हमारे देश में बड़ी उम्र के लोगों के बीच अर्थराइटिस एक आम बीमारी है। 50 साल से अधिक उम्र के लोग यह मान कर चलते हैं कि अब तो यह होना ही था। खासतौर से महिलाएं तो इसे लगभग सुनिश्चित मानती हैं। अर्थराइटिस का मतलब है जोड़ में जलन। यह शरीर के किसी एक जोड़ में भी हो सकता है और ज्यादा जोड़ों में भी। इस भयावह दर्द को बर्दाश्त करना इतना कठिन होता है कि रोगी का उठना-बैठना तक दुश्वार हो जाता है।
अर्थराइटिस मुख्यत: दो तरह का होता है - ऑस्टियो और रयूमेटायड अर्थराइटिस। दोनों का मुख्य कारण यूरिक एसिड का बढ़ना होता है। इसमें मरी़ज की हालत इतनी बिगड़ जाती है कि उसके लिए हाथ-पैर हिलाना भी मुश्किल हो जाता है। रयूमेटायड अर्थराइटिस में तो यह दर्द उंगलियों, कलाइयों, पैरों, टखनों, कूल्हों और कंधों तक को नहीं छोड़ता है। यह बीमारी आमतौर पर 40 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है। खासतौर से महिलाएं इसकी ज्यादा शिकार होती हैं।
घट जाती है कार्यक्षमता
अर्थराइटिस के मरी़ज की कार्यक्षमता तो घट ही जाती है, उसका जीना ही लगभग दूभर हो जाता है। अकसर वह मोटापे का भी शिकार हो जाता है, क्योंकि चलने-फिरने से मजबूर होने के कारण अपने रो़जमर्रा के कार्यो को निपटाने के लिए भी दूसरे लोगों पर निर्भर हो जाता है। अधिकतर एक जगह पड़े रहने के कारण उसका मोटापा भी बढ़ता जाता है, जो कई और बीमारियों का भी कारण बन सकता है।
बाहरी कारणों से नहीं होती समस्या
कई अन्य रोगों की तरह अर्थराइटिस के लिए कोई इंफेक्शन या कोई और बाहरी कारण जि़म्मेदार नहीं होते हैं। इसके लिए जि़म्मेदार होता है खानपान का असंतुलन, जिससे शरीर में यूरिक एसिड बढ़ता है। जब भी हम कोई ची़ज खाते या पीते हैं तो उसमें मौजूद एसिड का कुछ अंश शरीर में रह जाता है। खानपान और दिनचर्या नियमित तथा संतुलित न हो तो वह धीरे-धीरे इकट्ठा होता रहता है। लेकिन जब किसी वजह से अतिरिक्त एसिड शरीर में छूटने लगता है तो यह जोड़ों के बीच हड्डियों या पेशियों पर जमा होने लगता है। यही बाद में अर्थराइटिस के रूप में सामने आता है।
शोध के अनुसार
शोध के अनुसार 80 से भी ज्यादा बीमारियां अर्थराइटिस के लक्षण पैदा कर सकती हैं। इनमें रयूमेटायड ऑर्थराइटिस, ऑस्टियो अर्थराइटिस, गठिया, टीबी और दूसरे इंफेक्शन आदि शामिल है। इसके अलावा अर्थराइटिस से पीडि़त व्यक्ति को रयूमेटायड अर्थराइटिस, गठिया कमर दर्द की शिकायत हो सकती है। इनमें कई बार जोड़ों के बीच एसिड क्रिस्टल जमा होने लगते हैं। तब चलने-फिरने में चुभन और टीस होती है।
खानपान में बदलाव
इस समस्या से निपटने का एक ही उपाय है, उचित समय पर उचित खानपान। इनकी बदौलत एसिड क्रिस्टल डिपॉ़जि़ट को गलाने और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसलिए बेहतर होगा कि दूसरी ची़जों पर ध्यान देने के बजाय खानपान की उचित आदतों पर ध्यान दिया जाए, ताकि यह नौबत ही न आए, फिर भी अर्थराइटिस हो गया हो तो ऐसी जीवन शैली अपनाएं जो शरीर से टॉक्सिक एसिड के अवयवों को खत्म कर दे। इसके लिए यह करें-
- एसिड फ्री भोजन करें और शरीर में एसिड को जमने से रोकें।
- शरीर से एसिड का सफाया करने वाले जरूरी पोषक तत्वों को शरीर में रोकने की कोशिश करें, जिससे एसिड शरीर में ही जल जाए।
- खानपान का रखें ख्याल।
आहार में लें पोषक तत्व
अर्थराइटिस से निपटने के लिए जरूरी है ऐसा भोजन करें जो शरीर में यूरिक एसिड न बनने दें। ऐसे तत्व हमें रो़जाना के भोजन से प्राप्त हो सकते हैं। इसके लिए विटमिन सी व ई और बीटा कैरोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल किया जाना चहिए। इसके अलावा इन बातों पर भी ध्यान दें -
इन चीजों से बचें
ऐसी ची़जें खाएं जिनमें वसा कम से कम हो। कुछ ऐसी ची़जें भी होती हैं जिनमें वसा होता तो है लेकिन दिखता नहीं। जैसे-
- केक, बिस्किट, चॉकलेट, पेस्ट्री से भी बचें।
- दूध लो फैट पिएं।
- योगर्ट और ची़ज आदि भी अगर ले रहे हों तो यह ध्यान रखें कि वह लो फैट ही हो।
- ची़जों को तलने के बजाय भुन कर खाएं।
- कभी कोई ची़ज तल कर ही खानी हो तो उसे जैतून के तेल में तलें।
- चोकर वाले आटे की रोटियों, अन्य अनाज, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करें।
- चीनी का प्रयोग कम से कम करें।
इस प्रकार अपने खान-पान में बदलाव और उचित समय पर आहार लेने से आप अर्थराइटिस की समस्या से बच सकते हैं। और अगर समस्या हो गई हैं तो इन उपायों से अर्थराइटिस के दर्द को कम कर सकते हैं।
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