भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) कोरोनावायरस को लेकर नए-नए शोध जारी करता रहता है। बता दें कि फिर से एक नया खुलासा सामने आया है। आईसीएमआर के डीजी यानी महानिदेशक बलराम भार्गव का कहना है कि कोरोनावायरस के लिए प्लाज्मा थेरेपी को नेशनल डायग्नोस्टिक प्रोटोकॉल से हटाने की बात चल रही है। उन्होंने ये भी बताया कि कोविड-19 के लिए जो गाइडलाइंस जारी की थी उन्हें लेकर हमने राष्ट्रीय कार्यबल के साथ बातचीत की है। सिर्फ इतना ही नहीं इसके लिए हम संयुक्त निगरानी समिति के साथ भी चर्चा कर रहे हैं। राष्ट्रीय दिशानिर्देशों से प्लाज्मा थेरेपी पर विचार कर जल्दी किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं।
दीक्षांत प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता पर किया गया अध्ययन
इस बात का खुलासा कई अध्ययनों को ध्यान में रखकर किया गया है। ये अध्ययन दीक्षांत प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता पर किए गए हैं। इनके अनुसार प्लाज्मा थेरेपी ने महामारी की स्थिति में मृत्युदर को कम नहीं किया है। इसके लिए सितंबर में एक अध्ययन का परिणाम भी सामने आया। ये आईसीएमआर द्वारा किया गया था। इसमें पता कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 के गंभीर मरीजों की जान नहीं बचा पाई।
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464 मरीजों पर किया गया अध्ययन
बता दें कि इसके लिए एक बड़े परीक्षण का रिजल्ट सामने आया है। ये परीक्षण अपने देश भारत ने किया। इनका मकसद प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावकारिता का अध्ययन करना था। इसका नाम प्लेसिड परीक्षण नाम रखा गया। यह दुनिया का सबसे बड़ा रैंडोमाइज्ड कंट्रोल परीक्षण के रूप में देखा गया है। ध्यान दें कि 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच देशभर के 39 केंद्रों पर ये टेस्ट किया गया है। इस टेस्ट में 464 मरीजों ने भाग लिया। जब एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के बारे में चर्चा की गई तो पता चला कि प्लाज्मा थेरेपी कोरोना के मरीजों को ठीक करने में नाकामयाब रही।
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जानें प्लाज्मा थेरेपी के बारे में
बता दें कि प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना वायरस से लड़ने के रूप में देखा जा रहा था। वैज्ञानिकों के अनुसार, जो लोग इस संक्रमण से ठीक हो चुके हैं वे कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बना सकते हैं। बता दें कि ऐसे लोग तीन हफ्तों बाद प्लाज्मा के रूप में उस क्षमता को किसी संक्रमित व्यक्ति को दे सकते हैं।ध्यान दें कि मरीज 400 मिलीलीटर प्लाज्मा दे सकता है।
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