क्या आप टोमोथेरेपी के बारे में जानते हैं? अगर नहीं, तो हम आपको बताते हैं। टोमोथेरेपी कैंसर के इलाज की एक एडवांस तकनीक है। जिसमें रेडिएशन का इस्तेमाल करके कैंसर का इलाज किया जाता है। टोमोथेरेपी के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए हमने बात की चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के रेडिएशन ओन्कोलोजी विभाग की एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. निधि गुप्ता से। भारत में साल 2020 में पुरुषों में कैंसर के रोगियों की संख्या 679,421 और महिलाओं में 712,758 थी और धीरे-धीरे ये मामले बढ़ रहे हैं। बदलते समय के साथ कैंसर के इलाज के लिए एडवांस्ड तकनीक भी आ गई हैं। उन्हीं तकनीकों में से एक है टोमोथेरेपी। टोमोथेरेपी में कैंसर के मरीज को जिस जगह ट्यूमर हुआ है उसी जगह रेडिएशन देकर इलाज किया जाता है। इस थेरेपी के बारे में आगे हम विस्तार से जानेंगे।
क्या है टोमोथेरेपी
डॉ निधि के मुताबिक, कैंसर का इलाज तीन तरह से होता है। एक सर्जरी से, दूसरा कीमोथेरपी से और तीसरा रेडिएशन थेरेपी से। टोमोथेरेपी रेडिएशन थेरेपी का ही एक हिस्सा है। टोमोथेरेपी स्पेशल मशीन से दी जाती है। इसमें रेडिएशन के माध्यम से इलाज किया जाता है। जैसे हम एक्सरे कराते हैं वैसे ही रेडियो थेरेपी की एक मशीन होती है जिसमें मरीज को टेबल पर लिटाया जाता है। मरीज के ऊपर रेडिएशन जाती है। उसमें मरीज को कोई दिक्कत नहीं होती है। यह रेडिएशन केवल उसी हिस्से पर पड़ती हैं जो ट्यूमर वाला हिस्सा है। उन्होंने रेडिएशन मशीनों के बारे में बात करते हुए कहा कि रेडिएशन डिलिवर करने का तरीका होता है जिसमें सबसे पुरानी मशीन थी कोबोल्ट फिर आई लिनियर एक्सीलेटर (Accelerator) फिर टोमोथेरेपी। इसके बाद और भी एडवांस्ड तकनीक आई हैं। कीमोथेरेपी को भी रेडिएशन के साथ दिया जाता है।
डॉक्टर ऐसे तय करते हैं कैंसर के मरीज के इलाज का तरीका
ओन्कॉलोजिस्ट डॉ. निधि गुप्ता ने बताया कि कैंसर की चार स्टेज होती हैं। पहली और दूसरी को अर्ली स्टेज माना जाता है। जिसमें मरीज के ठीक होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। चौथी स्टेज में बीमारी शरीर में फैल चुकी होती है। उसमें ठीक होने की संभावना सबसे कम होती है। स्टेज एक में 80 से 90 फीसद मरीज ठीक हो जाते हैं जबकि स्टेज 4 में 10 से 20 फीसद से कम मरीज हैं जो ठीक हो पाते हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर सबसे ज्यादा आम है। पुरुषों में मुंह और फेफड़े का कैंसर सबसे आम है। जब पेशेंट डॉक्टर के पास आता है तब कुछ टेस्ट होते हैं जिनमें यह देखा जाता है कि कैंसर किस स्टेज का है। सिटी स्कैन, बायोप्सी, एमआरआई आदि टेस्टे किए जाते हैं। फिर एक टीम बैठती है कि इस मरीज का इलाज किस तकनीक से होगा। अगर बीमारी सर्जरी के लिए उपयुक्त होती है तो मरीज को ऑपरेशन के लिए लिया जाता है। अन्यथा उसके ट्रीटमेंट में कीमोथेरेपी या रेडिएशन का प्रयोग किया जाता है। कई मरीजों में सर्जरी के बाद भी कीमोथेरेपी या रेडिएशन या दोनों देने पड़ती हैं। कई बार बीमारी सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं होती तब इसे रेडिएशन थेरेपी या कीमोथेरेपी से छोटा किया जाता है। इसे डाउन स्टेज कहते हैं।
