
Thalassemia Success Real Story: जब आपका बच्चा बीमार हो और डॉक्टर कहे कि यह 8-9 साल तक ही जिंदा रह सकता है, तो इस बात को सुनकर हर माता-पिता के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। ऐसा ही कुछ राहुल कुमार के माता-पिता के साथ हुआ, जो थैलेसीमिया से पीड़ित था। थैलेसीमिया एक ब्लड डिसऑर्डर है, जो जीन के माध्यम से माता-पिता से बच्चों में पारित होता है। इसमें शरीर हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पाता है। इसकी वजह से रेड ब्लड सेल्स ठीक से काम नहीं करती हैं और वे कम समय तक चलती हैं।
कहा जाता है कि इस बीमारी में रोगी को बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है और यह बीमारी कभी ठीक नहीं हो सकती है। लेकिन 5 वर्षीय राहुल ने थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी को मात दी है। जी हां, राहुल का 28 अप्रैल 2021 (जब वह 3 साल का था) को बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया, जिसके बाद से वह पूरी तरह से स्वस्थ है। विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day 2024), जो हर साल 8 मई को मनाया जाता है, इस मौके पर हमने राहुल के पिता रंजीत से विस्तार में बातचीत की। इस बातचीत के दौरान हमने उनसे थैलेसीमिया के दौरान राहुल को क्या-क्या दिक्कते हुई, कैसे उनका इलाज हुआ, इस बारे में जानने की कोशिश की-

एक महीने से शुरू होने लगे लक्षण
राहुल के पिता रंजीत बताते हैं, ' मेरे तीन बच्चे हैं, दो लड़के और एक लड़की। राहुल सबसे छोटा बेटा है, जो थैलेसीमिया से पीड़ित था। लेकिन मेरे बाकी दोनों बच्चे बिल्कुल स्वस्थ हैं। मेरी पत्नी और मुझे माइनर थैलेसीमिया है, लेकिन हम दोनों पूरी तरह से स्वस्थ हैं। हमारे परिवार में राहुल को ही थैलेसीमिया हुआ था। जब राहुल एक महीने का था, तो वह सर्दी, खांसी और बुखार से परेशान रहने लगा। जब वह 6 महीने का हुआ, तो उसका पूरा शरीर सफेद और पीला पड़ने लगा। इसके बाद, जब डॉक्टर को दिखाया, तो पता चला कि राहुल को मेजर थैलेसीमिया है।
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हर महीने ब्लड चढ़ता था
रंजीत बताते हैं कि जब राहुल में थैलेसीमिया का निदान हुआ, तो उसके बाद से उसे हर महीने ब्लड चढ़ने लगा। राहुल को लगातार 10 महीनों तक पीआरबीसी ब्लड (PRBC Blood) चढ़ा। इसके बाद डॉक्टर ने राहुल को आयरन सप्लीमेंट दिए।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट से ठीक हुआ राहुल
रंजीत बताते हैं कि हमने इंटरनेट पर थैलेसीमिया के इलाज के बारे में सर्च किया, तो हमें बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बारे में पता चला। फिर हम CMC vellore गए। डॉक्टर्स ने राहुल का बड़ी बहन और भाई के साथ HLA (इसका उपयोग रक्त या बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए रोगियों और डोनर के मिलान के लिए किया जाता है) मैच किया गया। जिसमें बहन के साथ 60 प्रतिशत और भाई के साथ 100 प्रतिशत HLA मैच हुआ। फिर डॉक्टर्स ने मेरे बड़े बेटे से ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया। इस दौरान 2-3 यूनिट ब्लड चढ़ा। ट्रांसप्लांट के बाद से राहुल को ब्लड चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी।
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ट्रांसप्लांट के बाद डॉक्टर के सुझाव
- रंजीत बताते हैं, 'जब मेरे बेटे का ट्रांसप्लांट हुआ, तो एक साल तक स्कूल भेजने के लिए मना किया। लेकिन आज बच्चा ठीक है और स्कूल जाता है'।
- ट्रांसप्लांट के बाद एक साल तक बच्चे की दवाई चली।
- बाहर का खाना बंद किया और सिर्फ घर का खाना दिया।
- ट्रांसप्लांट के बाद डॉक्टर्स ने बोला कि बेटा अब बिल्कुल स्वस्थ है और वह नॉर्मल बच्चों की तरह रह सकता है।
जो कपल अभी शादी करने वाले हैं, उन्हें अपना चेकअप जरूर करवाना चाहिए। क्योंकि कई मामलों में माता-पिता में थैलेसीमिया के लक्षण नजर नहीं आते हैं, लेकिन इसका दर्द बच्चों को सहन करना पड़ता है। अगर बच्चे में थैलेसीमिया के लक्षण नजर आ रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए।
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