बच्चों की अच्छी परवरिश चाहते हैं तो ध्यान रखें ये 5 बातें, जिंदगी भर रहेंगे फ्री

जरा अपना बचपन याद करें, क्या भाई-बहनों के साथ कभी आपका झगड़ा नहीं होता था? अभी याद नहीं आ रहा, वह अलग बात है पर अपने भाई-बहनों के साथ बच्चों की कोई खींचतान न हो, यह असंभव है। इसलिए अगर कभी आपके बच्चों के बीच किसी बात पर लड़ाई हो तो इससे खुद तनावग्रस्त होने के बजाय शांतिपूर्ण ढंग से बच्चों को समझाने की कोशिश करें। अमेरिकी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एडेल फेबर और एलेन मज़लिश ने मिलकर एक किताब लिखी है- 'सिब्लिंग विदाउट राइवलरी’, जिसमें यह बताया गया है कि छोटी-छोटी बातों को लेकर बच्चों का झगडऩा स्वाभाविक है।
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बच्चों की अच्छी परवरिश चाहते हैं तो ध्यान रखें ये 5 बातें, जिंदगी भर रहेंगे फ्री

जरा अपना बचपन याद करें, क्या भाई-बहनों के साथ कभी आपका झगड़ा नहीं होता था? अभी याद नहीं आ रहा, वह अलग बात है पर अपने भाई-बहनों के साथ बच्चों की कोई खींचतान न हो, यह असंभव है। इसलिए अगर कभी आपके बच्चों के बीच किसी बात पर लड़ाई हो तो इससे खुद तनावग्रस्त होने के बजाय शांतिपूर्ण ढंग से बच्चों को समझाने की कोशिश करें। अमेरिकी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एडेल फेबर और एलेन मज़लिश ने मिलकर एक किताब लिखी है- 'सिब्लिंग विदाउट राइवलरी’, जिसमें यह बताया गया है कि छोटी-छोटी बातों को लेकर बच्चों का झगडऩा स्वाभाविक है। अगर पेरेंट्स थोड़ी समझदारी से काम लें तो बच्चों को आसानी से समझाया जा सकता है कि झगडऩा उनके लिए क्यों नुकसानदेह है। पेरेंटिंग धैर्य का दूसरा नाम है। इसलिए बच्चों से इस बात की उम्मीद करना बेमानी है कि वे एक ही बार में आपकी सारी बात समझ जाएंगे।

आखिर क्यों लड़ते हैं बच्चे

जब परिवार में किसी बच्चे के छोटे भाई/बहन का आगमन होता है तो उसी पल से उसके मन में असुरक्षा की भावना भर जाती है और वह अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश में जुट जाता है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट की थ्योरी पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों की तरह मनुष्यों पर भी समान रूप से लागू होती है। इसलिए अपने छोटे भाई/बहन के आते ही बड़ा बच्चा स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगता है। इस बात को लेकर वह हमेशा सशंकित रहता है कि अब मम्मी केवल छोटे बच्चे को ही प्यार करेगी। ऐसे में वह बड़ों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए रोने-चिल्लाने जैसी हरकतें करता है।

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बच्चों को करें मानसिक रूप से तैयार

पेरेंट्स को पहले से ही बड़े बच्चे को इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए कि घर में तुम्हारा छोटा भाई/बहन आने वाला है और वह तुम्हारे साथ खेलगा। उसे यह भी एहसास दिलाएं कि वह आपके लिए सबसे खास है। इससे भविष्य में अपने सिब्लिंग के साथ उसके रिश्ते सहज होंगे पर इस बात की उम्मीद करना गलत है कि पेरेंट्स की ऐसी कोशिशों से भाई-बहनों के बीच कभी कोई झगड़ा नहीं होगा। बच्चों के मन में प्रतिस्पर्धा की भावना होना स्वाभाविक है। इसीलिए भाई-बहनों के साथ अकसर उनकी भिड़ंत हो जाती है।

इससे भी सीखते हैं बच्चे

बच्चों के बीच होने वाले मामूली झगड़ों को लेकर अपने मन में कोई नकारात्मक धारणा न रखें। दरअसल बच्चे ऐसे ही झगड़ों के माध्यम से अपने अधिकारों और आत्मसम्मान के लिए संघर्ष करना सीखते हैं। ऐसी बातें उनके भावनात्मक और सामाजिक विकास की प्रक्रिया में सहज रूप से शामिल होती हैं। अहं, प्रतिस्पर्धा और ईष्र्या जैसी कुछ नकारात्मक भावनाएं जन्मजात रूप से हर इंसान में मौज़ूद होती हैं, जिन्हें मिटा पाना न तो संभव है और न ही उचित। छोटी-छोटी चीज़ों के लिए आपस में झगडऩा, जि़द करना या रूठना, बाल सुलभ व्यवहार का स्वाभाविक हिस्सा है क्योंकि बच्चे अपनी इच्छाओं और भावनाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं। कुछ पेरेंट्स इसके लिए अकसर उन्हें डांटते-फटकारते रहते हैं पर ऐसे मामलों में थोड़े धैर्य की ज़रूरत होती है क्योंकि बच्चों को सीखने में वक्त लगता है।

