हाई ब्लडप्रेशर के कारण विभिन्न प्रकार की जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसी जटिलताएं अकेले नहीं आती हैं, बल्कि अपने साथ कई अन्य बीमारियां भी साथ लाती हैं। वस्तुत: हाई ब्लडप्रेशर के साथ तमाम लोगों में गंभीर बीमारियां घर कर लेती हैं। जैसे हृदय रोग- कोरोनरी आर्टरी डिजीज, डाइबिटीज, गुर्दा रोग, स्ट्रोक-यानी सेरिब्रल थ्रॉम्बोसिस और ब्रेन हेमरेज आदि। हाई ब्लड प्रेशर का इलाज कई कारणों पर निर्भर करता है। जैसे-
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-हाई ब्लडप्रेशर का कारण क्या है?
-शरीर का डील-डौल कैसा है?
-शरीर में सूजन है कि नहीं।
-स्ट्रोक की शिकायत है या नहीं।
-हार्ट अटैक हो चुका है या नहीं।
-किडनी या गुर्दा कार्य कर रहा है या नहीं।
-डाइबिटीज है या नहीं।
-गर्भावस्था।
-हार्ट फेल्यर होना।
-धड़कन की शिकायत।
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क्या है इसका इलाज
डॉक्टर के परामर्श के बगैर कोई भी दवा किसी के कहने पर या फिर अपने आप न लें। स्वचिकित्सा (सेल्फ मेडिकेशन) से बचें। मौजूदा संदर्भ में दवाओं के जो नाम दिए गए हैं, वे विभिन्न तत्वों से संबंधित हैं। ये तत्व दवाओं के ब्रांड नेम नहीं हैं।
-यदि जवान व्यक्ति को हाई ब्लडप्रेशर हो, तो उसे 'ए सी ई इनहीबिटर्स' दवा दी जाती है।
-यदि वजन अधिक हो, सूजन हो, सांस फूले और हार्ट फेल्यर की समस्या हो, तो डाइयूरेटिक्स यानी पेशाब की मात्रा को बढ़ाने वाली दवा देनी चाहिए।
-हार्ट अटैक के बाद बीटा ब्लॉकर्स दवा अवश्य देनी चाहिए परंतु दमा की शिकायत हो, तो बीटा ब्लॉकर्स नहीं दी जानी चाहिए।
-गुर्दा रोग की शुरुआत हो या डाइबिटीज हो, तो ए सी ई इनहीबिटर्स और 'ए आर बी' दवाएं लें। इनसे गुर्दे सुरक्षित रहते हैं।
-एंजाइना की तकलीफ हो, तो बीटा ब्लॉकर्स देना चाहिए।
-गर्भावस्था में 'ए सी ई इनहीबिटर्स' और 'ए आर बी' नहीं देना चाहिए। ऐसे में एमलोडिपीन अच्छी दवा है।
-हार्ट फेल्यर में डाइयूरेटिक्स ए सी ई (इनहीबिटर्स) और 'ए आर बी ' देना चाहिए।
-सीओपीडी और दमा जैसी सांस से संबंधित बीमारियों में एमलोडिपीन और 'ए सी ई इनहीबिटर्स' अच्छी दवाएं हैं। बीटा ब्लॉकर्स दवा नहीं देना चाहिए।
-डाइबिटीज में एसीई (आई), 'ए आर बी' और एमलोडिपीन दे सकते हैं।
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