट खरीदकर घर पर ही अपनी कोरोना जांच कर सकते हैं। राजकीय हृदय रोग संस्थान, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर में कार्यरत वरिष्ठ प्रोफेसर ऑफ कार्डियोलॉजी डॉ. अवधेश शर्मा (Cardiologist Dr. Awadhesh sharma, kanpur) ने रैपिड एंटीजन के अलावा भी ओन्ली माई हेल्थ को वे जांचें भी बताईं जिनसे मरीज की गंभीरता को जांचा है और दवाएं दी जाती हैं। यहां हम आपको आसान भाषा में उन जाचों के बारे में बता रहे हैं। साथ ही यह भी बताएंगे कि कौन सा टेस्ट क्यों किया जाता है। तो आइए विस्तार से जानते हैं।
कोरोना की पुष्टि के लिए टेस्ट
डॉक्टर अवधेश शर्मा का कहना है कि अगर पेशेंट को लगातार 100 से ऊपर बुखार, सूखी खांसी, सांस फूलना या कोविड संक्रमित व्यक्ति से वह मिला हो, तो उस व्यक्ति के लक्षणों की जांच के लिए निम्न टेस्ट किए जाते हैं।
टॉप स्टोरीज़
रैपिड एंटिजन
अगर मरीज का वायरल लोड बहुत ज्यादा है तो रैपिड एंटीजन टेस्ट किया जाता है। रैपिड एंटिजन में देखा गया है कि अगर 100 लोगों को कोविड है तो ये 20 से 30 फीसद में ही ये कोविड को पकड़ पाता है। अब आइसीएमआर ने घर पर भी एंटीजन जांच की मंजूरी दे दी है।
ट्रूनेट टेस्ट
ट्रूनेट टेस्ट में 50 से 60 फीसद में कोरोना के सही परिणाम आते हैं।
आरटीपीसीआर जांच
अभी तक कोरोना का सबसे प्रभावी टेस्ट आरटीपीसीआर माना गया है। जिसमें मुंह और नाक से सैंपल लिया जाता है। जिससे कोरोना की जांच की जाती है। इस टेस्ट की सेंसटिविटी 70 से 80 फीसद होती है।
एचआरसीटी स्कैन
कोरोना के जिन मरीजों में रैपिडि एंटीजन, ट्रूनेट और आरटीपीसीर से परिणाम सही नहीं आते हैं उनका एचआरसीटी टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट से 91 फीसद परिणाम सही आते हैं।
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कोरोना पेशेंट की गंभीरता कैसे जांची जाती है?
लक्षणों के आधार पर
किसी पेशेंट को हल्का बुखार, खांसी जैसे लक्षण देखे जाते हैं तो ऐसे पेशेंट माइल्ड कैटेगरी के होते हैं। ऐसे मरीजों का ऑक्सीजन सेच्युरेशन 95 फीसद से ऊपर होता है। ऐसे पेशेंट एल1 में रखे जाते हैं। मध्यम कैटेगरी के मरीजों में 100 डिग्री से ऊपर बुखार और सांस लेने में भी दिक्कत होती है। ऐसे पेशेंट एल2 में भेजे जाते हैं। ऐसे पेशेंट में खांसी ज्यादा होगी। इनका ऑक्सीजन 90 से 94 में होगा। गंभीर कैटेगरी के मरीज सांस लेने की गति बहुत कम हो जाती है। उनका ऑक्सीजन सेच्युरेशन 90 से कम होगा। ऐसे पेशेंट अगर धीरे से भी सांस लेते हैं वह फूलने लग जाती है। ऐसे पेशेंट एल3 में रखे जाते हैं।
जांच के आधार पर
छाती का एक्सरे
छाती के एक्सरे से पता लगाया जाता है कि पेशेंट को निमोनिया है या नहीं। अगर दोनों फेफड़ों का 25 फीसद से कम हिस्सा निमोनिया से ग्रसित हुआ है तो वह पेशेंट माइल्ड ग्रेड को होगा और अगर 25 से 50 फीसद के बीच है तो वह मीडियम ग्रेड का होगा। अगर 50 फीसद से ज्यादा फेफड़े खराब हैं तो वह पेशेंट गंभीर कैटेगरी का कहलाएगा।
सीटी टेस्ट
इसमें स्कोर के माध्यम से पेशेंट की गंभीरता देखी जाती है। यह स्कोर 40 का होता है। अगर 10 से नीचे का स्कोर है तो पेशेंट माइल्ड ग्रेड का है। 10 से 20 का स्कोर है तो पेशेंट मोडरेट ग्रेट का है। 20 से ऊपर के स्कोर में गंभीर मरीजों को रखा जाता है।
खून की जांचें (blood investigation)
खून की जांचों से भी कोरोना मरीज की गंभीरता जांची जाती है। गंभीरता को देखकर ही डॉक्टर उसे उस तरह के अस्पताल में इलाज के लिए भेजते हैं।
कंप्लीट ब्लड काउंट (CBT Test)
सीबीटी में डॉक्टर देखे हैं कि सफेद रक्त कणिकाओं को देखा जाता है। अगर शरीर में कोई इंफेक्शन होता है तो न्यूट्रोफिल (Neutrophils in hindi) यानी सफेद रक्त कणिकाएं बढ़ती हैं। लिंफोासइड (lymphocytes) होते हैं जो शरीर में एंटीबॉडी बनाते हैं। अगर शरीर में इंफेक्शन होता है तो न्यूट्रोफिल बढ़ता और लिंफोसाइड घटता चला जाता है। इसको न्यूट्रोफिल लिंफोसाइड रेशियो (NLR) कहा जाता है। अगर यह रेशियो 3/2 से कम होता है तो पेशेंट माइल्ड कैटेगरी का है। अगर यह रेशियो 3/2 से ज्यादा है तो पेशेंट मोडरेट कैटेगरी का है। अगर अनुपात 5/2 है तो पेशेंट गंभीर कैटेगरी का माना जाता है।
