अकसर हम अपने करीबी दोस्तों या रिश्तेदारों से किसी भी विषय पर सुझाव लेते हैं। उनकी सलाह के बाद ही हम किसी निर्णय पर पहुंच पाते हैं। लेकिन कहीं ऐसा करना आपकी आदत तो नहीं? अगर हां तो आप मनोवैज्ञानिक समस्या के शिकार हैं। हम बात कर रहे हैं डीपीडी यानि डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर की।
आखिर क्या है डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर? इसके कारण और लक्षण क्या है? कैसे मिलेगा इस समस्या से छुटकारा? इन सभी सवालों के जवाब आपको दिए जा रहे हैं। पढ़ते हैं आगे...
क्या है डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर?
अगर कोई व्यक्ति अपने फैसले लेने में डरता है या अपनी मर्जी से कोई निर्णय नहीं ले पाता तो ऐसी आदत भविष्य में डीपीडी जैसी समस्या से सामना करा सकती है। ऐसी स्थिति में सतर्क होने की जरूरत है।
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डीपीडी के लक्षण-
- किसी भी बात के बारे में दोस्तों से बार-बार पूछना और अत्यधिक विनम्र और आज्ञाकारी होना।
- अत्यधिक संकोची होने के कारण दूसरों के सामने अपनी असहमति जाहिर ना करना।
- अपनी आलोचना सुनकर उदास हो जाना, चिंता करना या ज्यादा संवेदनशील होना।
- डीपीडी का मुख्य लक्षण है आत्मविश्वास की कमी। लेकिन ध्यान दें कि ऐसा जरूरी नहीं है कि जिनका मनोबल कम हो उन्हें ये समस्या हो।
डीपीडी के कारण-
- जो लोग एंग्जायटी डिसॉर्डर से ग्रस्त हैं उन्हें आगे चलकर डीपीडी की बीमारी हो सकती है।
- जिन बच्चों की परवरिश बेहद संरक्षित माहौल में होती है उन्हें भी भविष्य में ये बीमारी हो सकती है।
- आमतौर पर ये समस्या 20 से 30 उम्र के लोगों में ज्यादा देखी जाती है। क्योंकि इस उम्र में शिक्षा, करियर, प्रेम, शादी आदि की उलझनें ज्यादा रहती हैं।
डीपीडी का इलाज-
आपके अंदर इस तरह के लक्षण हैं तो परेशान न हो तुरंत क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करें। बता दें कि वहां विशेषज्ञ केवल लक्षणों को देखकर अनुमान नहीं लगाते कि आपको डीपीडी है बल्कि वे पर्सनैलिटी, प्रॉब्लम सॉल्विंग और स्ट्रेस हैंडलिंग टेस्ट के जरिये ये पता लगाते हैं कि क्या सच में आपको डीपीडी की समस्या है? ध्यान दें कि अगर आपको ये समस्या है भी तब भी घबराएं नहीं क्योंकि ऐसी समस्याओं के उपचार शॉर्ट टर्म होते हैं। अगर इलाज ज्यादा लंबा हो जाए तो व्यक्ति अपने काउंसलर पर भावनात्मक रूप से डिपेंड हो जाता है। ऐसे लोगों के लिए दो थेरेपी बहुत कारगर हैं। हम बात कर रहे हैं कॉग्निटिव और असर्टिंवनेस थेरेपी की। ये थेरेपी समस्या को दूर कर झिझक मिटाती हैं। वैसे तो इसके लिए विशेषज्ञ दवाईयां भी देते हैं लेकिन अगर समस्या ज्यादा गंभीर न हो तो बिहेवियर थेरेपी की मदद से भी 3 महीने में पॉजिटिव रिजल्ट दिखने लगता है।
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कुछ महत्वपूर्ण बिंदु-
- बिच्चों की परवरिश कुछ इस ढंग से करें कि वे शुरुआत से ही छोटे-छोटे निर्णय खुद से लें। इससे बचपन से ही उनमें आत्मनिर्भर की भावनात्मक पैदा होगी।
- अगर आपको ऐसा लगे कि आपकी निर्भरता बढ़ रही है तो स्वंय फैसले लेने के बारे में सोचें।
- संतुलित सोच रखें, इससे ऐसी समस्याओं से बचाव में मददगार होती है।
नोट- ध्यान रखें कि डीपीडी की समस्या कोई बड़ी समस्या नहीं है लेकिन समय रहते रोक नहीं लगाई गई तो इससे भविष्य में दिक्कत आ सकती है। इसलिए ऐसी स्थिति में डॉक्टर के पास जानें से झिझके नहीं।