बच्‍चों में तेजी से बढ़ रहा है डायबिटीज का खतरा

मोटापे, असंतुलित खानपान और अनियमित जीवनशैली के चलते अब बच्‍चे भी डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं। हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं और इस पर अभी तवज्‍जो दिए जाने की जरूरत है।
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बच्‍चों में तेजी से बढ़ रहा है डायबिटीज का खतरा


एक दौर था जब डायबिटीज को केवल बड़ी उम्र के लोगों की बीमारी समझा जाता था। लेकिन, अब यह बीमारी किशोरों यहां तक कि छोटे बच्‍चों को भी अपना शिकार बना रही है। जानिए कैसे यह खतरनाक बीमारी बच्‍चों खासकर भारतीय बच्‍चों में तेजी से अपने पैर पसार रही है।

daibetes in kidsलाइफस्‍टाइल संबंधित बीमारियां केवल अधिक उम्र के लोगों को ही परेशान नहीं कर रहीं, बल्कि अब किशोर भी इसके शिकार बन रहे हैं। 14 नवंबर को विश्व डायबिटीज दिवस के दिन आइए हम समझने की कोशिश करते हैं कि इस बीमारी को दूर रखने के लिए हमें कौन से उपाय आजमाने चाहिए।

 

श्री बालाजी एक्‍शन मेडिकल हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्‍टेंट डॉक्‍टर शालिनी जग्‍गी के अनुसार, ''बच्‍चों में डायबिटीज के मामले काफी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। वर्ष 2011 में इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन ने अनुमान लगाया था कि दक्षिण-पूर्वी एशिया में 15 वर्ष की आयु से कम के 18 हजार बच्‍चों को डायबिटीज हो गई है। इसमें से भी भारत की हालत और खराब थी। बच्‍चों में टाइप वन डायबिटीज के मामले सबसे ज्‍यादा हमारे देश में ही पाए गए। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत विश्व की डा‍यबिटीज राजधानी बन जाएगा।''

 

आज भारत में डायबिटीज काफी सामान्‍य बीमारी हो गई है। इसके साथ ही मोटे बच्‍चों में टाइप-2 डायबिटीज भी तेजी से अपने पैर पसार रही है। दिल्‍ली डायबिटिक रिसर्च सेंटर के एक शोध के मुताबिक पिछले 15 से 20 वर्षों में बच्‍चों में मोटापे की दर दोगुनी हो गई है। टाइप-2 डायबिटीज के शिकार 85 फीसदी बच्‍चों का वजन आवश्‍यकता से अधिक था या वे मोटापे के शिकार थे।

 

डॉक्‍टर शालिनी जग्‍गी का कहना है, '' जब बचपन में डायबिटीज होती है, तो आमतौर पर यह टाइप-1 डा‍यबिटीज अथवा जुवेलाइन-ऑनसेट डायबिटीज होती है। इसमें, शरीर इंसुलिन का निर्माण बंद कर देता है। और फिर बच्‍चे को ताउम्र इंसुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है। हालांकि, पिछले दो दशकों में, 10 से 19 वर्ष की आयु के बच्‍चों में टाइप-2 डायबिटीज का असर भी देखा जा रहा है। टाइप-2 डायबिटीज में शरीर तो इंसुलिन का निर्माण करता है, लेकिन कई कारणों, जैसे मोटापा, शारीरिक असक्रियता और खराब आहार, से इंसुलिन प्रतिरोधकता पैदा हो जाती है और इंसुलिन सही प्रकार से प्रयोग नहीं हो पाता। इसलिए, डायबिटीज काफी कम उम्र में नजर आ रही है।''


डायबिटीज के कारण

रिसर्च सोसायटी फॉर द स्‍टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया के डॉक्‍टर राजीव चावला का कहना है, ''हालांकि, बच्‍चों में डा‍यबिटीज के वास्‍तविक कारणों का पता अभी तक नहीं चल पाया है, लेकिन स्‍वप्रतिरक्षा तंत्र (जहां पेनक्रियाज, जो इंसुलिन का निर्माण करता है, वह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा समाप्‍त कर दिया जाता है) एक कारण हो सकता है। इसके साथ ही कुछ अन्‍य अनुवांशिक और पारिस्थितिक कारण, जैसे सामान्‍य बीमारी, जो‍ किसी भी बच्‍चे में डायबिटीज का रूप ले सकती है।''


