नींद की कमी या नींद में गड़बड़ी आपको कई स्वास्थ्य जोखिमों में डाल सकती है। नींद में कमी या गड़बड़ी आपको सुस्त बनाने के साथ-साथ हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी बीमारियों के खतरे को भी बढ़ती है। जी हां, ऐसा हम नहीं, ये हालिया अध्ययन कहता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि स्ट्रोक सर्वाइवर में नींद में गड़बड़ी, उन्हें दोबारा यानि एक और स्ट्रोक या गंभीर कार्डियो या फिर सेरेब्रोवास्कुलर होने की संभावना को बढ़ाती है। सेरेब्रोवास्कुलर रोग बीमारियों, स्थितियों और विकारों का एक ऐसा समूह है, जो रक्त वाहिकाओं और मानव मस्तिष्क में रक्त प्रवाह की आपूर्ति को प्रभावित करता है। इसलिए एक स्वस्थ और लंबा जीवन जीने के लिए व्यक्ति को र्प्याप्त नींद लेनी चाहिए। आइए यहां आगे जानिए कि ये नई रिसर्च क्या कहती है।
क्या कहती है ये नई रिसर्च?
इसे यूरोपीय एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी (ईएएन) वर्चुअल कांग्रेस में प्रस्तुत, हाल में हुई इस रिसर्च को स्विट्जरलैंड में प्रोफेसर क्लाउडियो बाससेट्टी और उनकी शोध टीम द्वारा किया गया। इस नए अध्ययन में पाया गया कि नींद में खलल पैदा करने वाली कई गड़बड़ी जैसे कि स्लीप डिसऑर्डर ब्रीदिंग, अत्यधिक लंबी या छोटी नींद की अवधि, अनिद्रा और बेचैनी या फिर रेस्टलेस लेग सिंड्रोम से स्वतंत्र और महत्वपूर्ण रूप से जोखिम बढ़ गया है। जिसमें एक स्ट्रोक के बाद दो वर्षों में नई कार्डियो-सेरेब्रोवास्कुलर की घटना शामिल है।
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नींद में गड़बड़ी और स्ट्रोक
अक्सर स्ट्रोक के रोगी अनिद्रा या नींद में गड़बड़ी महसूस करते हैं, जो कि खराब स्ट्रोक रिकवरी से जुड़ा है। लेकिन अध्ययन के शोधकर्ताओं का मानना है कि स्ट्रोक सर्वाइवरों में नींद के पैटर्न का आकलन और सुधार उनके दीर्घकालिक परिणामों में सुधार कर सकता है।
बर्न यूनिवर्सिटी, स्विटज़रलैंड से डॉ. मार्टिज़न डेकर्स और डॉ. सिमोन ड्यूस ने अध्ययन प्रस्तुत करते हुए कहा, “हम जानते हैं कि जिन लोगों को स्ट्रोक हुआ है, वे अक्सर स्लीप डिसऑर्डर यानि नींद में गड़बड़ी का अनुभव करते हैं और ये बदतर स्ट्रोक रिकवरी परिणामों से जुड़ा होता है। हम इस अध्ययन से सीखना चाहते थे कि क्या नींद में गड़बड़ी, विशेष रूप से, स्ट्रोक के बाद खराब परिणामों से जुड़ी है।”
कैसे किया गया अध्ययन?
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 21 से 86 वर्ष की आयु के 438 प्रतिभागियों को शामिल किया था, जो एक इस्केमिक स्ट्रोक (मस्तिष्क में जाने वाले रक्त वाहिकाओं में रुकावट के कारण) या एक इस्केमिक अटैक (छोटे रुकावट के साथ एक मिनी स्ट्रोक) से बच गए थे। स्ट्रोक के बाद दो साल के भीतर मरीज़ों को नींद की कमी, अनिद्रा, नींद न आना, रेस्टलेस लेग सिंड्रोम इत्यादि जैसे विकारों का सामना करना पड़ा। ये कार्डियो-सेरेब्रोवास्कुलर मुद्दे स्ट्रोक से बचे लोगों में दर्ज किए गए थे, जो नींद में गड़बड़ी या स्लीप डिसऑर्डर से निपटते पाए गए।
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अध्ययन के शोधकर्ता डॉ. मार्टिज़न डेकर्स ने कहा, "स्ट्रोक के बाद पहले 3 महीनों के दौरान हमने जो नींद से संबंधित जानकारी एकत्र की थी, उसका उपयोग करते हुए, हमने प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक 'स्लीप बर्डन इंडेक्स' की गणना की, जो नींद की गड़बड़ी की उपस्थिति और गंभीरता को दर्शाता है।"
डेकर्स ने कहा, "हमने तब मूल्यांकन किया कि स्लीप बर्डन इंडेक्स का उपयोग यह अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है कि दो साल के दौरान एक और कार्डियो-सेरेब्रोवास्कुलर घटना होगी, जो उनके स्ट्रोक के बाद हमने उनका फॉलोअप किया था।"
उन्होंने कहा, स्ट्रोक रोगियों में कार्डियो-सेरेब्रोवास्कुलर घटनाओं को रोकने के लिए इन मुद्दों का समय पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, स्ट्रोक के जोखिम से बचने के लिए स्ट्रोक सर्वाइवरों के लिए नींद का विनियमन या स्लीप साइकिल में सुधार करना बहुत महत्वपूर्ण है।
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