
आज के समय में दिन के अधिकांश समय हमने अपने सिर सेल फोन और डिजिटल उपकरणों में झोंक रखे हैं। और जैसा कि समय बीतने के साथ हमने अपने उपकरणों (गैजेट्स) के साथ अधिक घनिष्ठ संबंध बनाए हैं, परिवार और दोस्तों के साथ हमारी अंतरंगता कम हुई है। डिजिटल डीटॉक्स अर्थात डिजिटल विषहरण दरअसल खुद को तकनीक की जकड़ से डीटॉक्स करने का एक तरीका है। इसके तरह स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी व अन्य तकनिकी की जकड़ से खुद को डीटॉक्सीफाई किया जाता है। 
जहां एक ओर स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी कई मायनों में हमारे लिए फायदेमंद साबित हुई है, वहीं लोगों को इसके और सामान्य जीवन के बीच सामंजस्य बनाने में काफी समस्या भी होती है।

 
16 अगस्त 2012 को "टाइम" पत्रिका द्वारा रिपोर्ट किये एक सर्वेक्षण के अनुसार, हर 30 मिनट में चार उत्तरदाताओं में से एक ने अपने फोन की जांच करने का दावा किया। जबकी एक तिहाई उत्तरदाताओं नें बताया कि थोड़ी देर भी यदि वे अपने फोन से दूर रहें तो अनहें चिंता होने लगती है।
डिजिटल डीटॉक्स
ब्लैकबेरी, आईफोन, आईपॉड व आई पैड आदि अब हमारे जीवन का अहम हिस्सा हो गये हैं, या कहिए हम इनके आदि हो गए हैं। हम में से अधिकांश लोग अब अक्सर बीच रात को चौंक कर उठ बैठते हैं। लेकिन ऐसा किसी दु:स्वप्न के कारण नहीं, बल्कि इनबॉक्स में कोई टेक्स या ईमेल आने की बीप के कारण होता है। ऐसे में आपको खुद को डिजिटल डीटॉक्स करने की जरूरत होती है। फेसबुक, वाट्स-अप, ट्विटर आदी की पल-पल वाली दीवानगी छोड़िये और इस बार कुथ दिनों का अवकाश लेकर ‘डिजिटल विषहरण’ का (डीटॉक्स) का आनंद उठाइये। चलिये जानें कैसे- 
 
किसी खास को पत्र लिखिये
आज के दौर में पत्र लिखने का मज़ा ही निराला होता है। बाज़ार में कितने ही सुंदर काग़ज-क़लम मिलते हैं। तो क्यों न इनका इस्तेमाल किया जाए। हो सकता है कि टाइपिंग और टेक्टिंग के दौर में आपकी उंगलियां दुखने लगें, लेकिन ऐसा करना बेशक आपके लिए उपयोगी होगा। आज के समय में हाथों से लिखे पत्र का मुक़ाबला कुछ और नहीं कर सकता है। 

किताब पढ़ें
आज-कल कुछ भी पता करना हो तो लोग झट से गूगल सर्च कर लेते हैं। लेकिन कुछ समय के लिए गूगल बाबा से खद को छुट्टी दीजिये। और अपने पड़ोस के बुक स्टोर पर न्यू एडीशन किताबों वाले अनुभाग पर नज़र डालिये। यदि आप बचत की भावना रखने वाले व्यक्ति हैं तो और किताबों पर पैसा खर्च करनी नहीं चाहते, तो आप जब चाहें किताबों की दुकानों में जाकर किताबों को उलट पलट कर अपना मन बहला सकते हैं। या फिर अपने दोस्तों से किताबें उधार भी ले सकते हैं। 
रचनात्मक बनिये और योग कीजिए
योग के लाभों को सेकर किसी प्रकार का शक रखना बेमानी होगा। देश ही नहीं पूरी दुनिया योग के लाभों की कायल है। डिजिटल डीटॉक्स के संदर्भ में योग में ध्यान, प्रणायाम और मुद्राओं को शामिल किया जाता है। साथ ही समझने की कोशिश करें कि ये दिमाग़ का अपयोग करने का समय आया है, अन्वेषण, आविष्कार और मौज-मस्ती की सैर के लिये खुद को तैयार कर लीजिये। घर में इधर-उधर सरसरी निगाह डालिये और उन चीज़ो को ढूंढिये जिनका रचनात्मकता के एक पुट के साथ पुन: इस्तेमाल किया जा सकता हो। टायर का स्टूल बनाएं, डब्बों पर पेंटिंग कर उन्हें खूबसूरत फूल दान बनाएं या कुछ भी रचनात्मक करें।  
इसके अलावा थोड़ा बाहर घूमें, आउटडोर गेम खेलें। और यदि धूप में पसीना नहीं बहाना चाहते हैं तो अपनी तरह के सोच वाले दोस्तो को आमंत्रित करें। कैरम से लेकर शतरंज, स्क्रैबल, पिक्शनैरी और मोनोपोली तक-कुछ भी खेलिये, आपके पास चुनाव की बहुलता है।
 आज के समय में दिन के अधिकांश समय हमने अपने सिर सेल फोन और डिजिटल उपकरणों में झोंक रखे हैं। और जैसा कि समय 
 
 
बीतने के साथ हमने अपने उपकरणों (गैजेट्स) के साथ अधिक घनिष्ठ संबंध बनाए हैं, परिवार और दोस्तों के साथ हमारी अंतरंगता कम 
 
 
हुई है। डिजिटल डीटॉक्स अर्थात डिजिटल विषहरण दरअसल खुद को तकनीक की जकड़ से डीटॉक्स करने का एक तरीका है। इसके तरह 
 
 
स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी व अन्य तकनिकी की जकड़ से खुद को डीटॉक्सीफाई किया जाता है। 
 
