गले का कैंसर शरीर के अन्य भागों से अलग माना जाता है, क्योंकि इसमें प्रारंभिक अवस्था को आसानी से पहचाना जा सकता है। साथ ही इसके लिए उत्तरदायी कारण भी स्पष्टत: पता होते हैं, इसलिए समय पर मरीज जागरूक होकर अपनी आदतों में सुधार कर ले, तो इसे आगे बढ़ने से रोका जा सकता है।जिन मामलों में कैंसर की पहचान शुरुआती अवस्था में हो जाती है उसमें से 90 प्रतिशत रोगी गले के कैंसर के होते हैं।
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- जब कैंसर गले के आसपास के ऊतकों व लिंफ नोड्स के आस पास फैल जाता है तो इसका पता लगना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। जब गले का कैंसर बढ़ जाता है तो इसका इलाज हो पाना असंभव हो जाता है। कई रोगियों में इलाज के बाद थेरेपी दी जाती है जिससे वे आसानी से बोल सकें व सामान्य अवस्था में लौट सकें।
- ये कैंसर तीन प्रकार का होता है। सुप्राग्लोटिस, ग्लोटिस और सबग्लोटिस। हमारे देश में सुप्राग्लोटिस कैंसर बेहद आम है। इसके बाद ग्लोटिक कैंसर ज्यादा होता है। सब ग्लोटिक कैंसर की संख्या ज्यादा नहीं है। तंबाकू सेवन, धूम्रपान और शराब से इसके होने की आशंका रहती है। इन सबमें तंबाकू सबसे ज्यादा कैंसर कारक पदार्थ के रूप में लैरिनजील कैंसर को बढ़ावा देता है।
- लगभग 5 प्रतिशत रोगी ऐसे भी होते हैं जो खाना खाने में असमर्थ होते हैं, इसके लिए उन्हें एक ट्यूब के जरिए खाना दिया जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक अगर रोगी के गले के कैंसर के किसी भी तरह के लक्षण जैसे आवाज में कर्कशता दो सप्ताह से अधिक समय तक जारी रहती है तो आपको एक विशेषज्ञ के पास भेजा जा सकता है।
- गले में कैंसर की समस्या अगर कुछ समय में ठीक ना हो तो डॉक्टर से जरूर संपंर्क करें। चिकित्सक को गले संबंधी परेशानियों के बारे में बताएं। इसके बाद हो सकता है कि वो गले में कैंसर के लक्षणों को सुनिश्चित करने के लिए कुछ जांच कराने के लिए कहे। जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही रोगी में दिखने वाले लक्षणों का इलाज शुरु हो सकेगा। जानें गले में कैंसर के लक्षणों को-
- आवाज में परिवर्तन
- खाना व थूक निगलने में कठिनाई महसूस होना
- खांसी, जो अगर अक्सर सूखी और हैकिंग होती है
- गले में निरंतर खराश जो कि नियमित उपचार से ठीक नहीं होती है
- कुछ मामलों में कान दर्द हो सकता है
- वजन में गिरावट और भूख की कमी
गले का कैंसर किसी निर्धिरित उम्र में नहीं होता है। 20 से 25 वर्ष के युवा भी इस बीमारी की चपेट में आकर उम्र से पहले ही अपनी जान गवां रहे हैं। हालांकि 40 से 50 की आयु वाले लोग इस बीमारी की सर्वाधिक मार झेल रहे हैं।
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