चिंता (एंग्जायटी) रहती है तो आयुर्वेद में है इसका आसान इलाज, आयुर्वेदाचार्य से जानें कैसे दूर करें चिंता

चिंता एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को डर और असहजता का अनुभव काफी ज्यादा होने लगता है। आयुर्वेदिक तरीकों से भी चिंता का इलाज संभव है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं आयुर्वेद में किस तरीके से किया जाता है एंग्जायटी डिसऑर्डर का इलाज?  
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चिंता (एंग्जायटी) रहती है तो आयुर्वेद में है इसका आसान इलाज, आयुर्वेदाचार्य से जानें कैसे दूर करें चिंता


चिंता एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को परेशानी, डर और असहजता का अनुभव काफी ज्यादा होने लगता है। इसके कारण व्यक्ति को काफी ज्यादा बेचैनी, हृदय गति का तेज होना, शरीर से पसीना आना जैसे अनुभव होने लगते हैं। हम सभी अपने किसी ना किसी कार्य में चिंता को प्रकट करते हैं। जैसे- परीक्षा की तैयारी के दौरान, ऑफिस का कार्य ना होने के दौरान, बच्चों को लेकर, कोई आवश्यक फैसले को लेकर इत्यादि कई ऐसी परिस्थिति हमारे सामने होती है, जिसे लेकर चिंता होती है। इन परिस्थितियों में चिंता लेना कई बार हमारे से अच्छा साबित भी होता है। क्योंकि चिंता करने से हमारे शरीर में उर्जा की बढ़ोतरी होती है और हमारा ध्यान केंद्रित होता है, जिससे उस परिस्थति से निपटने की शक्ति मिलती है। लेकिन कभी-कभी यह हमारे ऊपर हावी हो जाती है। जो इंसान को फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचाने लगता है। इसे एंग्जायटी डिसॉर्डर कहते हैं। एंग्जायटी डिसॉर्डर में व्यक्ति के अंदर डर स्थाई रूप से घर कर लेती है। यह उनके अंदर काफी लंबे समय तक चलती है। इस परिस्थिति में चिंता दूर होने के बजाय, बढ़़न लगती है। एंग्जायटी डिसॉर्डर के कारण कई लोगों का परिवार, घर, जॉब परफॉर्मेंस, कॉलेजवर्क इत्यादि प्रभावित होता है। एंग्जायटी डिसॉर्डर को दूर करने के लिए मनोवैज्ञानिक द्वारा दिए गए दवाईयों का सहारा लिया जाता है। लेकिन आपको बता दें कि आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा भी एंग्जायटी डिसॉर्डर का इलाज संभव है। अगर आप इस बात से अंजान हैं, तो आइए आयुर्वेदिक एक्सपर्ट से जानते हैं इस बारे में विस्तार से-

क्या कहते हैं आयुर्वेदाचार्य?

गाजियाबाद स्वर्ण जयंती के आयुर्वेदाचार्य डॉक्टर राहुल चतुर्वेदी का कहना है कि आयुर्वेद में चिंता एक वात दोष है, जिसमें हमारी तंत्रिका तंत्र में वात अतिरिक्त रूप से जमा हो जाता है। वात एक गतिशील तत्व है। एक्सपर्ट के अनुसार, चिंता किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। इसमें आप यह नहीं कह सकते हैं कि बुजुर्गों में चिंता विकृति अधिक होती है। कई ऐसे मामले देखे गए हैं, जिसमें युवावर्ग भी चिंता विकृति से पीड़ित हुए हैं। आयुर्वेद में चिंता विकृति का इलाज संभव है। इसके लिए मरीज के अंदर के वात दोष को दूर करने की कोशिश की जाती है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से-

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आयुर्वेद में कैसे किया जाता है चिंता विकृति का इलाज?

आयुर्वेद में चिंता विकृति का इलाज संभव है। इसमें मरीजों को कई प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। आइए जानते हैं इस बारे में -

शिरोधारा से नर्वस सिस्टम को किया जाता है शांत

आयुर्वेद में शिरोधारा का विशेष महत्व है। शिरोधारा संस्कृत का शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है, शिरो और धारा। शिरो का अर्थ सिर और धारा का अर्थ प्रवाह है। शिरोधारा एक आयुर्वेदिक थेरेपी है, जिसमें गर्म तेल को माथे पर से लगातार प्रवाह किया जाता है। इससे व्यक्ति का नर्वस सिस्टम शांत होता है। आयुर्वेद एक्सपर्ट के अनुसार, तेल के निरंतर उपयोग से हमारा मस्तिष्क और पिट्यूटरी ग्रंथि हेल्दी होती है। इससे सिर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। साथ ही इस तेल में कई जड़ी-बूटियां इस्तेमाल की जाती हैं, जिसके इस्तेमाल से माइग्रेन और चिंता विकृति के लक्षणों को कम करने की कोशिश की जाती है।

