आजकल की जीवनशैली के चलते बच्चों में बढ़ती हुई मोटापे की समस्या उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बनती जा रही हैं। हाल में हुए एक शोध से यह बात स्पष्ट भी हो गई है। शोध के अनुसार मोटापे से ग्रस्त बच्चों में मानसिक समस्याओं की आशंका अधिक होती है।
मोनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में छह से 13 वर्ष उम्र के 2000 से अधिक स्कूली बच्चों पर अध्ययन किया जिसमें उन्होंने उनके आत्मविश्वास, रिश्तो से संबंधित समस्याएं, उदासी, पढ़ाई आदि पहलुओं का मोटापे से संबंध पाया है।
मोनाश विश्वविद्यालय के एपिड़ेमियोलॉजी और प्रिवेंटिव मेडिसिन विभाग और मोनाश एशिया इंस्टिट्युट के प्राध्यापक मार्क वाह्लक्विस्ट ने इस बारे में बताया, कि ''मोटापे से बच्चों की मनोवैज्ञानिक समस्याएं जुड़ी हैं लेकिन शिक्षा, भावनात्मक समस्याएं आदि के बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है।''
शोध में पाया गया कि प्रतिभागी लड़कों में (16.5 प्रतिशत) मोटापे की समस्या लड़कियों की तुलना में (11.7 प्रतिशत) अधिक होती है। वहीं जब बच्चें अगली कक्षा में जाते हैं और उनकि भावनात्मक अशांति की मात्रा बढ़ती जाती है, तब मोटापे में होनेवाली वृद्धी निष्पक्ष रूप से निरंतर रहती है।
शोधकर्ताओं ने यह भी माना कि मोटापे के शिकार बच्चों में मानसिक समस्याओं का रिस्क 23.5 प्रतिशत होता है जबकि सामान्य बच्चों में यह 14.4 प्रतिशत है।
वाह्लक्विस्ट के अनुसार, ''बच्चों में शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का यह संयुक्त रूप विकसित होने का खतरा शुरुआती स्तर पर पहचानने से कुछ ऐसे उपाय किए जा सकते हैं, जिनकी मदद से उम्र के अगले पड़ाव में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अधिक गंभीर समस्याएं होने से टल सकती हैं।''
इस अध्ययन के परिणाम हाल ही में रिसर्च इन डिवलपमेंटल डिसैबिलिटी जर्नल मे प्रकाशित किए गए हैं। इस अध्ययन के विषय में मुंबई नोवा स्पेशालिटी सर्जरी के वरिष्ठ बैरिऐट्रिक सर्जन डाक्टर रमन गोएल ने बताया, ''इस शोध में भारत की वर्तमान स्थिति भी स्पष्ट की गयी है। माता-पिता द्वारा बढ़ता हुआ दबाव, समाज द्वारा की जानेवाली अपेक्षाएं और मोटापे से संबंधित शारीरिक सीमाओं की वजह से अधिकतर बच्चें को आत्मविश्वास और मनोविज्ञान से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। ऐसे में डाइटिंग, कसरत और सेहतमंद जीवनशैली से इस रिस्क को कम किया जा सकता है।''
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