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क्या है कीमोथेरेपी
डॉ. निधि ने बताया कि कीमोथेरेपी में कीमोथेरेपी की ड्रग्स होती हैं जो हम आईवी (intra venus drugs) देते हैं। कुछ कीमोथेरेपी की ड्रग ओरल भी आती हैं जो मुंह से खाई जाती हैं। आजकल बहुत सी ड्रग आ गई हैं जिन्हें टारगेटिड थेरेपी कहते हैं। टारगेटिड थेरेपी में ये एडवांटेज होती है कि पहले कुछ टेस्ट करते हैं जिसमें ये देखा जाता है कि आपके ट्यूमर में किस तरह की म्यूटेशन है। कौन से जीन्स के कारण वो ट्यूमर हुआ है। जीन्स की म्यूटेशन को टारगेट किया जाता है। उनके ऊपर काम करने वाली स्पेफिक ड्रग दी जाती हैं। जिसको हम इम्यूनोथेरेपी और टारगेटिड थेरेपी भी बोलते हैं। जाहिर सी बात है कि ये नया ट्रीटमेंट काफी महंगी होता है लेकिन इसके साइड इफैक्ट भी कम होते हैं। और रिजल्ट भी बेहतर होते हैं।
टोमोथेरेपी के फायदे
टोमोथेरेपी एक एडवांस्ड तकनीक है। इसके कई फायदे हैं। डॉक्टर निधि ने बताया कि जैसे-जैसे हम मशीन में हायर जाते हैं उनका फायदा ये होता है कि वो केवल ट्यूमर पर ही रेडिएशन डालते है और बाकि टिशुज को बचाते हैं। इसके साइड इफैक्ट कम होते हैं और हम डोज ज्यादा दे पाते हैं। जितनी ज्यादा हम डोज देते हैं उतना इलाज बेहतर होता है। हाइली कॉन्फोर्मल (conformal) रेडिएशन दी जाती है। जो सिर्फ टारगेटिड ट्यूमर टिशु को टारगेट करती है। जो बाकि टिशुज को बचाती है। रेडिएशन की ज्यादा डोज दी जा सकती हैं। ताकि ट्यूमर को बेहतर तरीके से कंट्रोल किया जा सके। टोमोथेरेपी के फायदे इस प्रकार हैं।
1. टोमोथेरेपी में ट्यूमर वापस आने की संभावना कम रहती है। क्योंकि ज्यादा डोज देने से ट्यूमर का कंट्रोल बेहतर हो जाता है।
2. डॉ निधि ने बताया कि टोमोथेरेपी में इलाज के दौरान मशीन के ऊपर ही सिटी स्कैन करके यह चैक किया जाता है कि रेडिएशन सही हिस्से में जा रहा है या नहीं।
3.टोमोथेरेपी से इलाज कराने पर नॉर्मल टीशुज खराब नहीं होते। सर्जरी के दौरान कई बार शरीर का अंग निकालना पड़ता है, लेकिन रेडिएशन से हम शरीर के अंग को निकलने से बचा सकते हैं।
कैंसर के इलाज में की जाने वाली थेरेपी के साइड इफैक्ट
डॉ. निधि ने बताया कि कैंसर के दौरान अलग-अलग तरीकों से इलाज किया जाता है। जिसमें हर थेरेपी के साइड इफैक्ट भी होते हैं लेकिन ये साइड इफैक्ट टेंपररी होते हैं। साइड इफैक्ट इलाज खत्म होने के बाद ठीक हो जाते हैं।
1.सर्जरी के साइड इफैक्ट
सर्जरी में हीलिंग में टाइम लग जाता है। कई बार मरीज के शरीर का कोई अंग भी निकालना पड़ता है। खाने में दिक्कत होती है। खाने में दिक्कत होती है।
2.रेडिएशन के साइड इफैक्ट
रेडिएशन थेरेपी में दिल कच्चा होता है। उल्टी जैसा लगता है। भूख कम हो जाती है। अगर मुंह में रेडिशन लग रही है तो मुंह पक सकता है। ये सब टेंपररी साइड इफैक्ट होते हैं। जब ट्रीटमेंट खत्म होता है तब ठीक हो जाते हैं।
3.कीमोथेरेपी के नुकसान