योगासन करने की देते हैं सलाह

आयुर्वेद एक्सपर्ट के अनुसार, कभी-कभी मरीजों को बॉडी थेरेपी देने के बजाय उन्हें योगासन करने की सलाह दी जाती है। इसमें ताड़ासन, मत्सयासन, शशांकासन, शवासन इत्यादि आसन करने के लिए मरीजों को कहा जाता है। इन योगासन की मदद से दिमाग को शांत करने की कोशिश की जाती है। आप किसी भी योग एक्सपर्ट से योग करने की टेक्नीक जानकर इसे नियमित अभ्यास में शामिल कर सकते हैं।

जड़ी-बूटियों से भी होता है चिंता विकृति का इलाज

थेरैपी और योगासन के अलावा जड़ी-बूटियों की मदद से भी एंग्जायटी डिसऑर्डर को दूर करने की कोशिश की जाती है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ खास जड़ी-बूटियों के बारे में-

मंडूकपर्णी

शरीर को एक्टिव और मजबूती प्रदान करने के लिए आयुर्वेद में मंडूकपर्णी जड़ी-बूटी का इस्तेमाल किया जाता है। मंडूकपर्णी आपकी याददाश्त क्षमता को मजबूत करता है। साथ ही इससे बौद्धिक विकास भी अच्छा होता है। आयुर्वेद एक्सपर्ट के अनुसार, इस जड़ी-बूटी के नियमित सेवन से आप चिंता विकृति को नियंत्रित तकर सकते हैं। यह आपके नसों में शक्ति प्रदान कर मस्तिष्क को शांत करता है। यह जड़ी-बूटी शरीर में मौजूद अतिरिक्त नमक और पानी को बाहर करके आपके शरीर को डिटॉक्सीफाई करता है। दिल और दिमाग को तंदरुस्त रखने में मंडुकपर्णी असरकारी साबित हो सकता है। किसी भी आयुर्वेदि एक्सपर्ट की सलाहनुसार आप इसका सेवन कर सकते हैं।

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गोटू कोला

गोटू कोला एक आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका उपयोग कई न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में मानसिक समस्याओं से निजात पाने के लिए गोटू कोला का सेवन करने की सलाह दी जाती है। यह चिंता विकार को कम करने में मददगार होता है। चिंता के लक्षण दिखने पर एक्सपर्ट की सलाहनुसार आप गोटू कोला का सेवन कर सकते हैं। ध्यान रहे कि बिना एक्सपर्ट की सलाह लिए आपको इसका सेवन नहीं करना है।

मुलेठी का करें सेवन

वात दोष को दूर करने में मुलेठी काफी फायदेमंद है। यह दिमाग को शांत कर चिंता विकृति के इलाज में सहायक है।  इसके सेवन से मांसपेशियों में दर्द, गले की खराश, ऐंठन इत्यादि समस्या को दूर किया जा सकता है। मुलेठी में एंटी-ऑक्सीडेंट मौजूद होता है, जो नसों को शक्ति प्रदान करता है। मुलेठी का काढ़ा आपकी तमाम समस्याओं को दूर करने में असरकारी है। चिंता विकृति के लक्षण दिखने पर एक्सपर्ट की सलानुसार इसका सेवन जरूर करें।

ब्राह्मी है असरदार

नर्व टॉनिक के रूप में ब्राह्मी का इस्तेमाल आयुर्वेद में सदियों से किया जा सकता है। यह मेमोरी बूस्टर के रूप में कार्य करता है। कई सालों से इस जड़ी-बूटी का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह आपके मस्तिष्क के ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करता है। इसमें एंटी एंग्जायटी गुण मौजूद होता है, जो चिंता विकार को दूर करने में असरकारी है।

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जटामांसी

ब्रेन फंक्शन को इम्प्रूव करने में जटामांसी जड़ी-बूटी काफी असरदार साबित हो सकता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट तत्व आपकी मेमोरी पावर को बूस्ट करते हैं। साथ ही यह हमारे शरीर में कोशिकाओं को डैमेज नहीं होने देती है। यह एक ऐसी आयुर्वेदिक औषधि है, जो मानसिक समस्याओं को दूर कर चिंता विकृति से छुटकारा दिलाता है।

चिंता विकृति होने पर क्या करें और क्या ना करें?

  • नियमित रूप से एक्सरसाइज करें।
  • शारीरिक साफ-सफाई का ख्याल रखें।
  • मनपसंदीदा गाने सुनें।
  • अपनी पसंदीदा जगह पर जाएं।
  • तनावमुक्स रहने की कोशिश करें।
  • मांस-मछली का सेवन कम करें। 
  • कोल्ड्रिंक्स का सेवन न करें।
  • धूम्रपान का सेवन न करें।
  • रात में देर तक ना सोएं।
  • बासी खाने-पीने से दूर रहें।
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