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सी-रिएक्टिव प्रोटीन (C-reactive protein)
कोरोना की जांच के लिए रक्त की सीआरपी (CRP) यानी सी-रिएक्टिव प्रोटीन की भी जांच की जाती है। डॉक्टर का कहना है कि पेशेंट में अगर सीआरपी 20 से कम है तो वह माइल्ड, 20 से 50 है तो वह मोडरेट और 50 से ज्यादा होने पर मरीज गंभीर कहलाता है। सीआरपी इंफेक्शन के रिस्पोंस में शरीर में बढ़ता है। अगर किसी का सीआरपी 50 से ऊपर जा रहा है तो पेशेंट साइटोकाइन स्टार्म की स्टेज में जा रहा है। मरीज की स्थिति खराब होने वाली है, ऐसे में मरीज को हाई डोज स्टेरॉयड की जरूरत पड़ती है।
इंटरल्युकिन-6 (Interleukin-6)
इस जांच को IL-6 कहा जाता है। अगर यह 5 से कम है तो मरीजो को माइल्ड कैटेगरी में रखा जाता है। अगर यह 5 से 50 है तो मोडरेट ग्रेड है और 50 से ज्यादा है तो सीवियर ग्रेड माना जाता है। अगर किसी का IL-6 50 से ऊपर जा रहा है तो मरीज साइटोकाइन स्टार्म की स्टेज में होता है और उसे हाई डोज स्टेरॉयड की जरूरत होती है।
लैक्टेट डिहाइड्रोजेनेस टेस्ट (lactate dehydrogenase (LDH) test)
एलडीएच अगर किसी मरीज का 300 से कम होता है तो वह माइल्ड कैटेगरी का कहलाता है। किसी का 300 से 400 के बीच होता है तो वह मोडरेट कैटेगरी का कहलाता है। अगर किसी मरीज का एलडीएच 400 के ऊपर होता है तो सीवियर माना जाता है।
डी-डाइमर
अगर किसी मरीज का डी-डाइमर बढ़ा हुआ होता है तो ऐसे पेशेंट को हार्ट अटैक और फेफडों की नसों में थक्के जम सकते हैं जिससे उनकी अचानक मौत हो जाती है। ऐसे में खून पतला देने वाली दवाएं देना जरूरी हो जाता है।
फेरिटिन टेस्ट (Ferritin test)
फेरिटिन 500 से कम होने पर मरीज माइल्ड कैटेगरी का कहलाता है। 500 से ज्यादा पर मरीज मोडरेट और 800 से ज्यादा होने पर सीवियर ग्रेड कहलाता है।
लीवर फंक्शन टेस्ट (LFT)
अगर किसी मरीज का लीवर फंक्शन टेस्ट नॉर्मल है तो माइल्ड ग्रेड है। अगर किसी का LFT थोड़ा सा गड़बड़ है तो वह मोडरेट और ज्यादा गड़बड़ है तो वह गंभीर मरीज हो जाता है।
किस मरीज को कैसे अस्पताल की जरूरत?
तीन तरह के अस्पताल होते हैं। एल1, एल2 और एल3। मरीज की गंभीरता के अनुसा उन्हें उस अस्पताल में भेजा जाता है।
एल-1 अस्पताल
एल1 लेवल के अस्पताल में कम लक्षण वाले मरीजों को रखा जाता है। इन पेशेंट्स को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती है। ऐसे मरीजों को होम आइसोलेशन में भी रखा जाता है।
एल-2 अस्पताल
एल2 में मोडरेट डिग्री के मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत होती है। इसलिए उन्हें एल2 अस्पताल में रखा जाता है। यहां ऑक्सीजन बेड उपलब्ध होता है।
एल-3 लेवल अस्पताल
एल3 में कोरोना के गंभीर मरीजों को एल3 में रखा जाता है। इन मरीजों का ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो जाता है। इन मरीजों में ऑक्सीजन देने के बाद भी ऑक्सीजन लेवल 90 फीसद से कम रहता है। L3 अस्पतालों में आईसीयू और वेंटिलेटर उपबल्ध होता है।
क्यों की जाती हैं इतनी जांचें?
जब मरीज अस्पताल में भर्ती होता है तो यह पहले दिन से ही शुरू हो जाती हैं। फिर 72 घंटे बाद कराते हैं। फिर यह जांचें 5 दिन बाद होती हैं फिर एक हफ्ते बाद होती हैं। डॉक्टर्स देखते हैं कि इन्वेस्टिगेशन का लेवल घट रहा है तो इसका मतलब है कि पेशेंट के ठीक होने की संभावना ज्यादा है। ऐसे में डॉक्टर मरीज के परिजन को बता देते हैं कि आपके पेशेंट की कंडीशन अभी कैसी है। इन जांचों के आधार पर डॉक्टर तय करते हैं कि किस पेशेंट को हाई डोज स्टेरॉयड की जरूरत है। किस पेशेंट को किस तरह की दवा की जरूरत है।
कोरोना की यह सभी जांचें जरूरी हैं। जब यह जांचें होती हैं तभी पेशेंट की गंभीरत मालूम हो पाती है और पेशेंट को सही इलाज मिल पाता है। इन सभी जांचों की जानकारी हम सभी के लिए जरूरी है। ताकि मरीज को जानकारी रहे और वह पैनिक में न जाए।
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