समाधान है जरूरी

बच्चों के बीच होने वाली खींचतान को हमें सकारात्मक नज़रिये से देखना चाहिए। वास्तव में इसके ज़रिये ही उनमें किसी समस्या का हल ढूंढने की क्षमता विकसित होती है। मिसाल के तौर पर अगर एक ही खिलौने के लिए दो भाई-बहनों के बीच झगड़ा हो रहा हो तो थोड़ी ही देर में वे यह समझ जाते हैं कि ज्यादा झगडऩे पर मम्मी हमसे यह टॉय छीन लेंगी और हम में से कोई भी इससे खेल नहीं पाएगा। इसलिए वे खुद ही बीच का रास्ता ढूंढ लेते हैं कि हम दोनों एक ही खिलौने से खेलेंगे। जब बच्चे एक-दूसरे की शिकायत लेकर पेरेंट्स के पास पहुंचें तो पहले उनसे ही उनकी परेशानी का हल ढूंढने को कहें। इससे वे अपनी समस्याओं से बाहर निकलने का रास्ता खुद ढूंढने की कोशिश करेंगे।

बेकाबू न हो गुस्सा

जब भी दो बच्चों के बीच झगड़ा होता है तो आमतौर पर पेरेंट्स भी उन्हें ऊंची आवाज़ में डांटना शुरू कर देते हैं। माता-पिता को देखकर वे थोड़ी देर के लिए शांत तो ज़रूर हो जाते हैं पर यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है क्योंकि वे यह समझ नहीं पाते कि उन्हें अपने गुस्से को कैसे नियंत्रित करना है। इसलिए जब कभी आपके बच्चे को गुस्सा आए तो डांटने के बजाय उसे प्यार से अपने पास बुलाएं और धीरे-धीरे गहरी सांसें लेने को कहें। उसे समझाएं कि इससे वह अच्छा महसूस करेगा और जल्दी ही उसका गुस्सा शांत हो जाएगा। उसे यह भी जरूर याद दिलाएं कि अगली बार जब भी उसे गुस्सा आए तो वह यही तरीका अपनाए। यह सच है कि बड़े बच्चे को समझाना थोड़ा आसान होता है। इसलिए सभी पेरेंट्स उसी को नसीहतें देते हैं लेकिन छोटे बच्चे को भी यह समझाना ज़रूरी है कि बड़े भाई/बहन के साथ प्यार से पेश आना चाहिए।

सजा के तरीके में बदलाव 

अब तक किए गए कई अध्ययनों के आधार पर आज पूरी दुनिया के मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत हो चुके हैं कि बच्चों को शारीरिक दंड देने से वे अनुशासनहीन हो जाते हैं। ऐसे में यह सवाल बहुत अहम हो जाता है कि बच्चों के गलत व्यवहार को कैसे नियंत्रित किया जाए? इसके लिए भी आप कुछ आसान तरीके अपना सकती हैं। मसलन, टाइम आउट की पनिशमेंट देना, जिसके तहत शरारत करने वाले बच्चे को निर्धारित अवधि (10-15 मिनट) के लिए किसी दूसरे कमरे में बिलकुल अकेले बैठने को कहें। ध्यान रहे कि उस दौरान परिवार का कोई भी सदस्य उससे बातचीत न करे। अगर कोई बच्चा गुस्से में अपनी चीज़ें बिखेर देता है तो आप उसे दोबारा सही ढंग से समेटने को कहें, इससे उसे यह मालूम हो जाएगा कि चीज़ों को बिगाड़ना बहुत आसान होता है पर उन्हें दुरुस्त करने में बहुत मेहनत लगती है। बेशक, आप अपने बच्चों को थोड़ी शरारत की छूट दें पर उन्हें यह समझाना भी आपकी जि़म्मेदारी है कि उन्हें तोडफ़ोड़ और मारपीट करने की इजाज़त बिलकुल नहीं दी जाएगी। इससे अनुशासन के कुछ सामान्य नियम बच्चे की आदतों में शामिल हो जाएंगे और वे संतुलित व्यवहार सीखेंगे।

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