
Second Trimester Screening Tests - प्रेगनेंसी में महिलाओं को अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ ही खुद की सेहत पर भी पूरा ध्यान देना होता है। इस समय महिलाओं के दैनिक कार्यों का सीधा प्रभाव उनके बच्चे पर पड़ता है। इस दौरान बच्चे को हर तरह के संभावित खतरों से बचाने के लिए महिला को समय समय पर डॉक्टर की सलाह से महत्वपूर्ण टेस्ट कराने चाहिए। इससे उनके बच्चे के विकास के साथ ही कई महत्वपूर्ण बातों का पता चलता है। प्रेगनेंसी के हर माह में महिला को डॉक्टरी जांच अवश्य करानी चाहिए। इससे संभावित खतरों का समय रहते पता लगाकर उनका सही समय पर इलाज शुरू किया जा सकता है। इससे बच्चे को जन्म के समय होने वाली कई समस्याओं से बचाया जा सकता है। आगे जानते हैं प्रेगनेंसी की दूसरी तिमाही में महिलाओं को क्या टेस्ट कराने चााहिए?
दूसरी तिमाही में किये जाने वाले टेस्ट - Second Trimester Screening
दूसरी तिमाही में बच्चे के विकास के लिए कुछ जरूरी टेस्ट किये जाते हैं। इसमें डॉक्टर महिलाओं के पेशाब में प्रोटीन, शुगर और संक्रमण के संकेतों की जांच करते हैं। इस समय डॉक्टर आपको सर्वाइकल टेस्ट (पैप स्मीयर) की भी सलाह दे सकते हैं। यह जांच से महिलाओं गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) की कोशिकाओं में परिवर्तन का पता लगाया जाता है। पेल्विक की जांच के दौरान डॉक्टर क्लैमाइडिया और गोनोरिया जैसे यौन संचारित रोगों (एसटीडी) की भी जांच करते हैं।
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दूसरी तिमाही में ब्लड टेस्ट से किन बातों का पता लगाया जा सकता है?
महिलाओं के रक्त के प्रकार और आरएच कारक का पता लगाया जाता है। यदि महिलाओं का रक्त आरएच निगेटिव है और उनके पति का आरएच पॉजिटिव है, तो आप एंटीबॉडी विकसित कर सकते हैं। जो आपके भ्रूण के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। प्रेगनेंसी के 28वें सप्ताह में इंजेक्शन देने से इसे समस्या को रोका जा सकता है।
- रक्त की कमी व खून में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या का पता होना,
- हेपेटाइटिस बी व एचआईवी का पता लगाना,
- रूबेला और चिकनपॉक्स में प्रति प्रतिरोधकता
- स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (Spinal muscular astrophy)।
यदि महिला या पति को कोई पारिवारिक बीमारी हो तो ऐसे में डॉक्टर गर्भवती महिला को नियमित जांच की सलाह देते हैं।
दूसरी तिमाही में किये जाने वाले अन्य टेस्ट
प्रेगनेंसी में दूसरी तिमाही के दौरान महिला की उम्र, स्वास्थ्य, पारिवारिक मेडिकल स्थिति और अन्य चीजों के आधार पर अन्य जांच की सलाद दी जाती है। इस समय होने वाले अन्य टेस्ट को आगे बताया गया है।
मल्टीपल मार्कर टेस्ट/एएफपी4 स्क्रीन/क्वाड स्क्रीन
प्रेगनेंसी के 15 से 20वें सप्ताह में न्यूरल ट्यूब दोष (जैसे स्पाइना बिफिडा) और क्रोमोसोमल डिसऑर्डर (जैसे डाउन सिंड्रोम और ट्राइसॉमी 18) के लिए खून की जांच की जा सकती है। इसके परिणामों की सटिकता के लिए इन्हें पहली तिमाही के परिणामों के साथ मिलाकर देखा जाता है।
अल्ट्रासाउंड
प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड ध्वनि तरंगों के इस्तेमाल से गर्भ में पल रहे बच्चे का चित्र बनाता है। अल्ट्रासाउंड से बच्चे का आकार व गर्भाशय की मौजूदा स्थिति को दर्शाता है। प्रेगनेंसी के 18 से 20 सप्ताह में अल्ट्रासाउंड से बच्चे के विकास के लिए जोखिम कारकों का पता लगाया जाता है।
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एमनियोसेंटेसिस
इस टेस्ट में गर्भवती महिला के एमनियोटिक द्रव का सैंपल लिया जाता है, जो बच्चे के क्रोमोसोमल विकार, आनुवांशिक समस्याओं और न्यूरल ट्यूब दोष जैसी समस्याओं के संकेतों को बताता है। ये टेस्ट प्रेगनेंसी के 15वें से 20 सप्ताह में किया जाता है।
ग्लूकोज की जांच करना
ये टेस्ट 24 से 28 में किया जाता है। लेकिन इस टेस्ट को पहले भी किया जा सकता है। गर्भावस्था में कुछ महिलाओं को डायबिटीज होने का जोखिम बना रहता है। ये समस्याएं गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती है।