शरीर के लगभग सभी अंगों पर सूर्य नमस्कार अच्छा प्रभाव डालता है। सूर्य नमस्कार के कई लाभ हैं। यदि आप इससे अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं तो विभिन्न रोगों से दूरी बनाए रखते हुए जिंदगी का भरपूर आनंद ले सकते हैं। सूर्य नमस्कार को 5 से 10 मिनट तक करना काफी है। सूर्य के सामने किया जाए, तो और बेहतर। यदि सूर्य नमस्कार रोजाना पांच से बारह बार तक कर लिया जाए तो कोई और आसन करने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
जानें, कैसे करते हैं सूर्य नमस्कार
- खड़े होकर, एड़ियां मिला लें। पंजों को खुला रहने दें। दोनों हाथों को जांघों के साथ सीधा रखें। फिर, नमस्कार की मुद्रा बनाएं। कोहनियां शरीर के साथ, हथेलियां थोड़ी तिरछी और अंगूठे हृदय के नीचे डायफ्राम पर। ध्यान आज्ञा चक्र (दोनों भौंहों के बीच) पर हो।
- दोनों हाथ सिर के ऊपर ले जाएं और सांस भर कर इन्हें तानें। भुजाएं कानों से सटी, हथेलियां सामने की ओर हों। अब हाथों को इस प्रकार गर्दन के पीछे ले जाएं कि भुजाएं कानों के साथ ही लगी रहें। इस स्थिति में कुछ देर रुकें। ध्यान विशुद्धि चक्र (गला) पर हो।
- हाथों को वापस ऊपर लाते हुए, सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की ओर झुकें। हाथों को दाएं-बाएं ले जाएं। हथेलियां धरती के साथ लगाएं, लेकिन घुटने बिल्कुल सीधे रखें। सिर को घुटने से लगाएं। ध्यान मणिपुर चक्र (नाभि) पर हो।
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- सांस भरते हुए दाहिना पैर पीछे ले जाएं। घुटना बिल्कुल सीधा और जमीन से ऊपर रहे। बाएं पैर के घुटने को छाती के साथ लगाएं कि पंजे से घुटने तक का हिस्सा 90 डिग्री पर रहे। ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र (पेड़ू) पर हो।
- बायां पैर भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियों को जमीन से सटने दें और कमर को ऊपर उठाएं। सिर नीचे की ओर रहे,ठोड़ी को कंठ से लगाएं और इस स्थिति में कुछ पल रहें। ध्यान सहस्त्रार चक्र (चोटी) पर हो।
- शरीर को धरती के समानांतर ले आएं। पूरा दबाव पंजों और हथेलियों पर हो। अब घुटने और माथे को जमीन से सटने दें। नाभि धरती से कुछ इंच ऊपर और कोहनियां खड़ी रहें। इस अवस्था में कुछ पल रुकें। ध्यान अनाहत चक्र(हृदय) पर हो।
- शरीर को थोड़ा आगे सरकाते हुए, सांस भरकर हाथ सीधा करें और गर्दन पीछे की ओर ले जाएं। पंजों को मिलाकर रखें और एड़ियां ऊपर की तरफ हों। कमर नीचे झुकाकर रखें।
- सांस छोड़ते हुए शरीर को वापस ऊपर की तरफ उठाएं और एड़ियों को जमीन से सटने दें। सिर नीचे की ओर रहे और कमर का हिस्सा ऊपर की तरफ (यानी पुन: पांचवी स्थिति जैसी) रहे। इस स्थिति में जितनी देर हो सके, रुकें।
- चौथी स्थिति की तरह, सांस भरते हुए दाहिना पैर आगे दोनों हाथों के बीच ले आएं। गर्दन पीछे, कमर नीचे। इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें।
- तीसरी स्थिति की तरह,सांस छोड़ते हुए बायां पैर आगे ले आएं। घुटने सीधे, हथेलियां जमीन पर और माथे को घुटने से सटाएं। यथाशक्ति रुकें।
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- दूसरी स्थिति की तरह, सांस भरकर हाथ तानते हुए ऊपर की ओर ले जाएं। गर्दन भी पीछे की ओर। कुछ पल रुकें।
- वापस पहली स्थिति में आएं। नमस्कार की मुद्रा। हाथ नीचे रहें।
क्या हैं इसके लाभ
- सूर्य नमस्कार के दौरान कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ने से संपूर्ण आरोग्य, ऊर्जा और शक्ति की प्राप्ति होती है।
- शरीर में पानी की मात्रा संतुलित रहती है और अनावश्यक तत्व तेजी से बाहर निकलते हैं।
- रक्त शोधन की प्रक्रिया तेज होती है और मोटापा तेजी से घटता है।
- सभी ग्रंथियों का हार्मोन स्राव नियंत्रित होता है। शायटिका नाड़ी सहज स्थिति में आ जाती है।
- भूख अच्छी लगती है और स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
- सिर के बाल स्वस्थ और मजबूत होते हैं।
- मुखमंडल की आभा बढ़ती है।
सावधानियां
सूर्य नमस्कार को सूर्योदय के समय करना उत्तम माना जाता है। धीमी गति से यह आसन करें। केवल उन लोगों को सूर्य नमस्कार तेजी से करना चाहिए, जो मोटापा घटाना चाहते हैं। प्रत्येक चरण के अंत में सांस सहज होने के बाद ही अगले चरण की ओर बढ़ें। कोमल और अधिक गद्देदार मैट या बिस्तर पर यह आसन न करें ताकि रीढ़ की वर्टिब्रा सुरक्षित रहे। स्लिप डिस्क और हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए सूर्य नमस्कार वर्जित है।
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