मेरी दीदी की बेटी, कुछ दिन पहले लखनऊ में मेरे घर आई। जिस दिन वो आई, तब से अभी तक रोज बारिश हो रही थी। बच्ची के चेहरे पर हमें छोटे-छोटे दाने नजर आए, तो दीदी ने बताया कि यह बारिश की नमी के कारण हो रहा है। अगले दिन डॉक्टर से चेकअप करवाया, तो पता चला कि उसे वायरल इंफेक्शन हो गया है।
लखनऊ के केयर इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज की एमडी फिजिशियन डॉ सीमा यादव ने बताया कि मानसून में नवजात शिशुओं में वायरल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। मानसून के नमी वाले चिपचिपे मौसम में वायरस और बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं। इससे बच्चों को सांस से संबंधित बीमारियां, फंगल इंफेक्शन, बुखार जैसी समस्याएं होने लगती हैं। वयस्कों के मुकाबले नवजात शिशुओं को इंफेक्शन और बीमारियों का खतरा इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि उनकी इम्यूनिटी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाती जिस वजह से वो जल्दी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। ऐसा मानसून के दौरान ज्यादा होता है। वायरल इंफेक्शन होने पर शिशु की स्किन में एलर्जी, बुखार, व्यवहार में चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं। इससे बचने के लिए माता-पिता को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है साथ ही उन्हें कुछ उपायों की मदद लेना चाहिए ताकि नवजात शिशुओं को मानसून में वायरल इंफेक्शन से बचाया जा सके।
नवजात शिशु को मानसून में वायरल इंफेक्शन होने का मतलब क्या है?- Viral Infection in Newborn During Monsoon
नवजात शिशु को वायरल इंफेक्शन होने का मतलब यह है कि शिशु को बुखार, स्किन रैशेज, दस्त, उल्टी, सांस की तकलीफ, सुस्ती और दूध पीने में रुचि न होने जैसे लक्षण नजर आते हैं। ऐसे में शिशु को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाकर चेकअप करवाना चाहिए। वायरल इंफेक्शन होने पर, शिशु के शरीर में वायरस प्रवेश कर जाता है जिससे उसकी इम्यूनिटी, लड़ने की पूरी कोशिश करती है। लेकिन शिशु की इम्यूनिटी बहुत कमजोर होती है और उसे नोरोवायरस, इंफ्लुएंजा, आरएसवी जैसे इंफेक्शन हो सकते हैं।
इसे भी पढ़ें- बदलते मौसम में बच्चों को हो सकता है वायरल निमोनिया, जानें इसके लक्षण और बचाव के उपाय
नवजात शिशु में वायरल इंफेक्शन के लक्षण- Symptoms of Viral Infection in Newborns
- लगातार बुखार (Fever) आना।
- सुस्ती या चिड़चिड़ापन महसूस होना।
- शिशु का ठीक से नींद पूरी न कर पाना।
- शिशु को सांस लेने में तकलीफ होना।
- छींक, खांसी और बंद नाक जैसी समस्याएं होना।
- नवजात शिशु को दस्त या उल्टी होना।
- त्वचा पर रैशेज, खुजली या लाल दाने होना।
- शिशु का दूध पीने में रुचि न होना।
ये सभी नवजात शिशु में वायरल इंफेक्शन के लक्षण हो सकते हैं। इनके नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करवाएं।
नवजात शिशु में वायरल इंफेक्शन की पुष्टि कैसे होती है?- Viral Infection Diagnosis in Newborn
- सबसे पहले डॉक्टर, शिशु के शरीर में वायरल इंफेक्शन के लक्षणों की जांच करते हैं।
- इसके बाद ब्लड टेस्ट किया जाता है ताकि पता चले कि इंफेक्शन वायरल है या बैक्टीरियल।
- जरूरत होने पर यूरिन या स्टूल टेस्ट भी किया जाता है।
- नवजात शिशुओं का चेस्ट एक्स-रे भी किया जा सकता है।
नवजात शिशु को वायरल इंफेक्शन से कैसे बचाएं?- How to Prevent Viral Infection in Newborn During Monsoon
- नवजात शिशु के आसपास साफ-सफाई बनाएं रखें।
- शिशु को छूने से पहले हाथों को साबुन और पानी की मदद से धो लें।
- शिशु को जिस बेड पर सुलाएं, उसकी बेडशीट, कवर आदि को बदलें।
- नवजात शिशु को मानसून में डायपर ज्यादा न पहनाएं और शिशु को ज्यादा से ज्यादा ड्राई रखें।
- शिशु को कॉटन फैब्रिक वाले कपड़े ही पहनाएं।
- नवजात शिशु की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए ब्रेस्टफीडिंग कराएं।
- शिशु की त्वचा पर हाइपोएलर्जेनिक क्रीम लगाएं।
- अगर नवजात शिशु की त्वचा पर रैशेज या रेडनेस नजर आए, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
- नवजात शिशु को समय पर जरूरी वैक्सीन लगवाएं, इस तरह आप उसे वायरल बीमारियों से बचा सकते हैं।
- नवजात शिशु का हर 2 महीने में 1 बार नियमित चेकअप होना चाहिए, ताकि असामान्य लक्षणों की पहचान की जा सके।
मानसून के दौरान नवजात शिशुओं को वायरल इंफेक्शन से बचाने के लिए आप साफ-सफाई, इम्यूनिटी बढ़ाने और नियमित चेकअप जैसे उपायों को अपनाएं। अगर वायरल इंफेक्शन को नजरअंदाज किया, तो यह गंभीर रूप ले सकता है।
उम्मीद करते हैं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। इस लेख को शेयर करना न भूलें।
FAQ
नवजात को वायरल इंफेक्शन कैसे होता है?
संक्रमित सांस, खांसी, छींक या दूषित चीजों से और लोगों के संपर्क से वायरल इंफेक्शन, शिशु को बीमार बना सकता है।नवजात शिशु को वायरल इंफेक्शन कितने दिनों तक रहता है?
नवजात शिशुओं में वायरल इंफेक्शन आमतौर पर 5 से 10 दिनों तक रहता है, लेकिन गंभीर मामलों में ज्यादा समय भी लग सकता है।क्या नवजात शिशुओं में वायरल इंफेक्शन जानलेवा हो सकता है?
हां, कमजोर इम्यूनिटी के कारण वायरल इंफेक्शन तेजी से बढ़कर जानलेवा बन सकता है। खासकर नवजात शिशुओं में सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि शिशुओं की इम्यूनिटी कमजोर होती है।