बच्‍चों में डायबिटीज के लक्षण

उल्‍टी के साथ पेट दर्द, सिर दर्द अथवा अधिक पेशाब की शिकायत और थकान आदि कुछ इसी प्रकार के लक्षण हैं, जो इस ओर इशारा करते हैं कि बच्‍चे को डायबिटीज हो सकती है। डॉक्‍टर शालिनी जग्‍गी का कहना है, ''हालांकि, इस प्रकार की कुछ समस्‍यायें किसी भी बच्‍चे में सामान्‍य रूप से देखी जा सकतीं हैं, लेकिन कुछ ही सप्‍ताह में इन समस्‍याओं का बार-बार लौटकर आना चिंता का विषय हो सकता है और इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।''



अत्‍यधिक पानी पीना, वजन में कमी आना, कमजोरी और थकान, अधिक भूख लगना (कुछ मामलों में भूख कम होना), संक्रमण, जैसे छाले आदि बच्‍चों में डायबिटीज के शुरुआती लक्षण हैं।

डॉक्‍टर राजीव चावला कहते हैं, ''टाइप-1 डायबिटीज से ग्रस्‍त कुछ मरीजों में केटोएसिडोसिस (डीकेए) देखा जाता है, जो एक गंभीर लक्षण है। इस परिस्थिति में बच्‍चे को उल्‍टी, पेट दर्द, निर्जलीकरण, मुंह और होंठ सूखने और आंखें धंसने की शिकायत हो सकती है। डायबिटीज के प्रति जागरुकता होने से अभिभावकों को लक्षणों को जल्‍द पहचानने में आसानी होती है, जिससे वे रोग के गंभीर रूप धारण करने से पहले ही उसका इलाज कर सकते हैं।''


बच्‍चों को होने वाली समस्‍यायें

डॉक्‍टर शालिनी बताती हैं कि टाइप-1 डायबिटीज का सामना करने वाले बच्‍चों को व्‍यस्‍कों के मुकाबले अलग प्रकार की समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है। 'टाइप-1 डायबिटीज बच्‍चों में काफी सामान्‍य है और इससे पीडि़त होने के बाद बच्‍चों के पास और कोई विकल्‍प नहीं बचता, सिवाय इसके कि वे इंसुलिन पर निर्भर रहें। लेकिन, इंसुलिन पेन और इंसुलिन पंप के आ जाने से इंसुलिन इंजेक्‍शन के दर्द से तो राहत मिली ही है। इसके साथ ही, अगर व्‍यक्ति स्‍वस्‍थ जीवनशैली अपनाए और नियमित रूप से शारीरिक व्‍यायाम और ध्‍यान करे, तो वह सामान्‍य जीवन जी सकता है। इस मामले में कभी-कभार छोटी-मोटी पार्टी करना आपको नुकसान नहीं पहुंचाता।

 

बच्‍चों में मोटापे और डायबिटीज का संबंध

आज के दौर में बच्‍चों को जंक फूड और सॉफ्ट ड्रिंक्‍स काफी पसंद हैं। इससे उनका वजन काफी बढ़ जाता है। और अधिक वजन वाले बच्‍चे आसानी से डायबिटीज की गिरफ्त में आ सकते हैं। डॉक्‍टर चावला का कहना है, ' आज के दौर में बच्‍चे जिस प्रकार की जीवनशैली अपना रहे हैं, उसे किसी भी लिहाज से स्‍वस्‍थ नहीं कहा जा सकता। और बुरी खबर यह है कि अगर जंक फूड पर उनकी निर्भरता इसी तरह कायम रही तो परिस्थितियां और भयावह हो सकती हैं। इसके साथ ही तकनीक और अनजाने में शारीरिक गतिविधियां कम हो जाना भी, डायबिटीज की समस्‍या में और इजाफा करेंगी।


मोटापे के कारण टाइप-2 डायबिटीज बच्‍चों में काफी तेजी से फैल रही है, हालांकि पहला ऐसा नहीं था। मोटापे के कारण शरीर इंसुलिन प्रतिरोधक हो जाता है। तेजी से बदलती जीवनशैली, खानपान की अनियमित आदतें, जरूरत से ज्‍यादा कैलोरी का सेवन, अधिक मात्रा में शर्करा और संतृप्‍त वसा का सेवन सेहत के लिए नयी चुन‍ौतियां पेश कर रही हैं। इसके साथ ही भोजन में फाइबर की कम मात्रा और शारीरिक गतिविधियों में कमी आना इन हालात की मुख्‍य वजह है।

 

बचाव ही इलाज है

शारीरिक गतिविधियों में अधिक संलग्‍न रहें
रोजाना 30-45 मिनट तेज चाल चलें
वजन पर काबू रखें, मोटापा डायबिटीज की बड़ी वजह है
संतुलित व पौष्टिक आहार लें

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