शादी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता है। हर रिश्ते में निबाह के कुछ उसूल, नियम, सिद्धांत होते हैं। जरूरी नहीं, जो उसूल या नियम एक रिश्ते पर सही बैठें, वे दूसरे रिश्ते पर भी उसी तरह लागू हो जाएं। समय के साथ हर चीज बदलती है तो पति-पत्नी के रिश्तों में भी बदलाव लाजिमी है। पिछले कुछ वर्षों में शादी की संस्था में भी कई बदलाव देखने को मिले हैं। कुछ नियम पुराने हो गए और उनकी जगह कुछ नए नियमों ने ले ली है। अच्छे हों या बुरे, इसका फैसला हर दंपती अपने हिसाब से करता है।
पहले के समय में शादी में पार्टनर की इच्छा को महत्व देना जरूरी है। लेकिन अब यूं तो नया नियम इस पुराने नियम को खारिज नहीं करता, लेकिन यह कहता है कि शादी में इतना समर्पित होना भी अच्छा नहीं कि अपना व्यक्तित्व ही खत्म हो जाए। अपनी इच्छाओं-जरूरतों को समझना जरूरी है, तभी रिश्तों में खुश रह पाएंगे।। खुश नहीं रहेंगे तो जिंदगी में किसी मोड़ पर शिकायतें जन्म लेने लगेंगी। इसलिए अपनी इच्छाओं व जरूरतों में फर्क करना और उन्हें समझना जरूरी है। खुद की खुशी नहीं चाहेंगे तो दूसरे को भी खुश नहीं रख पाएंगे।।
इसके साथ ही पहले घर में मेल मेंबर का महत्व ज्यादा है। वह (पति) जो कहे उसे मानना होता था। जबकि आज आलम ये है कि शादी एक कंपेनियनशिप है, जिसमें दोनों की बातों, राय या विचारों का बराबर महत्व है। इसीलिए दूसरे को सुनना और उदारता से प्रतिक्रिया करना जरूरी है। नए दंपती पार्टनर की बातों को सुनना-स्वीकारना जानते हैं, मगर उन्हें आदेश मान कर उनका अनुकरण नहीं करते। पार्टनर से सहमत नहीं हैं तो क्रोध करने या तुरंत प्रतिक्रिया करने के बजाय वे शांति से अपनी राय व्यक्त करना जानते हैं। कहा जा सकता है कि शादी में अब काफी हद तक बराबरी की संभावनाएं बनने लगी हैं। अगर आप चाहते हैं आपका रिश्ता कभी टूटे या कभी दरार ना आए तो इन बातों का ध्यान रखें।
1. शादी एक लॉन्गटर्म इन्वेस्टमेंट की तरह है। जितना प्यार डालेंगे, भविष्य में दुगना होकर वापस मिलेगा।
2. ज्यादातर झगड़ों का तार्किक आधार नहीं होता। वे किसी भी बात पर हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सुलझाने के लिए तार्किक होने की जरूरत पड़ती है।
3. बच्चे भले ही कितने प्यारे लगें, मगर रिश्तों पर इनका दबाव बना रहता है। बच्चों की जिम्मेदारियां निभाएं मगर अपने रिश्तों को सर्वाधिक महत्व दें, तभी खुश रह सकेेंगे।
4. शादी को निभाने के लिए त्याग, समर्पण, परस्पर भरोसा, समझौता, सामंजस्य जैसी बातें जरूरी हैं, मगर इनमें से किसी भी पहलू पर अति से रिश्ते में खटास पैदा हो सकती है।
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