पिछले एक दशक में भारतीय बच्चों में ऑटिज्म के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ऑटिज्म (Autism Spectrum Disorder - ASD) एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। ऑटिज्म मुख्य रूप से व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार, सामाजिक कनेक्शन बनाने और दूसरों के साथ बातचीत करने के पैटर्न को प्रभावित करता है। इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स द्वारा की रिसर्च बताती है कि भारत में लगभग हर 68 बच्चों में से 1 बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित (Genetic Disorder) हैं।
शहरी क्षेत्रों में ऑटिज्म जैसे बीमारी के प्रति थोड़ी जागरूकता देखी जाती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऑटिज्म को आज भी एक प्रकार का मानसिक रोग या बोलने में देरी की परेशानी समझा जाता है। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है क्या ऑटिज्म जेनेटिक कारणों से भी होता है (Is Autism a Genetic Disorder)?
ऑटिज्म क्या है?- What is Autism Disorder
शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. आस्तिक जोशी के अनुसार, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक ऐसा तंत्रिका संबंधी विकासात्मक विकार है। आमतौर पर ऑटिज्म की पहचान 2 से 3 साल के बच्चों में की जाती गै। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को दूसरों से बातचीत करने में परेशानी, दोहराए जाने वाले व्यवहार (जैसे बार-बार हाथ हिलाना, लाइन से चीजें लगाना), शब्दों को बोलने में कठिनाई और भाषा विकास में देरी की परेशानी देखी जाती है।
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क्या ऑटिज्म जेनेटिक होता है- Is autism genetic
ओनलीमॉयहेल्थ के साथ बातचीत के दौरान डॉ. आस्तिक जोशी बताते हैं कि अब तक ऑटिज्म पर जो रिसर्च हुई है, उसमें ये बात सामने निकलकर आई है कि किसी बच्चे को जेनेटिक कारणों से भी ऑटिज्म हो सकता है। डॉक्टर बताते हैं कि परिवारों में देखा गया है कि जिन माता-पिता का एक बच्चा ऑटिस्टिक होता है, उनके दूसरे बच्चों में ऑटिज्महोने की संभावना सामान्य से 20 गुना अधिक होती है। यदि किसी परिवार में एक या एक से अधिक सदस्य ऑटिज्म से प्रभावित हैं, तो यह दर्शाता है कि यह विकार पारिवारिक जीन से जुड़ा हो सकता है। इसलिए हम ये कह सकते हैं कि जेनेटिक के कारण भी ऑटिज्म जैसे डिसऑर्डर हो सकता है।
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कौन से जीन ऑटिज्म से जुड़े हुए हैं- Which genes are linked to autism
मनोचिकिस्तक के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अब तक 1000 से ज्यादा जीन की पहचान हो चुकी है, जो भविष्य में ऑटिज्म का कारण बन सकते हैं। ऑटिज्म से जुड़े मुख्य जीन जिन्हें खोजा गया है, उनमें शामिल हैः
1. SHANK3- यह जीन न्यूरोन के संचार (synaptic function) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
2. NRXN1- ये जीन न्यूरोनल कनेक्शन को बनाए रखने में मददगार होते हैं।
3. MECP2- यह जीन Rett Syndrome (एक प्रकार का ऑटिज्म से जुड़ा विकार) से जुड़ा होता है।
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क्या ऑटिज्म के लिए जेनेटिक कारण ही पर्याप्त हैं?
डॉक्टर कहते हैं कि ऑटिज्म के लिए जेनेटिक कारण बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सिर्फ जीन ही इसका एकमात्र कारण नहीं होते हैं। कई अन्य कारण भी हैं जिसकी वजह से बच्चों को ऑटिज्म डिसऑर्डर हो सकता है। इसमें शामिल है।
-प्रेग्नेंसी के दौरान मां का किसी प्रकार के संक्रमण से प्रभावित होना।
- प्रेगनेंसी में बिना डॉक्टरी सलाह के कुछ दवाओं का सेवन (जैसे Valproic acid) करना।
- बच्चे के जन्म के समय विभिन्न कारणों से वजन कम होना।
- प्रेगनेंसी में हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज जैसी बीमारी होना।
- माता-पिता जो 40 की उम्र के बाद गर्भधारण करते हैं, उनके भी बच्चों में ऑटिज्म होने का खतरा ज्यादा रहता है।
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क्या ऑटिज्म को रोका जा सकता है?
डॉ. आस्तिक जोशी कहते हैं कि अगर किसी बच्चे को जेनेटिक कारणों से ऑटिज्म डिसऑर्डर हुआ है, तो इसे रोकना बहुत ही मुश्किल काम है। लेकिन इसे थेरेपी और डॉक्टरी इलाज के जरिए मैनेज किया जा सकता है।
निष्कर्ष
डॉ. आस्तिक जोशी के साथ बातचीत के आधार पर हम ये कह सकते हैं कि ऑटिज्म एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। हालांकि ऑटिज्म का हर कारण जेनेटिक नहीं होता है। इन दिनों लॉन्ग स्क्रीनिंग के कारण भी बच्चों में ऑटिज्म डिसऑर्डर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर आपके बच्चे को बोलने में किसी प्रकार की परेशानी हो रही है, वो दूसरों से बातचीत करने में डरता है, तो ये ऑटिज्म हो सकता है। इस विषय पर डॉक्टर से बात करें और बच्चे का इलाज करवाएं।