First Trimester Screening Tests - प्रेगनेंसी में महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। इस समय महिलाओं को बेहद सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को अक्सर इस समय बच्चे के सही विकास को लेकर डर व चिंता सताने लगती है। लेकिन डॉक्टर के सही सुझाव व सलाह से महिलाएं अपने मन के डर को कम कर सकती हैं। प्रेगनेंसी की हर तिमाही में बच्चे के विकास को लेकर डॉक्टर कुछ टेस्ट करते हैं। जिससे वह जानते हैं कि गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास सही तरह से हो रहा है या नहीं? इसके अलाव इन टेस्ट की मदद से डॉक्टर को बच्चे को होने वाले संभावित परेशानियों के बारे में भी पहले से ही पता चल जाता है। यदि टेस्ट की मदद से सही समय पर इलाज शुरू किया जाए तो बच्चे को जन्म से होने वाले कई विकारों से बचाया जा सकता है। आगे जानते हैं प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में महिलाओं को क्या टेस्ट कराने चााहिए?
पहली तिमाही में किये जाने वाले टेस्ट - First Trimester Screening
पहली तिमाही में बच्चे के विकास के लिए जरूरी टेस्ट करने की सलाह दी जाती है। इसमें डॉक्टर प्रेगनेंसी के पहले तिमाही के दौरान, 1 से 12 या 13 सप्ताह के दौरान किया जाता है। यह टेस्ट बच्चे के बर्थ डिफेक्ट को पता लगाने के लिए किये जाते हैं। इसमें क्रोमोसोम डिफेक्ट जैसे डाउन सिंड्रोम (ट्राइसॉमी 21), (Edwards Syndrome) ट्राइसॉमी 18 व ट्राइसॉमी 13 को शामिल किया जाता है।
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पहली तिमाही में होने वाले टेस्ट
ब्लड टेस्ट
यह ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) और गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन-ए (पीएपीपी-ए) की जांच करने के लिए किया जाता ब्लड टेस्ट किया जाता है।
अल्ट्रासाउंड
अल्ट्रासाउंड टेस्ट महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण की गर्दन के पीछे स्थित टिशू की जांच करने के लिए किया जाता है। इसे न्युकल ट्रांसलूसेंसी (nuchal translucency) कहा जाता है। इसके अलावा महिला की पेल्विक स्कैनिंग भी की जाती है।
प्रेगनेंट महिला का ब्लड टेस्ट व अल्ट्रासाउंड दोनों के रिजल्ट से डॉक्टर भ्रूण के क्रोमोसोमल की असामान्यता का पता लगा सकते हैं। इसे परिवार को प्रेगनेंसी को जारी रखने से संबंधित कई तरह के निर्णय लेने में मदद मिलती है।
प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में टेस्ट क्यों किये जाते हैं?
पहली तिमाही के टेस्ट से बच्चे में डाउन सिंड्रोम व एडवर्ड सिंड्रोम के लक्षणों को पता लगाया जा सकता है। डाउन सिंड्रोम बच्चों में एक विशेष तरह की बीमारी होती है जो उनके आने वाले भविष्य को भी प्रभावित करती है। वहीं एडवर्ड्स सिंड्रोम शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है और यह 1 वर्ष की आयु तक घातक हो जाता है। पहली तिमाही के टेस्ट में स्पाइना बिफिडा (Spina Bifida) जैसे न्यूरल ट्यूब विकारों का पता नहीं चलता है।
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- इन टेस्ट से परिवार को प्रेगनेंसी में होने वाले विकारों का पता चल पाता है और उन्हें प्रेगनेंसी को जारी रखने के निर्णय को लेने में आसानी होती है।
- कुछ मामले ऐसे होते हैं, जहां प्रेगनेंट महिला को पहली तिमाही में टेस्ट कराना महत्वपूर्ण होता है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण बातों को आगे बताया गया है।
- यदि बच्चे के अभिभावकों के परिवार में किसी को पहले कोई रोग हो (Medical Family history)
- माता या पिता में से किसी को आनुवांशिक विकार होना।
- महिला की आयु 35 साल या उससे अधिक होना। प्रेगनेंसी में अधिक उम्र की महिला को डाउन सिंड्रोम या एडवर्ड्स सिंड्रोम जैसे क्रोमोसोमल डिसऑर्डर होने का अधिक खतरा माना जाता है।
- अन्य कारणों की वजह से मिसकैरेज होना।
प्रेगनेंसी में महिलाओं को अपना और बच्चे की मेडिकल स्थिति की जांच समय समय पर कराते रहना चाहिए। इससे किसी तरह की संभावित समस्या का समय रहते ही पता लग जाता है और उसका इलाज ठीक समय से शुरु हो जाता है।