बचपन में मां के दूध में मिलने वाला जटिल शर्करा का विशेष संयोजन भविष्य की होने वाली एलर्जी से बचाने में मददगार होता है। शोधकर्ताओं बताते हैं कि मां के दूध में मिलने वाले इस शर्करा का लाभ भले ही बचपन में नहीं मिले लेकिन भविष्य में रोग से लड़ने के लिए यह प्रतिरोधी क्षमता का काम करता है। मां के दूध में ओलिगोसैकराइड्स (एचएमओ) पाया जाता है जिसकी संरचनात्मक में जटिल शर्करा के अणु होते हैं। यह मां के दूध में पाए जाने वाले लेक्टोज और वसा के बाद तीसरा सबसे बड़ा ठोस घटक है। असल में बच्चे इसे पचा नहीं पाते हैं लेकिन लेकिन शिशु के आंत में माइक्रोबायोटा के विकास में प्रिबॉयोटिक के तौर पर काम करते हैं। माइक्रोबायोटा एलर्जी की बीमारी पर असर डालता है।
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इस शोध का प्रकाशन जर्नल ‘एलर्जी’ में किया गया है। शोध में एक साल की उम्र होने पर बच्चे की त्वचा की जांच की गई, जिसमें पाया गया कि स्तनपान करने वाले शिशुओं ने खाद्य पदार्थ की एलर्जी के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाई। कनाडा के विनीपेग में मैनिटोबा विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर मेघन आजाद ने कहा, परीक्षण में पॉजिटिव लक्षण का पाया जाना जरूरी नहीं है कि वह एलर्जी का साक्ष्य हो, लेकिन यह उच्च संवेदनशीलता का संकेत अवश्य देता है। उन्होंने कहा, बाल्यावस्था के संवेदीकरण हमेशा बाद के दिनों तक नहीं बने रहते हैं, लेकिन वे भविष्य में एलर्जी बीमारी के महत्वपूर्ण नैदानिक संकेतक और संभावनाओं को उजागर करते हैं।
एलर्जी से जुड़े मिथ
- हालांकि दूध से एलर्जी रखने वाले बच्चों में भविष्य में दमा की आशंका ज्यादा रहती है, लेकिन फिर भी इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि डेयरी उत्पादों का प्रयोग करने से दमा होता ही हो। विज्ञान से ऐसे भी कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि दूध का मुहांसों से कोई संबंध हो। दूध तो विटामिन ए और डी का स्रोत है, जो त्वचा को खूबसूरत बनाने में मददगार होता है।

- अस्थमा के मरीज को खट्टा और सामान्य ठंडा नहीं खाना चाहिए, यह मिथ है। आमतौर पर एलर्जी के शिकार जल्दी बनते हैं। इसलिए इन्हें उन चीजों से दूर रहने की सलाह दी जाती है, जिनसे एलर्जी हो सकती हैं, जैसे कि अंडा, मछली या तीखी महक वाली चीजें। हालांकि हर किसी की एलर्जी हो, यह जरूरी नहीं है। इसलिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि अस्थमा के मरीजों के स्वास्थ्य के ऐसे कौन से आहार उपयोगी है जिससे उनका स्वास्थ्य सकारात्मक रूप से प्रभावित हो सके।
- डायबिटीज के लिए यह माना जाता है, कि इसके रोगियों को मीठी चीजों का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है, कि कभी-कभी मीठी चीजें खाने में कोई हर्ज नहीं है। बल्कि ऐसा डेजर्ट खाना चाहिए, जिसमें फायबर की मात्रा ज्यादा हो, और ग्लाइकेमिक इंडेक्स कम हो।
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