ड्रग्‍स से भी खतरनाक है मोबाइल एडिक्‍शन, बच्‍चों को रखें दूर

अपने बच्चो को ज़रूरत से ज्यादा फ़ोन देना उनके बच्चों के लिए कितना खतरनाक हो सकता है, उनको शायद अंदाज़ा भी नहीं होता की जब भी वह अपने बच्चे को फ़ोन देते है तो वो फ़ोन के रूप में दरअसल उन्हें कोकेन या अल्कोहल की एक डोज़ दे रहे है क्योंकि फ़ोन का एडिक्शन भी ड्रग्स के एडिक्शन जितना खतरनाक है
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ड्रग्‍स से भी खतरनाक है मोबाइल एडिक्‍शन, बच्‍चों को रखें दूर


दिन प्रतिदिन लोगों में मोबाइल एडिक्शन बढता जा रहा है और खासतौर पर ये एडिक्शन बच्चो में काफी तेज़ी से बढ़ रहा हैं और इसमें सबसे अहम् भूमिका निभा रहे है खुद बच्चो के माता पिता। वह इस बात से बिलकुल अनजान है की अपने बच्चो को ज़रूरत से ज्यादा फ़ोन देना उनके बच्चों के लिए कितना खतरनाक हो सकता है, उनको शायद अंदाज़ा भी नहीं होता की जब भी वह अपने बच्चे को फ़ोन देते है तो वो फ़ोन के रूप में दरअसल उन्हें कोकेन या अल्कोहल की एक डोज़ दे रहे है क्योंकि फ़ोन का एडिक्शन भी ड्रग्स के एडिक्शन जितना खतरनाक है, जिससे कुछ समय बाद कई समस्याएँ हो सकती हैं| जैसे की पीड़ादायक गर्दन या सिरदर्द आँखों में जलन होना आदि।

रीढ़ की हड्डी में प्रॉब्‍लम

मुंबई स्थित लीलावती अस्पताल द्वारा किए गए एक सर्वे में कहा गया है कि लगभग 50% भारतीय बच्चों और किशोरो में मोबाइल फोन के ज्यादा उपयोग की वजह से रीढ़ की हड्डी की समस्याएं पैदा हो रही है। मोबाइल के ज्यादा उपयोग से सबसे ज्यादा समस्या जो आती है वो है बच्चो की पढाई पर असर, फ़ोन एडिक्शन होने से बच्चो का अपनी पढाई से मन हट जाता है जिससे की उनके भविष्य भी ख़राब होने का डर हो जाता है।

 

खराब जीवनशैली

रिकवरी फाउंडेशन, प्रवक्ता निखिल सेजवाल का कहना है कि, हमारे लिए ये जानना बहुत ज़रूरी है की कब हम किसी चीज़ के आदि हो जाते है, जब हम उस चीज के न मिलने की वजह से चिंता में पड़ जाते है, खाने पीने में बदलाव होने लगते है, थकान रहने लग जाती है, हर समय निराश या चिड़चिड़ा मूड बना रहता है, हमारी पसंद नापसंद बदल जाती है, सामाजिक संपर्क या गतिविधियों से रूचि हट जाती है| दरअसल ये सब इस वजह से होता है क्योंकि ये सब चीज़े हमारी शारीरिक गतिविधियों से जुडी होती हैं इसके पीछे का कारण होता है, हमारे दिमाग का एक भाग जिसे हम डोपामाइन कहते है यह हमें किसी भी चीज़ की संतुष्टि होने की अनुभूति कराते हैं, यह एक केमिकल है जो की हमारे शरीर और दिमाग में होने वाली कई गतिविधियों का जिम्मेदार होता है, और उन्हें नियंत्रित करता है।

नोमोफोबिया की समस्‍या

प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिसर्च के अनुसार स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करने वाले लोग अपने फ़ोन को दिन में औसतन 150 बार देखते हैं, क्योंकि वे उनसे अलग नहीं हो सकते हैं| आज लोगो में एक नई मोबाइल की समस्या पैदा हो गयी है जो है नोमोफोबिया, को सेल फोन संपर्क से बाहर होने के डर के रूप में परिभाषित किया गया है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमे अगर किसी इन्सान से एक मिनट के लिए भी फ़ोन दूर हो जाए या उसे न मिले तो उसके अन्दर एक अजीब सा डर हो जाता है या वो अपने को कंट्रोल नहीं कर पाता। क्या आपने सोचा है कि आप अपने फोन को देखे बिना कब तक रह सकते है?

घर में बनाएं नो-फोन जोन

हालांकि सेल फोन की लत एक नई व्यवहार की लत है जो औपचारिक रूप से नहीं है लेकिन ये हमारे बच्चो के लिए खतरनाक हो सकती है तो केसे हम बच्चो को मोबाइल एडिक्शन से बचा सकते है। कुछ सावधानियो और कदमो से हम अपने बच्चो को इस एडिक्शन से बचा सकते है जैसे की घर में  विशेष नो-फ़ोन ज़ोन बनाएं, जैसे की फ़ोन को ऐसी जगह रखे जहाँ बच्चो का ध्यान फ़ोन पर कम जाए, फ़ोन को बेड पर न रखे आदि। घर में फ़ोन का उपयोग कम से कम करे और उपयोग के लिए विशेष समय सेट करें, अपने बच्चो के स्मार्टफोन  की गतिविधियो पर नज़र रखे, बच्चे को फिजिकल एक्टिविटी में डाले, अपने बच्चे को बताएं कि एक माता पिता के रूप में उनको अपने बच्चो के ऑनलाइन गतिविधियो  की निगरानी करने का हक़ है चिकित्सा अथवा किसी रिकवरी सेंटर का संदर्भ लें, बच्चे के साथ समय बिताए जिससे की बच्चा फ़ोन की और कम से कम जाए।

 

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