
कैंसर हमेशा से एक खतरनाक बीमारी रही है और ये दुख की बात है कि वर्तमान दौर में भारत कैंसर के मामलों में होने वाली संभावित वृद्धि का सामना कर रहा है। भारत की वर्तमान आर्थिक और मेडिकल स्थिति कैंसर की संख्या में बढ़ोतरी ही कर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, वर्ष 2025 के अंत तक भारत में कैंसर रोगियों की संख्या वर्तमान मरीजों की संख्या से 5 गुनी हो जाएगी, जिसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा होगी। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि स्वास्थ्य की तरफ ध्यान दिया जाए।
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1 करोड़ मरीजों पर 2000 कैंसर स्पेशलिस्ट
सबसे अधिक दुख की बात तो यह है कि हमारे देश में इस समय 1 करोड़ से ज्यादा कैंसर रोगियों की देखभाल के लिए सिर्फ 2000 कैंसर स्पेशलिस्ट हैं।
देश की स्वास्थ्य सेवाएं पहले ही बुरी अवस्था में हैं, यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है। ये हैरान करने वाली बात है कि हर साल भारत में सिर्फ एक नया गाइनेकोलॉजिकल ओंकोलॉजिस्ट (स्त्रियों में होने वाले कैंसर का विशेषज्ञ डॉक्टर) तैयार होता है जो कि केवल गर्भाशय, ओवरी या योनि में होने वाले कैंसर का इलाज करते हैं।
2020 तक 20 प्रतिशत तक की वृद्धि
अगर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों की मानें, तो वर्ष 2020 तक कैंसर के मामलों में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि की संभावना है। अगर ऐसा होता है तो स्थिति और अधिक खराब हो सकती है। इसे कम करना तभी संभव है, जब बड़े स्तर पर इसके लिए कदम उठाए जाएं और मेडिकल कॉलेजों में सीटों को बढ़ाया जाए। क्योंकि कैंसर कोई एक बीमारी नहीं है और ये कई तरह की होती है। कैंसर 200 से भी ज्यादा तरह की बीमारियों का समूह है और इन सारे तरहों के कैंसर के इलाज के लिए हमारे पास सीटें बहुत कम हैं।
यह है देश की स्वास्थ्य वर्तमान स्थिति-
- देश में प्रति 10,000 लोगों पर 9 हॉस्पिटल बेड हैं।
- पैरामेडिकल स्टाफ और लैब टेक्नीशियन आदि की भारी कमी है।
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में 300 से ज्यादा कैंसर अस्पतालों में से 40 फीसदी में जरूरी सुविधाओं और उपकरणों की कमी है।
- ऐसे में कैंसर से लड़ने के लिए 600 नए कैंसर स्पेशलिटी अस्पतालों की जरूरत है।
राज्यों कि स्थिति
अगर इन आंकड़ों को राज्यवर तौर पर देखें तो स्थिति और भी खराब है। एम्स रायपुर में ही 305 फैकल्टी की सीटें होने के बावजूद सिर्फ 64 ही भरी जा सकी हैं। वहीं 18,00 नर्सों की जरूरत पर केवल 200 नर्सें काम कर रही हैं, वो भी कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रही हैं। इसी तरह भुवनेश्वर में खुले एम्स में सिर्फ 68 फैकल्टी हैं।
गांव औऱ शहरों में अंतर
यह बीमारी भी लोगों की तरह गांव और शहरों में अंतर करती है। क्योंकि मुंबई की 30 महिलाओं में से एक कैंसर की मरीज हैं, तो महाराष्ट्र के कुछ गांवों में यह अनुपात 100 में से एक महिला का है। चिकित्सकों औऱ मरीजों के अनुपात में भारी अंतर, मेडिकल कॉलेजों में कम सीटों की संख्या के साथ हम देश में बढ़ते कैंसर के मामलों का सामना नहीं कर पाएंगे।
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