अगर आप मानते हैं कि आप खूब पसीना बहाते हैं तो आपको डायबीटिज नहीं हो सकता, तो हाल ही में आई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट पर एक बार नजर फेर लें। इस रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 के 12 महीनों में छत्तीसगढ़ में गैर संचारी रोगों से संबंधित चिकित्सा केंद्रों में जांच के दौरान 11,867 रोगी मधुमेह से ग्रसित हैं।
अब तक यह माना जाता था कि डायबिटीज़ ख़ूब खाने पीने और और कम शारीरिक श्रम करने वालों को होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ में डायबीटिज के रोगी बेहद ग़रीब और श्रमिक वर्ग मधुमेह का शिकार हैं। डॉक्टरों को आशंका है कि यह स्थिति कुपोषण के कारण हो सकती है।
जिस तेजी से एक साल के भीतर छत्तीसगढ़ के गैर संचारी रोगों से संबंधित चिकित्सा केंद्रों में ही मधुमेह के रोगियों की संख्या बढ़ी है, वह चौंकाने वाली है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार देश के लगभग 8 फीसदी नए मधुमेह रोगी अकेले छत्तीसगढ़ से हैं। इस कारण डायबीटिज के मामले में छत्तीसगढ़ ने पूरे देश में पहली जगह पाई है।
इससे पहले देश के किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में इस तरह से डायबीटिज के रोगियों में कभी बढ़ोतरी नहीं हुई। 2014-15 में देश में डायबीटिज के नए मरीजों की संख्या 5 लाख 59 हज़ार 718 थी जिसमें अक्टूबर में मामूली परिवर्तन होकर 5 लाख 74 हज़ार 215 हो गया।
बिलासपुर में 'ग़रीबों के अस्पताल' के नाम से प्रसिद्ध जन स्वास्थ्य सहयोग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर योगेश जैन कहते हैं, "आरंभिक तौर पर जो समझ में आ रहा है, उससे तो यही लगता है कि मधुमेह के फैलाव के पीछे कुपोषण भी एक कारण है।
गर्भावस्था में भी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाली महिलाएं आम तौर पर केवल अनाज और ज़्यादातर चावल ही खाती हैं। इसके कारण शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह पेंक्रियाज पर भी स्वाभाविक रूप से असर पड़ता है।" ऐसे में डायबीटिज के नए कारण देश के सामने उभर कर आने से सरकार चिंतित है औऱ अब ये केवल अमीरों की बीमारी नहीं रही। इस कारण मजदूर वर्ग को भी इससे सावधान रहने की जरूरत है।