 
 
जहां एक ओर स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी कई मायनों में हमारे लिए फायदेमंद साबित हुई है, वहीं लोगों को इसके और सामान्य जीवन के 
 
 
बीच सामंजस्य बनाने में काफी समस्या भी होती है। 
 
 
 
 
16 अगस्त 2012 को "टाइम" पत्रिका द्वारा रिपोर्ट किये एक सर्वेक्षण के अनुसार, हर 30 मिनट में चार उत्तरदाताओं में से एक ने 
 
 
अपने फोन की जांच करने का दावा किया। जबकी एक तिहाई उत्तरदाताओं नें बताया कि थोड़ी देर भी यदि वे अपने फोन से दूर रहें तो 
 
 
अनहें चिंता होने लगती है। 
 
 
 
डिजिटल डीटॉक्स
 
ब्लैकबेरी, आईफोन, आईपॉड व आई पैड आदि अब हमारे जीवन का अहम हिस्सा हो गये हैं, या कहिए हम इनके आदि हो गए हैं। हम 
 
 
में से अधिकांश लोग अब अक्सर बीच रात को चौंक कर उठ बैठते हैं। लेकिन ऐसा किसी दु:स्वप्न के कारण नहीं, बल्कि इनबॉक्स में 
 
 
कोई टेक्स या ईमेल आने की बीप के कारण होता है। ऐसे में आपको खुद को डिजिटल डीटॉक्स करने की जरूरत होती है। फेसबुक, 
 
 
वाट्स-अप, ट्विटर आदी की पल-पल वाली दीवानगी छोड़िये और इस बार कुथ दिनों का अवकाश लेकर ‘डिजिटल विषहरण’ का (डीटॉक्स) 
 
 
का आनंद उठाइये। चलिये जानें कैसे- 
 
 
 
 
 
किसी खास को पत्र लिखिये
 
आज के दौर में पत्र लिखने का मज़ा ही निराला होता है। बाज़ार में कितने ही सुंदर काग़ज-क़लम मिलते हैं। तो क्यों न इनका इस्तेमाल 
 
 
किया जाए। हो सकता है कि टाइपिंग और टेक्टिंग के दौर में आपकी उंगलियां दुखने लगें, लेकिन ऐसा करना बेशक आपके लिए 
 
 
उपयोगी होगा। आज के समय में हाथों से लिखे पत्र का मुक़ाबला कुछ और नहीं कर सकता है। 
 
 
 
 
 
किताब पढ़ें 
 
आज-कल कुछ भी पता करना हो तो लोग झट से गूगल सर्च कर लेते हैं। लेकिन कुछ समय के लिए गूगल बाबा से खद को छुट्टी 
 
 
दीजिये। और अपने पड़ोस के बुक स्टोर पर न्यू एडीशन किताबों वाले अनुभाग पर नज़र डालिये। यदि आप बचत की भावना रखने वाले 
 
 
व्यक्ति हैं तो और किताबों पर पैसा खर्च करनी नहीं चाहते, तो आप जब चाहें किताबों की दुकानों में जाकर किताबों को उलट पलट कर 
 
 
अपना मन बहला सकते हैं। या फिर अपने दोस्तों से किताबें उधार भी ले सकते हैं। 
 
 
 
 
 
 
रचनात्मक बनिये और योग कीजिए 
 
योग के लाभों को सेकर किसी प्रकार का शक रखना बेमानी होगा। देश ही नहीं पूरी दुनिया योग के लाभों की कायल है। डिजिटल 
 
 
डीटॉक्स के संदर्भ में योग में ध्यान, प्रणायाम और मुद्राओं को शामिल किया जाता है।  
 
साथ ही समझने की कोशिश करें कि ये दिमाग़ का अपयोग करने का समय आया है, अन्वेषण, आविष्कार और मौज-मस्ती की सैर के 
 
 
लिये खुद को तैयार कर लीजिये। घर में इधर-उधर सरसरी निगाह डालिये और उन चीज़ो को ढूंढिये जिनका रचनात्मकता के एक पुट के 
 
 
साथ पुन: इस्तेमाल किया जा सकता हो। टायर का स्टूल बनाएं, डब्बों पर पेंटिंग कर उन्हें खूबसूरत फूल दान बनाएं या कुछ भी 
 
 
रचनात्मक करें।  
 
 
 
इसके अलावा थोड़ा बाहर घूमें, आउटडोर गेम खेलें। और यदि धूप में पसीना नहीं बहाना चाहते हैं तो अपनी तरह के सोच वाले दोस्तो को 
 
 
आमंत्रित करें। कैरम से लेकर शतरंज, स्क्रैबल, पिक्शनैरी और मोनोपोली तक-कुछ भी खेलिये, आपके पास चुनाव की बहुलता है।
 
 
 
 
 
एक ऐसा बच्चा जिसने बंटवारे के दौरान न जानें कितनी ही गर्दनें कटती देखीं, खून को पानी की तरह बहता देखा। उसने बड़े नज़दीक 
 
 
से इंसान का हैवानियत से भरा चहरा देखा। तो फिर वो बड़ा होकर क्या बनता? 
 
.... या तो वो खुद एक हैवान बन जाता और बाकी की ज़िंदगी इंसानियत के चिथड़े अधड़ने में बिताता, या फिस इसके बिल्कुल उलट, वो 
 
 
एक प्यार से साराबोर, शांत और नेक इंसान बनता। यश चौपड़ा... एक ऐसा इंसान जिसने मातम में रहकर मौहब्बत करना सीखा। 
 
 
बॉलीवुड को रोमांस की बुलंदियों पर पहुंचाने वाला एक बेमिसाल डायरेक्टर, जिसे ताउम्र याद किया जाएगा।  
 
 
 
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