शर्मीलापन और अंतमुर्खी व्यक्तित्व (इंट्रोवर्ट), ये दोनों ही बातें अलग-अलग हैं, हालांकि ये दोनों बातें सुनने में एक सी ही लगती हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल जरूरी नहीं कि अंतर्मुखी अर्थात इंट्रोवर्ट व्यक्ति शर्मीला भी हो और हर शर्मीला व्यक्ति अंतर्मुखी भी हो। हफिंगटन पोस्ट में प्रकाशित साइकोलॉजी टुडे की लेखिका सुजैन कैन के अनुसार माइक्रोसोफ्ट के बिल गेट्स इस बात का सबसे बेहतर उदाहरण हैं। गेट्स अंतमुर्खी हैं पर वे शर्मीले नहीं हैं। वे चुप रहते हैं लेकिन उन्हें इस बात से खास फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। तो चलिये शर्मीले और इंट्रोवर्ट में फर्क पर थोड़े विस्तार से चर्चा करते हैं। -
क्या है सामान्य फर्क
कोई इंट्रोवर्ट व्यक्ति अकेले समय गुज़ारने का आनंद ले सकता है, लेकिन दूसरों के साथ अधिक समय बिताने पर वह भावनात्मक रूप से कमज़ोर हो जाता है। लेकिन कोई शर्मीला व्यक्ति जानबूझ कर अकेले रहना नहीं चाहता है, लेकिन वह दूसरों के साथ बातचीत करने से थोड़ा डरता है।
इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है। फर्ज़ कीजिये कि किसा एक ही क्लास में दो बच्चे हैं, एक इंट्रोवर्ट और दूसरा शर्मीला। टीचर क्लास में सभी बच्चों के लिये कोई एक्टिविटी तैयार करती हैं। इंट्रोवर्ट बच्चा अपनी मेज पर ही बने रहकर किताब पढ़ना चाहता है, क्योंकि दूसरों के साथ घुलना-मिलना और तनाव देता है। जबकि शर्मीला बच्चा अन्य बच्चों के साथ शामिल होना चाहता है, लेकिन वह भी अपनी मेज पर ही बैठा रहता है क्योंकि वह बाकी बच्चों के साथ मेल-मिलाप से डरता है।
शर्मिले व्यक्ति को उनकी शर्म से उबरने में मदद की जा सकती है, लेकिन अंतर्मुखता इंसान में कुछ इस तरह जड़ होती है, जैसे उसके बाल और रंग आदि। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो लोग शर्म दूर करने के लिये थैरेपी ले सकते हैं, लेकिन अंतर्मुखता के लिये नहीं। सभी इंट्रोवर्ट शर्मीले नहीं होते, हालांकि कुछ में तो बेहद सोशल होते हैं। हांलाकि दूसरे लोगों के साथ समय बिताने के बाद इंट्रोवर्ट इंसान भावनात्मक तौर पर कमज़ोर हो जाता है और उसे फिर से खुद की भावनाओं को रीचार्ज करने के लिये अकेले समय बिनाने की जरूरत पड़ती है।
किसी शर्मीले व्यक्ति को थैरेपी की मदद से सामाजिक बनाया जा सकता है, लेकिन किसी इंट्रोवर्ट को बहिर्मुखी अर्थात एक्सट्रोवर्ट बनाने की ज्यादा कोशिश तनाव पैदा कर सकती है और व्यक्ति के आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचा सकती है। इंट्रोवर्ट लोग सामाजिक स्थितियों से निपटने के गुर तो सीख सकते हैं, लेकिन वे रहते हमेशा इंट्रोवर्ट ही हैं।
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