
How To Treat Adhd In Kids In Hindi: एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर एक प्रकार का मानसिक विकार है। आमतौर पर यह समस्या छोटे बच्चों को होती है। इस समस्या के तहत मरीज को लंबे समय तक एक ही जगह पर बैठने में दिक्कत होती है और वह अत्यधिक सक्रिय रहता है। इस समस्या की वजह से बच्चा किसी काम में फोकस नहीं कर पाता और कुछ बच्चों में बिहेवियरल इश्यूज भी देखने को मिलते हैं। इस तरह के बच्चे को स्पेशल केयर और अटेंशन की जरूरत होती है। सवाल है ऐसी स्थिति में पेरेंट्स क्या करें? इस संबंध में पेरेंट्स की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें बहुत सावधानी के साथ इस तरह के बच्चे की परवरिश करनी चाहिए। नई दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पीटल में बतौर कंसल्टेंट जुड़ी दिपाली बत्रा से जानिए, इस तरह के बच्चे का ट्रीटमेंट किस तरह किया जाए।
ट्रीटमेंट के तरीके
सबसे पहले यह जरूरी है कि पेरेंट्स अपने इस तरह के बच्चे को प्रॉपर ट्रीटमेंट दिलाएं। बच्चे की स्थिति को देखते हुए बच्चे को दवाईयां दी जा सकती है, उसे क्लीनिक सइकोलॉजिस्ट के पास रिफर किया जा सकता है या बिहेवियरल सेशंस दिए जा सकते हैं। इस तरह के उपचार के बाद बच्चे की जोर रिपोर्ट बनती है, उसी के आधार पर पेरेंट्स को बच्चे के साथ पेश आना चाहिए।
कैसे करें मदद
टीचर से करें बातः अगर यह डायग्नोस हो जाए कि आपके बच्चे को इस तरह की समस्या है, तो आप सबसे पहले उसकी रिपोर्ट उसकी टीचर को दें। रिपोर्ट की मदद से टीचर बच्चे को उन चीजों से दूर रखेंगे, जिससे बच्चा डिस्ट्रैक्ट होता है या जिससे बच्चे का मन भटकता है। इसके अलावा टीचर इस तरह के बच्चे को अपने सामने बैठाएंगे ताकि बच्चे के बिहेवियर पर कड़ी नजर रख सके। इस मामले में स्कूल के काउंसलर्स भी मददगार साबित होते हैं।
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पेरेंट्स की ट्रेनिंग जरूरी है: आप इस बात को समझें कि एडीएचडी वाले बच्चे सामान्य बच्चों से अलग हैं। ऐसे में उनके साथ डील करना, सामान्य पेरेंट्स के लिए संभव नहीं है। इसलिए विशेषज्ञ पेरेंट्स को कुछ तकनीक के बारे में बताते हैं, जिन्हें अमल में लाकर उनके लिए अपने बच्चे के साथ डील करना आसान हो जाता है। विशेषकर घर की सेटिंग्स बदलने में मदद करते हैं। असल में, एडीएचडी वाले बच्चों को शांत रखना जरूरी है। कई बार उन्हें संभालते हुए पेरेंट्स एग्रेसिव हो जाते हैं और गलत तरीके से बच्चे के साथ पेश आते हैं। एडीएचडी वाले बच्चों के साथ इस तरह पेश आना सही नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए पेरेंट्स की स्पेशल ट्रेनिंग की जाती है।
बच्चे के दिन को ऑर्गनाइज रखें: एडीएचडी के बच्चे के पूरे दिन को ऑर्गनाइज्ड रखना बहुत जरूरी है। इसके लिए पेरेंट्स को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। दरअसल, ऐसे बच्चों को नहीं पता होता है कि उन्हें पूरे दिन में क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए? इसके लिए पेरेंट्स को चाहिए कि उन्हें समय-समय पर कुछ प्रोडक्टिव और पॉजिटिव करने की सलाह दी जाए। साथ ही पेरेंट्स भी कभी-कभी उनके साथ मिलकर कुछ काम करें।
बच्चे का स्क्रीन टाइम कम करना: जिन बच्चे को एडीएचडी है, उनका स्क्रीन टाइम कम होना चाहिए। ज्यादा स्क्रीन टाइम उनकी स्थिति को बिगाड़ सकता है। इसके लिए पेरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चे के साथ ज्यादा से बातचीत करें, खेल-कूद करें। इसके साथ ही अगर बच्चा काफी ज्यादा डिस्ट्रैक्टिंग है, तो उन चीजों से दूर रखें, जिससे उसका मन भटकता है या मन अशांत रहता है। इलाज के शुरुआती दिनों में उसके पास वही चीजें रखें, जो उसका मन शांत रखने में मदद करती हैं।
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