शादी में 'मैं' और 'हम' दोनों की बराबर अहमियत है। शादी का मतलब यह नहीं कि अपनी निजता खत्म कर दी जाए। अब नए कपल्स पुरानी पीढ़ी की इस धारणा को तोडऩे लगे हैं कि शादी सिर्फ जिम्मेदारियां निभाने का नाम नहीं है। नए दंपती एक-दूसरे के पर्सनल स्पेस का महत्व समझ रहे हैं और पार्टनर को स्पेस देने को तैयार भी हैं। मगर वे 'वी स्पेस' को भी उतना ही महत्व देते हैं। उन्हें मालूम है कि कब उन्हें अपना एकांत चाहिए और कब पार्टनर के साथ होना चाहिए। अपने शौक भी वे पूरे करते हैं। इस बारे में नई पीढ़ी की सोच बिलकुल स्पष्ट है।
अच्छा है झगड़ा होना
पहले समझा जाता था कि अगर रिश्तों में झगड़ा हो रहा है तो इसका मतलब कि रिश्ता कमजोर है या फिर रिश्तों में दरार पड़ रही है। जबकि आज की पीढ़ी का मानना है कि झगड़ों से रिश्ते में प्यार बढ़ता है, बशर्ते उन्हें सही समय पर सुलझाया जाए और तार्किक ढंग से उन पर सोचा जाए। नए जोड़े मानते हैं कि पति-पत्नी होने का अर्थ यह नहीं कि हर बात पर समान ढंग से सोचा जाए।
मतभिन्नता हो सकती है और कई बार जिम्मेदारियों, पेरेंटिंग, लिविंग स्टाइल या अन्य छोटी-छोटी बातों पर बहसें हो सकती हैं। बहस हो भी क्यों नहीं! आखिर अपनी बात रखने का यह सबसे प्रभावशाली तरीका है। कई बार बहस बढ़ जाती है और झगड़े में तब्दील हो जाती है। लेकिन इन छोटे-छोटे झगड़ों को आपसी बातचीत से सुलझाने की कला में भी ये नए दंपती माहिर हैं। अपनी बात कहना, अपना पक्ष रखना, अपने हक के लिए लडऩा उन्हें आता है। झगड़े अंतहीन नहीं होते, वे किसी ठोस निर्णय तक पहुंचने के लिए होते हैं।
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घर की बातें बाहर करना
इसके अलावा पहले घर के झगड़ों को घर में ही सुलझाने का नारा दिया जाता था। बड़े बुजुर्गों का कहना था कि कुछ बातें घर की चारदीवारी के भीतर ही ठीक हैं, उन्हें किसी से शेयर नहीं किया जाना चाहिए। इस पुरानी धारणा को नए दंपती एक सीमा के भीतर ही स्वीकार करते हैं। जब तक उन्हें लगता है कि वे खुद समस्या को सुलझा सकते हैं, तब तक वे मुद्दों को तीसरे तक नहीं पहुंचने देते। लेकिन जैसे ही उन्हें लगता है कि कुछ बातें ऐसी हैं, जिन्हें दोनों मिल कर नहीं सुलझा पा रहे हैं तो वे किसी तीसरे की मदद लेने से भी नहीं हिचकिचाते। यह तीसरा उनका पारिवारिक सदस्य, रिश्तेदार या भरोसेमंद दोस्त हो सकता है। जरूरत पडऩे पर वे बिना समय गंवाए प्रोफेशनल हेल्प भी लेते हैं।
तलाक की बात
शादी इसी जन्म में निभाया जाने वाला रिश्ता है। यह बंधन नहीं, दो व्यक्तियों के साथ चलने के लिए बनाई गई सामाजिक-पारिवारिक संस्था है। कई बार ऐसी स्थितियां आ जाती हैं, जब दोनों का साथ चलना असंभव हो जाता है। आज की पीढ़ी का मानना है कि पुरजोर कोशिशों के बावजूद यदि मुद्दे नहीं सुलझते तो रिश्तों को ढोते रहने के बजाय समझदारी से अलग हो जाते हैं। कई कपल्स ऐसे भी हैं, जिनके बच्चे हैं और अलग होने के बावजूद वे परवरिश से जुड़ी जिम्मेदारियां मिल-जुलकर निभा रहे हैं।
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