यदि आप भी पान खाने के शौकीन हैं, तो यह खबर आपके लिए हैं। एक नए शोध से पता चला है कि पान चबाने की आदत एक खास तरह के कैंसर से बचाने में आपकी मदद कर सकती है। अब आपको पान खाने की आदत से छुटकारा पाने की कोशिश करने की जरूरत नहीं है।
शोधकर्ताओं का दावा है कि पान के पत्ते में एक खास तरह का तत्व हाइड्रॉक्सिकेविकोल (एचसीएच) पाया जाता है जो जानलेवा क्रॉनिक माइल्वॉयड ल्युकेमिया (सीएमएल) से ग्रस्त मरीजों की कैंसर रोधी क्षमता बढ़ाता है। कोलकाता स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ हेमैटोलॉजी एंड ट्रांसयूजन मेडिसन, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी (आईआईसीबी) और पीरामल लाइफ साइंसेज, मुंबई के शोधकर्ताओं ने शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि पान का पत्ता कैंसर रोधी होता है।
आईआईसीबी में डिपाटर्मेंट ऑफ कैंसर बायोलॉजी एंड इनलेमेटरी डिसॉर्डर्स के सांतू बंद्योपाध्याय ने कहा, कि पान के पत्तों से मिलने वाला मादक तत्व एचसीएच ल्युकेमिया रोधी का एक बड़ा संघटक है। यह शोध निष्कर्ष फ्रांटियर्स इन बायोसाइंस (एलिट एडिशन) नामक जर्नल में 2011 में छपी एक गहन रिपोर्ट पर आधारित है।
जापनीज कैंसर एसोसिएशन के इस आधिकारिक जर्नल में छपी रिपोर्ट को इन शोधकर्ताओं ने विश्वसनीय करार दिया है। शोधकर्ताओं के अनुसार एचसीएच न सिर्फ कैंसर युक्त सीएमएल कोशिकाओं को मारता है, बल्कि दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर चुकी कैंसर कोशिकाओं को भी नष्ट करता है।
एचसीएच तत्व इंसान की प्रतिरोधी क्षमता के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले पेरिफेरल ब्लड मोनोक्यूक्लियर सेल्स (पीबीएमसी) को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है। उल्लेखनीय है ल्यूकेमिया मुख्यत: वयस्कों का रोग है, जिसके करीब एक लाख मामले हर साल भारत में प्रकाश में आते हैं।
इमैटिनीब नामक दवा इस रोग के इलाज में काफी कारगर है, पर शरीर में टी 3151 नामक म्यूटेशन प्रक्रिया के पैदा होने से यह दवा काम करना बंद कर देती है। कोई भी ऐसी दवा फिलहाल मौजूद नहीं है जो इस अवरोधक म्यूटेशन या संक्रिया को घटित होने से रोक सके।
नए शोध के अनुसार पान के पत्ते में मौजूद एचसीएच दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो चुकी कैंसर कोशिकाओं को स्वत: विखंडन प्रक्रिया से गुजरने के लिए प्रेरित करता है जिसे एपेप्टोसिस कहते हैं। यह प्रक्रिया इन जिद्दी कैंसर कोशिकाओं को कमजोर कर ल्युकेमिया के इलाज का रास्ता साफ करती है।
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