
डाउन सिंंड्रोम एक आनुवंशिक विकार है जिसे रोका नहीं जा सकता पर जन्म से पहले इसका पता लगाया जा सकता है। जिन लोगों को डाउन सिंंड्रोम की समस्या होती है उनमें शारीरिक जोखिम ज्यादा होते हैं। डाउन सिंंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति को जीवन भर मेडिकल सुविधाओं की जरूरत पड़ती है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हेल्दी जीवन जीते हैं। इस लेख में हम डाउन सिंंड्रोम के कारण हड्डियों और मसल्स पर पड़ने वाले असर या प्रभाव पर चर्चा करेंगे। इस लेख में हमने लखनऊ के डफरिन अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सलमान खान से बात की।

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डाउन सिंंड्रोम के लक्षण की बात की जाए तो लक्षण दूसरे से अलग होते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति की जीभ में ज्यादा उभार नजर आता है। चेहरे का चपटापन ऐसे लोगों में ज्यादा होता है। मांसपेशियों की खराब टोन बच्चों को कोई भी चीज सीखने में ज्यादा समय लगता है ये सभी डाउन सिंड्रोम के लक्षण होते हैं। जिन बच्चों को डाउन सिंंड्रोम की समस्या होती है उन्हें ध्यान न देने की समस्या होती है वहीं ऐसे बच्चों को बोलने में दिक्कत होती है। आगे हम जानेंगे डाउन सिंड्रोम के कारण बच्चों को हड्डियों से जुड़ी क्या समस्याएं हो सकती हैं।
1. विटामिन डी की कमी (Vitamin D deficiency)
जिन लोगों को डाउन सिंंड्रोम होता है उन्हें सन का एक्सपोजर नहीं मिल पाता जिसके कारण विटामिन डी की कमी हो जाती है। विटामिन डी की कमी के कारण फ्रैक्चर और हड्डियों से जुड़ी बीमारियां जैसे अर्थराइटिस या गठिया रोग का सामना करना पड़ता है। बच्चों की नॉर्मल ग्रोथ के लिए विटामिन डी जरूरी है, और बोन्स की अच्छी हेल्थ और कैंसर से बचाव में भी विटामिन डी का अहम रोल है, डॉक्टर की सलाह पर ऐसे बच्चों को विटामिन डी का सप्लीमेंट दिया जा सकता है।
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2. लो बोन मिनरल डेनसिटी (Low bone mineral density)
बचपन के दौरान बोन मास आगे चलकर बोन हेल्थ के लिए एक जरूरी कॉम्पोनेंट बन जाता है। बोन मास की कमी के चलते आगे चलकर ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण नजर आ सकते हैं। डाउन सिंंड्रोम का संबंध लो बोन मिनरल डेन्सिटी के साथ है। फिजिकल एक्सरसाइज की कमी, मसल्स स्ट्रेंथ कम होने, सन का एक्सपोजर न होने, विटामिन डी की कमी के चलते लो बोन मिनरल डेनसिटी की समस्या ऐसे लोगों में हो सकती है।
3. डाउन सिंंड्रोम से पॉश्चर ठीक होता है (Down syndrome posture)

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डाउन सिंंड्रोम के कारण बच्चों का पॉश्चर खराब हो सकता है। पॉश्चर को ठीक करने के लिए माता-पिता बच्चे की फिजिकल थैरेपी करवा सकते हैं। फिजिकल थैरेपी से पॉश्चर ठीक होता है।
4. चलने या खड़े होने में दिक्कत होती है (Unable to walk or stand)
जिन बच्चों को डाउन सिंंड्रोम की समस्या होती है उनमें बैलेंसिंंग की दिक्कत हो सकती है। ऐसे बच्चों को 14 से 17 साल के बीच दिक्कत आती है। ऐसे बच्चों को डाउन सिंंड्रोम के चलते, चलने या खड़े रहने में दिक्कत होती है और उनकी मांसपेशियां में चलने लायक ताकत नहीं होती है।
5. मसल्स की ताकत कम हो जाती है (Reduced muscle strength)
बोन मास बच्चों के डेवल्पमेंट के लिए जरूरी है। जिन बच्चों को डाउन सिंड्रोम की समस्या होती है उनकी मसल्स में उतनी स्ट्रेंथ या ताकत नहीं होती कि वो सामान्य काम जैसे चलना, पॉश्चर बनाना आदि कर सके। डाउन सिंड्रोम के कारण उनके कई ज्वॉइंट ठीक तरह से काम भी नहीं करते हैं।
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डाउन सिंड्रोम से बच्चे को कैसे बचाएं? (How to prevent down syndrome)
डाउन सिंंड्रोम को रोका नहीं जा सकता। हालांकि माता-पिता इसके लक्षण को कम करने के लिए कुछ उपाय जरूर अपना सकते हैं-
- प्रेगनेंसी के समय महिलाओं की आयु अगर 35 है तो जन्मजात विकार की समस्या नहीं होगी। विकार का पता लगाने के लिए आप डायगनोसिस करवा सकते हैं।
- डाउन सिंड्रोम के ज्यादातर केस में मांओं की उम्र 35 से ज्यादा होती है। ये एक जोखिम कारक है जिसका ध्यान रखकर आप बच्चे को डाउन सिंंड्रोम की समस्या से बच्चे को बचा सकते हैं।
आप प्रेगनेंसी के दौरान या जन्म के बाद बच्चे में डाउन सिंड्रोम की होने का पता लगा सकते हैं।
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