पोलियो बहुत ही संक्रामक रोग है जो कि पोलियो विषाणु से छोटे बच्चों मे होता है। जिस अंग में यह बीमारी होती है वह काम करना बंद कर देता है। यह एक लाइलाज बीमारी है।
पोलियो की गंभीरता इसके लक्षणों पर आधारित रहती है:
स्पर्शोन्मुख : ज्यादातर लोग (लगभग (90% लोग , जो पोलियो वायरस से संक्रमित रहते हैं वे स्पर्शोन्मुख या बीमार नहीं रहते। अध्ययन के अनुसार स्पर्शोन्मुख बीमारी और लकवे की बीमारी के बीच का अनुपात 50-1000:1 होता है (सामान्य 200:1 होता है)
मामूली, गैर विशिष्ट: लगभग 4% से 8% लोगों को मामूली या गैर विशिष्ट बीमारी होती है। इसके लक्षण अन्य वायरल बीमारियों से अप्रभेद्य हो सकते हैं
जिनका वर्गीकरण निम्न रूप में किया जा सकता है:
- ऊपरी श्वास पथ में संक्रमण: इस प्रकार के मामले में रोगी के गले में ख़राश और बुखार हो सकता है।
- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण : इस समस्या में मिचली, उल्टी, पेट दर्द और कभी कभी कब्ज या दस्त के लक्षण दिख सकते हैं।
- फ्लू जैसी बीमारी हो सकती है।
निम्न प्रकार के रोगी आमतौर पर एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं आर ऐसे लोगों का केंद्रीय तंत्रिका तंत्र प्रभावित या संक्रमित होने से बच जाता है।
एसेप्टिक मेनिन्गितिस जो लकवाग्रस्त नहीं हैं: : लगभग 1 से 2% रोगियों बिना लकवा के एसेप्टिक मेनिन्गितिस से ग्रस्त होते हैं। मरीज को शुरू में गैर विशिष्ट प्रोड्रोम हो सकता है उसके बाद गर्दन, पीठ या पैरों में जकड़न हो सकता है। ये सब लक्षण 2 से 10 दिनों तक रह सकते हैं उसके बाद मरीज को पूरी तरह आराम मिल जाता है।
झूलता हुआ पक्षाघात: पोलियो संक्रमण के रोगियों में से सिर्फ 1% हीं फ्लेसीड पक्षाघात के शिकार होते हैं। शुरुआत में मरीज को गैर विशिष्ट प्रोड्रोमल लक्षण हो सकते हैं जिनके बाद पक्षाघात के लक्षण उभरने लगते हैं। पक्षाघात आम तौर पर 2 से अधिक 3 दिनों तक प्रगति करता जाता है और एक बार बुखार नियंत्रित हो जाने पर वह स्थिर हो जाता है। पक्षाघात पोलियो के साथ रोगियों में;
टॉप स्टोरीज़
- पारालाईटिक पोलिओ के लगभग 50% रोगी पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं और फिर उनमें किसी भी तरह का अवशिष्ट लकवा का अंश नहीं रह जाता।
- लगभग 25% रोगियों में हल्के रूप का स्थायी पक्षाघात और विकलांगता हो सकता है।
- और लगभग 25% रोगियों को गंभीर रूप से स्थायी विकलांगता और पक्षाघात हो सकता है।
झोले के मारे पोलियो से ग्रस्त बच्चों की मृत्यु की दर 2% से 5% के बीच में रहती है। वयस्कों में मृत्यु दर बहुत अधिक रहती है जो 15% से 30% तक जा सकती है
भारतीय बोझ
ज्यादा दिन पहले की बात नहीं है, 1998 को हीं ले लीजिये; उस समय तक दुनिया भर में 125 से भी ज्यादा देश पोलियो के लिए स्थानिकमारी वाले देश थे यानि वहां पोलिओ के मरीज पाए जाते थे। इस अवधि में 1000 से भी अधिक बच्चे रोजाना पक्षाघात के शिकार होते रहते थे। लेकिन उसके बाद व्यापक रूप से पोलियो उन्मूलन का कार्य चलता रहा जिसकी वजह से लगभग 100 से भी अधिक देशों में पोलिओ के संचरण को बाधित कर दिया गया यानि कि इसके फैलने पर नियंत्रण पा लिया गया। 2004 के मध्य से केवल छह देशों में हीं जंगली पोलिओ रह गया। वे छह देश हैं: नाइजीरिया, पाकिस्तान, भारत, नाइजर, अफगानिस्तान और मिस्र।
- हालांकि भारत से पोलियो उन्मूलन के कई उपाय किये गए हैं फिर भी यह कई जगह विराजमान है। भारत में पोलियो के ज्यादातर मामले उत्तर प्रदेश और बिहार में पाए जाते हैं।
- अक्टूबर 2009 तक उत्तर प्रदेश और बिहार से पोलिओ के 464 मामले प्रकाश में आये थे। उत्तर प्रदेश के 80% मामले पश्चिमी भाग के 10 जिलों पाए गए थे और बिहार के कोसी नदी के पास वाले क्षेत्रों में से ( 6 जिलों में से) 85% मामले पाए गए थे।
- वर्तमान में भारत में पोलियो के सबसे ज्यादा कारण टाइप 1 और टाइप 3 वायरस के कारण होते हैं। । 2009 में, पोलियो के ज्यादातर मामले (66 प्रतिशत पोलिओ के मामले ) दो साल से कम उम्र के बच्चों में पाए गए।
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