छोटी आंत के ऊपरी हिस्से व ग्रास नली के निचले भाग में अधिक मात्रा में अम्ल का स्राव होने से या सुरक्षा आवरण के नष्ट होने से वहां जख्म हो जाते हैं । ऐसे में उपचार में देरी हो जाने पर रोगी के अन्दरूनी जख्मो में खून निकलने लगता है। जो मल द्वारा या उल्टी द्वारा बाहर आता है। ऐसी अवस्था में रोगी की स्थित बिगड़ने लगती है। इसका दूसरा कारण अमीबा बैक्टीरिया का होना भी है। इसकी वजह से भी लिवर में फोड़ा बन सकता है और पेट दर्द बना रहता है।अपने रहन-सहन व खान-पान के तरीकों में बदलाव लाकर हम इस रोग पर नियंत्रण रख सकते हैं। इसके लक्षणों के बारे मे पढ़े।
बैक्टीरियल ओवरग्रोथ के लक्षण
इस प्रकार के रोगियों में सीने व पेट के मिलन स्थल पर ‘जलन के साथ दर्द’ होता है जो कंधों, पीठ और हाथ तक फैल जाता है। यदि घाव पेट यानी आमाशय में है तो दर्द भोजन के आधे से डेढ़ घंटे के भीतर शुरू हो जाता है और यदि घाव ‘छोटी आंत’ में है तो दर्द भोजन के 3 या 4 घंटे बाद होता है। इस रोग का दर्द ज्यादातर मध्यरात्रि में होता है जिस से व्यक्ति की नींद उचट जाती है, क्योंकि उस समय पेट में भोजन न होने से वह खाली होता है जिस से अम्ल के विध्वंस को रोकने वाला कोई नहीं होता। जब पेट में अम्ल अधिक मात्रा में बनता है तो दबाव बढ़ने से कई बार यह अम्ल छाती के बीचोंबीच भोजन नली को भी क्षति पहुंचाते हुए मुंह के रास्ते भी बाहर निकलता है।छोटी आंत में सूजन होने के कारण मल के साथ खून का आना, मल का रंग गहरा काला होना , पेट मे दर्द, ऐंठन, एनीमिया, वजन घटना, दस्त जैसे लक्षण दिखने लगते है। ये लक्षण ज्यादा या कम हो सकते है। पर इन्हे नजरदांज नहीं किया जा सकता ।
व्यायाम से करे इसका इलाज
पीठ के बल लेटकर दोनों हाथों को सिर के पीछे बांध लें। पैरों को जमीन से लगा रहने दें और सीधे रखें। केवल ऊपरी धड़ को उठाएं। वापस पहली अवस्था में आ जाएं। थोड़े आराम के बाद इसी तरह दस-पन्द्रह बार करें। इस कसरत में जानने योग्य बात यह है कि धड़ उठाते समय उसकी मांसपेशियों पर अधिक जोर डालने में हाथ की स्थिति का बहुत बड़ा सहयोग रहता है। धड़ को उठाने के लिए हाथों को ऊपर सीधे तान कर रखें और धड़ को उठाने के साथ-साथ हाथों को सामने की ओर ले जाएं।
अल्कोहल और मांस का सेवन बंद कर दें। तनावों से दूर रहकर अपनी दिनचर्या में अधिक सुधार कर पेट के दर्द और पेट कई रोगों से बचा जा सकता है।
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