वायु प्रदूषण से हॉर्मोंस भी हो रहे हैं प्रभावित, एक्सपर्ट से जानें इनफर्टिलिटी की समस्या से बचाव

 हवा की गुणवत्ता खराब होने के साथ न केवल दृष्टि पर प्रभाव पड़ता है बल्कि पुरुषों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम (प्रजनन प्रणाली) पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। 
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वायु प्रदूषण से हॉर्मोंस भी हो रहे हैं प्रभावित, एक्सपर्ट से जानें इनफर्टिलिटी की समस्या से बचाव

ओएमएच यानि ओन्लीमाई हेल्थ ने एक स्पेशल कैंपेन चलाई है। इसके जरिये हम आपके साथ वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। ध्यान दें कि इस कैंपेन में आपको संबंधित बीमारियों के लक्षण, कारण और बचाव के बारे में भी बताया जाएगा। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि वायु प्रदूषण  हार्मोन्स को कैसे प्रभावित कर सकता है। पूरा विश्व covid 19 की मार झेल रहा है बढ़ता वायु प्रदूषण एक गंभीर परिस्थिति की ओर इशारा कर रहा है। वायु प्रदूषण ना सिर्फ फेफडों ,आंख आदि के लिए नुकसानदेह है बल्कि प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर रहा है। प्रदूषित वायु में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है, जो स्पर्म्स को नुकसान पहुंचाती है। हवा की खराब हो रही गुणवत्ता लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि यह न सिर्फ उनके पल्मोनरी सिस्टम, हृदय और आंखों को नुकसान पहुंचा रही है बल्कि उनके हार्मोन्स को भी प्रभावित कर रही है, विषेशकर पुरुषों में। हवा की गुणवत्ता खराब होने के साथ न केवल दृष्टि पर प्रभाव पड़ता है बल्कि पुरुषों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम (प्रजनन प्रणाली) पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। पढ़ते हैं आगे...

 air pollution

महिलाओं की फर्टिलिटी के लिए भी हानिकारक

वायु प्रदूषण पुरुषों के साथ महिलाओं की फर्टिलिटी के लिए भी हानिकारक है। महिलाओं के ओवरियन फॉलिकल, जहां अंडे विकसित होते हैं, प्रदूषण के कारण डैमेज हो जाते हैं। जो महिला ज्यादा वक्त बाहर बिताती हैं तो प्रदूषण के लगातार एक्सपोजर के कारण न सिर्फ फॉलिकल्स को नुकसान पहुंचता है बल्कि अंडों के विकास की प्रक्रिया भी रुक जाती है।

प्रदूषित हवा में कुछ कण विशेषतौर पर फर्टिलिटी को नुकसान पहुंचाते हैं। हाइड्रोकार्बन वाले पीएम10 हार्मोनल बदलावों से सीधे-सीधे जुड़े होते हैं। इनमें पीएम10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड आदि शामिल हैं। इन कणों से न केवल इनफर्टिलिटी की समस्या होती है बल्कि गर्भपात की समस्या भी होती है।

अच्छी बात ये है कि ये कण कई बार आईवीएफ के सक्सेस रेट के लिए भी जिम्मेदार होते हैं, लेकिन इसको प्रमाणित करने के लिए अभी तक इसपर किसी प्रकार की स्टडी या रिसर्च नहीं की गई है। प्रदूषण के बढ़ने के साथ इनफर्टिलिटी के मामलों में लगातार वृद्धि देखी गई है।

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पुरुषों की प्रजनन क्षमता भी धीमी

विशेषज्ञों का कहना है कि हवा की गुणवत्ता खराब होने के साथ पुरुषों की प्रजनन क्षमता भी धीमी होती जाती है, जिसके कारण दंपत्ति को कंसीव करने में समस्या आती है। जब हम सांस लेते हैं तो हवा में मौजूद पर्टिकुलेट मैटर (जो व्यक्ति के बाल से 30 गुना पतले होते हैं) हमारे अंदर प्रवोश कर जाते हैं। पर्टिकुलेट मैटर अपने साथ पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन लिए होते हैं। इसमें कॉपर, जिंक और पारा होते हैं, जो हार्मोन के संतुलन को प्रभावित करते हैं और शुक्राणुओं के लिए नुकसानदायक होते हैं। इस तरह यह यौन जीवन में बाधा पैदा कर सकते हैं। लेकिन प्रजनन में इस बदलाव से बचने के लिए बाहर जाते समय प्रमाणित फिल्टर वाले मास्क का प्रयोग करें। टेस्टोस्टेरोन के स्तर में कमी से सेक्स की इच्छा कम हो जाती है। वायु प्रदूषण के कारण कम वजन वाले बच्चे का जन्म, समय से पहले प्रसव, मृत बच्चे का जन्म आदि समस्याएं हो सकती हैं।

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अपनी सुरक्षा स्वयं करें

  • हाइड्रोकार्बन वाले पीएम10 हार्मोनल बदलावों से सीधे-सीधे जुड़े होते हैं। टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन के स्तर में कमी से न केवल सेक्स की इच्छा में कमी आती है बल्कि आगे चलकर यह इनफर्टिलिटी का भी कारण बनता है।
  • हालांकि प्रदूषण को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है लेकिन जीवनशैली में सही बदलावों और सही आहार के साथ स्पर्म की संख्या में सुधार किया जा सकता है।
  • एंटी-ऑक्सिडेंट का सेवन बढ़ाएं, जो विटामिन, खनिज और समृद्ध पोषक तत्वों का परिवार है। एंटी ऑक्सिडेंट स्पर्म की संख्या और गुणवत्ता दोनों में सुधार के लिए जिम्मेदार होते हैं।
  • डॉक्टरों की सलाह है कि सभी को मास्क लगाकर बाहर जाना चाहिए, एयर प्युरीफायर का प्रयोग न सिर्फ अपने घर में करें बल्कि अपनी गाड़ी और ऑफिस में भी करें। ज्यादा से ज्यादा वक्त घर पर ही बिताएं। हालांकि बाहर न निकलना कई लोगों के लिए संभव नहीं है लेकिन वे इन चीजों का पालन कर के अपने स्वास्थ्य का ख्याल रख सकते हैं।
(ये लेख प्राइम फर्टिलिटी सेंटर की सीनियर फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट प्रोग्राम डायरेक्टर डॉक्टर निशी सिंह से बातचीत पर आधारित है।)

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