समय के साथ-साथ भारत समेत पूरे दुनिया में डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। बुजुर्गों ही नहीं अब तो यह युवाओं और बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है। डायबिटीज कई समस्याएं साथ ले आता है और शरीर को काफी प्रभावित करता है। आइये जानें क्या है डायबिटीज का शरीर पर प्रभाव।
डायबिटीज
‘डायबिटीज मेलाइट्स’ एक आम रोग है। डायबिटीज होने पर रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा शरीर की कोशिकाएं शर्करा का उपयोग नहीं कर पातीं। डायबिटीज ‘इंसुलिन’ नामक रसायन की कमी से होता है, जिसका स्राव शरीर में अग्नाशय (पैंक्रियाज) द्वारा होता है।
डायबिटीज रोग को हारपरग्लाइसीमिया, हाई शुगर, हाई ग्लूकोज, मधुमेह ग्लूकोज इनटोलरेंस आदि के नाम से भी जाना जाता है। अधिकांश मामलों में मधुमेह रोगियों के मूत्र में शर्करा पाई जाती है। उच्च रक्तचाप तथा मोटापे के साथ इस रोग को ‘मेटाबॉलिक सिंड्रोम’ कहा जाता है। डायबिटीज एक ऐसा रोग है जिसमें तत्काल लक्षणों का पता नहीं चलता, लेकिन रक्त में ग्लूकोज का बढ़ा स्तर शरीर के भीतर अवयवों तथा हृदय व गुर्दे आदि को भी नष्ट कर देता है इसलिए इसे ‘साइलेंट किलर’ भी कहा जाता है।
क्यों होती है डायबिटीज
डायबिटीज होने के कई कारण होते हैं, जैसे खान-पान में बदलाव, जीवनचर्या, वातावरण और अनुवांशिक कारण आदि। स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही तथा सही जानकारी ना होना मधुमेह के प्रमुख कारणों में से हैं। अनेक मधुमेह रोगी मधुमेह के कारण व सुधार के उपाय तक नहीं जानते। डायबिटीज रोग कई समस्याएं पैदा करता है, यह गुर्दों को नष्ट कर सकता है। साथ ही डायबिटीज के कारण हृदय रोग, कोमा की अवस्था तथा गैंग्रीन रोग भी होते हैं। वैसे तो इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है। लेकिन जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव, सही जानकारी तथा खान-पान की आदतों में सुधार कर इस रोग को पूरी तरह नियंत्रित करना संभव है।
डायबिटीज का शरीर पर दुष्प्रभाव
हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप
डायबिटीज के मरीज को उच्च रक्तचाप, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटैक आदि होने की अधिक आशंका होती है। डायबिटीज के रोगियों में हृदय रोग कम आयु में ही हो सकते हैं। ऐसे में दूसरा अटैक होने का खतरा हमेशा बना रहता है। रजोनिवृत्ति से पहले महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन के कारण हृदय रोगों का खतरा पुरुषों की तुलना में कम होता है। पर मधुमेह से पीड़ित महिलाओं में यह हार्मोन काम नहीं करता और महिलाओं में भी हृदय रोग का खतरा पुरुषों के बराबर हो जाता है।
डायबिटीज के रोगियों में हृदय-धमनी रोग मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। डायबिटीज के मरीजों में हार्ट-अटैक होने पर भी छाती में दर्द नहीं होता, क्योंकि दर्द का अहसास दिलाने वाला इनका स्नायु तंत्र खराब हो सकता है। इसे शांत हार्ट-अटैक भी कहा जाता है।
आंखों की समस्याएं
डायबिटीज आंखों को भी काफी नुकसान पहुंचाती है। इसके कारण आंखों के दृष्टि पटल की रक्त वाहिनियों में कहीं-कहीं हल्का रक्त स्राव और छोटे सफेद धब्बे बन जाते हैं। इसे रेटीनोपेथी कहा जाता है। रेटीनोपेथी के कारण आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है और दृष्टि में धुंधलापन आ जाता है। इसकी स्थिति गंभीर होने पर रोगी अंधा तक हो सकता है। डायबिटीज के रोगी को मोतियाबिन्द और काला पानी होने की संभावना अधिक होती है।
पेट और आंतों को नुकसान
कभी-कभी लंबे समय से मधुमेह से पीड़ित लोग खाने के बाद फूला हुआ और असहज महसूस करते हैं। ऐसे में एक या दो दिन के लिए दस्त हो सकते हैं या फिर कब्ज़ भी हो सकती है। इस प्रकार के रोगीयों में अपनी दवा लेने और पूरा भोजन खाने के बावजूद भी रक्त शर्करा का कम स्तर देखा जा सकता है। यह समस्याएं पेट में तंत्रिका क्षति के कारण होती हैं, जिसे गेस्ट्रोपेरेसिस कहा जाता है।
सेक्स संबंधी समस्या
एक अध्ययन के अनुसार देश में डायबिटीज के लगभग 36 प्रतिशत मरीज इरेक्टाइल डिसफंक्शन नामक यौन समस्या से ग्रस्त हैं। इसके अनुसार लगभग 36 प्रतिशत डायबिटीज रोगी, हाइपोगोनाडोट्रॉपिक हाइपोगोनाडिज्म नामक स्थिति से ग्रस्त हैं। इस स्थिति में सेक्स ग्रंथियों के उत्तेजित होने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है। इस अध्ययन में 35 से 60 वर्ष की आयु के 200 पुरुषों को लिया गया और देखा गया कि वे लोग जो डायबिटीज से पीड़ित नहीं होते उनकी तुलना में डायबिटीज से ग्रस्त मरीजों में यौन हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्तर काफी कम होता है। टेस्टाटेरॉन वह रासायनिक पदार्थ है जो पुरुषों में यौन सक्रियता को बना कर रखता है।
यह अध्ययन बीते वर्ष आरएसएसडीआई की दिल्ली शाखा के अध्यक्ष और डायबिटीज विशेषज्ञ एवं शोधकर्ता डॉ. राजीव चावला की अगुवाई में किया गया था। जिसमें उन्होंने मध्यम वय के डायबिटीज ग्रस्त 50 से 60 प्रतिशत लोगों के इरेक्टाइल डिसफंक्शन से ग्रस्त होने की जानकारी भी दी थी।
गुर्दे पर असर
डायबिटीज गुर्दों को भी प्रभावित करता है। डायबिटीज होने पर गुर्दों में डायबीटिक नेफ्रोपेथी नामक रोग हो जाता है, इसकी शुरुआती अवस्था में प्रोटीन युक्त मूत्र आने लगता है। इसके बाद गुर्दे कमजोर होने लगते हैं और आखिर में गुर्दे काम करना ही बंद कर देते हैं। ऐसी स्थिति में जिंदा रहने के लिए डायलेसिस व गुर्दा प्रत्यारोपण के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।
पैरों की समस्याएं
डायबिटीज के कारण पैरों में रक्त का संचार कम हो जाता है और पैरों में घाव हो जाते हैं जो आसानी से ठीक भी नहीं होते। यह स्थिति गेंग्रीन भी बन जाती है और इलाज के लिए पैर काटना पड़ सकता है। यही कारण है कि डायबिटीज रोगियों को चेहरे से ज्यादा पैरों की देखभाल करने की सलाह दी जाती है।
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