
अगर कोई इंसान हमेशा खुश रहता दिखे या हमेशा गुमसुम रहने लगे तो क्या होगा, क्या इसके बारे में कभी सोचा है, कि ऐसा क्यों हो रहा है।
हर किसी के जिंदगी में खुशी और ग़म दोनों ही आते जाते रहते हैं, और इनके साथ ही लोग जीना सिख भी लेते है। लेकिन अगर कोई इंसान हमेशा खुश रहता दिखे या हमेशा गुमसुम रहने लगे तो क्या होगा, क्या इसके बारे में कभी सोचा है, कि ऐसा क्यों हो रहा है। ऐसा जब होता है जब उस इंसान के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा होता है और बाद में वह बाइपोलर डिसऑर्डर की वजह बन जाती है। जिंदगी एक फूल की तरह ही होती है जो कभी खिल जाती है या तो कभी मुरझा जाती है। कभी-कभी इंसान इतना डिपरेस हो जाता है कि वह एकदम शात रहने लगता है, किसी भी बात का जवाब ही नहीं देता और कई बार तो बिना किसी कारण के रोने भी लग जाता है और अपने को एक कंरे में बंद रखता है। लेकिन ऐसे बर्ताव को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसी स्थिति में लोग आत्महात्या तक करने की सोच लेते है।
क्या है बाइपोलर डिसऑर्डर?
जब किसी व्यक्ति का मूड बार-बार बदलने लगे तो जान लिजिए कि ये कोई सामान्य श्रेणी में नहीं होता, इसका मतलब है कि वह मेंटल हेल्थ कन्डिशन की समस्या से जूझ रहा है जो कि बाइपोलर डिसऑर्डर कहलाती है। इस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति महीनों तक अवसाद में रह सकता है या फिर लंबे समय तक एंग्जाइटी की स्थिती से गुजर सकता है।
टाइप टू बाइपोलर (हाइपोमेनिया)
ऐसी स्थिती में उदासी के दौरे आने लग जाते हैं। इस डिसऑर्डर में व्यक्ति का मन उदास रहता है जिसमें ये सभी लक्षण होते हैं जैसे-
- -बिना किसी कारण के रोते रहने का मन
- -किसी काम में बिल्कुल मन नहीं लगना
- -नींद बहुत कम या ज्यादा आना

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बाइपोलर डिसऑर्डर और आत्महत्या में क्या है संबंध
अपने जीवन में हमसे से कई लोग इसी तरह के भाव से अक्सर गुजरे होंगे, लेकिन इससे आप और हम लगभग दो या तीन दिन में उबर जाते हैं लेकिन अगर ऐसी परिस्थिति दो हफ्ते से ज्यादा बनी रहती है तो ये हाइपोमेनिया हो सकती है।
समय के साथ हॉर्मोन्स में हो रहे बदलाव की वजह से लोंगो के मूड में भी बदलाव होने लगते हैं। जैसे, वो किसी भी बात पर चिढ़ जाते है, नाराज या गुस्सा हो जाते हैं, लेकिन ऐसी स्थिति लंबे समय तक नहीं बनी रहती। ऐसे मामले 'सायक्लोथायमिक डिसऑर्डर' में आते हैं, जहां किसी भी तरह का भाव चाहे वो गुस्सा हो या उदासी, वो माइल्ड (कम) होता है। ऐसा आमतौर पर किशोरावस्था में देखा जाता है और इसे नजरअंदाज किया जा सकता है। लेकिन अगर किसी में बाइपोलर डिसऑर्डर होता है तो वो डिप्रेशन के तौर पर आता है।
इसमें लंबे समय तक उदासी, बहुत गुस्सा होना, आक्रामकता, नींद की जरूरत महसूस न होना, जरूरत से ज्यादा बातें या खर्च करना और सेक्शुअल कॉन्टेन्ट से सामान्य से ज्यादा आकर्षित होना शामिल है। अगर ऐसे लक्षण दो हफ्ते से ज्यादा समय तक चलते हैं तो बाइपोलर की आशंका हो सकती है।
डिप्रेसन या उदासी के स्थिती में आत्महत्या करने की कोशिश की संभावना ज्यादा रहती है, क्योंकि दोनों ही स्थिति में व्यक्ति का वास्तविकता से नाता छूट जाता है। मेनिया में मरीज को लगता है वो जो चाहे कर सकते हैं, उसके सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। ऐसे में मरीज ऐसे एक्स्ट्रीम कदम उठा सकता है। वहीं बाइपोलर डिप्रेशन में आत्महत्या की आशंका सबसे ज्यादा होती है और अगर ऐसा व्यक्ति कभी आत्महत्या या ना-उम्मीदी की बात करता है तो ये एक 'रेड सिग्नल' हो सकता है और उसका तुरंत इलाज कराया जाना चाहिए।
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इलाज और बचाव
- -तनाव कम से कम लें क्योंकि ये बाइपोलर डिसऑर्डर का प्रमुख कारण होता है।
- -नशीले पदार्थों से दूरी बनाकर रखें क्योंकि सिगरेट या शराब के सेवन से तनाव घटने की बजाय बढ़ता है, यह भी इस बीमारी का कारण बन सकता है।
- -नियमित रूप से व्यायाम करें।
अपने दिमाग को हमेशा सकारात्मक रखें। नकारात्मक चीजो के बारे में न सोचें। अगर आपके साथ कुछ ऐसा हुआ है, जिसे सोचकर आप तनाव में आ जाते हैं तो बेहतर होगा कि आप जिंदगी की नकारात्मक चीजों से खुद को दूर रखें और उनके बारे में न सोंचे।
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