कैंसर के इलाज में जो थेरेपी की जाती है उससे शरीर की कोशिकाओं को नुकसान होता है। हिमोग्लोबिन और प्लेटलेट अक्सर कम हो जाते हैं। इसके अलावा बाल गिर जाते हैं और मुंह का स्वाद चला जाता है। उल्टियां होने लगती हैं।
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कैंसर से बचाव
डॉ निधि ने बताया कि कैंसर से बचाव संभव है। अग हम शुरूआती लक्षणों को ही भाप लें और समय से इलाज शुरू कर दें तो यह परेशानी ज्यादा नहीं बढ़ेगी।
1. स्क्रीनिंग से होगा बचाव
जो स्वस्थ लोग होते हैं पहले उनकी स्क्रीनिंग की जाती है और पता लगाया जाता है कि किसी में कैंसर के लक्षण तो नहीं हैं।
2. स्मोकिंग को कहें न
डॉक्टर ने बताया कि जो लोग स्मोकिंग करते हैं उन्हें जांच के लिए बुलाया जाता है। उन्हें यह छोड़ने की सलाह दी जाती है। स्मोकिंग करने वाले लोगों में कैंसर की आशंका अधिक बढ़ जाती है। आदमियो में मुंह का कैंसर, फेफड़े और गले का कैंसर सबसे आम है। इसमें प्रमुख कारण तंबाकू होता है। स्मोकिंग छोड़कर ही इनसे बचा सकता है।
3. स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं
स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से कैंसर के चांसिस कम हो जाते हैं। जंक फूड नहीं खाएं। वॉक करें। व्यायाम करें। बाहर का खाना न खाएं। घर का बना हुआ खाएं। ताजे फल और सब्जियां खाएं।
4. जरूरी टेस्ट
स्वस्थ लोगों में कैंसर की जांच के लिए पहले कुछ जरूरी टेस्ट किए जाते हैं। जिसमें 40 के ऊपर की औरतों को मैमोग्राफी कराने के लिए कहा जाता है। मैमोग्राफी ब्रेस्ट के लिए होती है जो कि ब्रेस्ट कैंसर हमारे देश में महिलाओं में सबसे ज्यादा है। सर्वाइकल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग इसमें बच्चेदानी के मुंह का कैंसर की जांच की जाती है। ये दूसरा कैंसर है जो महिलाओं में सबसे ज्यादा पाया जाता है। शहरों में ब्रेस्ट कैंसर और गांवों में बच्चेदानी कैंसर सबसे ज्यादा पाया जाता है। देश में देखा जाए तो महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर सबसे ज्यादा होता है। पैप स्मेयर टेस्ट होता है जिसमें बच्चेदानी के मुंह से थोड़ा सा पानी लेकर उसकी जांच करते हैं। और उससे पता चल जाता है कि कोई शुरुआती कैंसर तो नहीं है।
5. वैक्सीनेशन कराएं
कैंसर की रोकथाम के लिए विदेशों में कई प्रयास किए गए हैं जिसकी वजह से वहां इसकी रोकथाम पर बेहतर काम हो रहा है। डॉ. निधि ने बताया कि कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीनेशन होता है। 10 से 12 साल की उम्र की लड़कियों को ये टीका दिया जाता है। तो उनको सर्वाइकल कैंसर से बचाया जा सकता है।
कैंसर से बचाव के लिए डॉक्टर और सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। इसी का नतीज है कि आज कैंसर की रोकथाम के लिए जागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं तो वहीं नई मशीनों को लाया जा रहा है। इस तरह की मशीनों से इलाज आसान हो जाता है और मरीजों को दिक्कत कम होती है। दूसरा टोमोथेरेपी जैसी मशीनें जिस जगह कैंसर हुआ है उसी पर रेडिएशन डालती हैं जिससे बाकी पार्ट्स ठीक रहते हैं।
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