छोटे बच्चे हर वक्त आईसक्रीम, चॉकलेट या और मीठी चीजें खाने की जिद करते हैं। कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है। एक अध्ययन के अनुसार बचपन में हमारा शारीरिक विकास धीमा होता है।
इस दौरान हमारे विकासशील मस्तिष्क को ऊर्जा देने के लिए बड़ी मात्रा में संसाधन चाहिये होते हैं। अध्ययन में बताया गया है कि जीवन के शुरुआती दौर में मानव की अधिकतर ऊर्जा की खपत दिमाग में होती है। शायद यही कारण है कि बचपन के दौरान मानव के शारीरिक विकास की प्रक्रिया धीमी होती है।
नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय के वीनबर्ग कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज में एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर क्रिस्टोफर कुजावा का कहना है कि बतौर मनुष्य, हमें काफी कुछ सीखने की जरूरत होती है। और सीखने की प्रक्रिया के लिए जटिल और ऊर्जा का भूखा मस्तिष्क पहली जरूरत है।
पांच साल के बच्चे के दिमाग को भारी मात्रा में ऊर्जा की दरकार होती है। इस उम्र में बच्चे का दिमाग सामान्य व्यस्क के दिमाग की तुलना में दोगुना ग्लूकोज इस्तेमाल करता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि दिमाग पांच साल की उम्र में सबसे ज्यादा ग्लूकोज की खपत करता है। चार साल की उम्र में दिमाग, शरीर के 66 फीसदी ग्लूकोज की खपत करता है।
कुजावा ने बताया कि मध्य-बाल्यकाल में मस्तिष्क का विकास तेजी पर होता है क्योंकि मस्तिष्क को अधिकतर सूत्रयुग्मन इसी उम्र में करना होता है, जिस समय सफल मनुष्य बनने के लिए हमें बहुत सारी चीजें सीखने की जरूरत होती है। इस उम्र में शरीर की कुल कैलोरी में से दो तिहाई कैलोरी की खबत अकेले मस्तिष्क करता है और शेष कैलोरी का प्रयोग पूरा शरीर करता है।
नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय के सह-लेखक विलियम लियोनार्ड ने बताया कि हमरे मस्तिष्क की भारी ऊर्जा की मांग पूरी करने के कारण बच्चे थोड़ी धीमी गति से बढ़ते हैं और शारीरिक गतिविधियां भी कम करते हैं। परिणाम बताते हैं कि हमारे बहुमूल्य और व्यस्त बचपन के दिमाग को ऊर्जा देने के कारण बचपन के दिनों में मनुष्य का शारीरिक विकास धीमा होता है। यह अध्ययन 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज' जर्नल में प्रकाशित हुआ।
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