हमारे शरीर में उतकों के माध्यम से शरीर की सभी संरचनाओं को जोड़ा जाता है। शरीर में मौजूद संयोजी ऊतक या कनेक्टिंग टिश्यूज फैट, हड्डी आदि में मौजूद होते हैं। टिश्यूज से जुड़ी एक गंभीर समस्या है कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज (Connecting Tissue Disease in Hindi)। इस बीमारी में अक्सर जोड़ों, मांसपेशियों की स्किन और आंख, हार्ट, किडनी आदि को गंभीर नुकसान होता है। कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज बीमारियों का समूह है जिसमें शरीर में मौजूद संयोजी ऊतकों को गंभीर नुकसान होता है। शरीर में मौजूद ऊतक शरीर के लिए एक मैट्रिक्स बनाते हैं। ये ऊतक दो प्रमुख संरचनात्मक प्रोटीन कोलेजन और इलास्टिन से बने होते हैं। शरीर की कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण ऊतकों से जुड़ी बीमारी कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज बढ़ने लगती है। इस बीमारी के बढ़ने की वजह से शरीर के कई अंगों को गंभीर नुकसान होता है। आइये विस्तार से जानते हैं कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में।
कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज के प्रकार (Type Of Connecting Tissue Disease in Hindi)
कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज कई तरह की होती हैं और हर व्यक्ति में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। बाबू ईश्वर शरण हॉस्पिटल के जनरल फिजिशियन डॉ समीर के मुताबिक कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज के 200 से ज्यादा प्रकार हैं। ये बीमारियों आनुवांशिक कारणों के अलावा कई अन्य कारणों से भी हो सकती हैं। कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज के कुछ प्रमुख प्रकार इस तरह से हैं।
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1. रूमेराइट अर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis)
यह कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज का सबसे आम प्रकार है जो ज्यादातर लोगों को आनुवांशिक कारणों से होता है। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली आपके शरीर के ही टिश्यूज पर हमला कर देती है। इस समस्या में प्रतिरक्षा कोशिकाएं जोड़ों के आसपास के टिश्यूज पर हमला करती हैं और इसकी वजह से उसमें सूजन पैदा होने लगती है।
2. स्क्लेरोडर्मा (Scleroderma)
यह भी एक ऑटोइम्यून डिजीज है जिसमें आपके स्किन और आंतरिक अंगों को गंभीर नुकसान होता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह समस्या तीन गुना ज्यादा देखने को मिलती है।
3. चुर्ग-स्ट्रॉस सिंड्रोम (Churg-Strauss Syndrome)
यह एक ऑटोइम्यून वैस्कुलिटिस है जो फेफड़ों,फेफड़ों, जठरांत्र प्रणाली, त्वचा और तंत्रिकाओं की रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करती है।
4. सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई) (Systemic Lupus Erythematosus)
एक बीमारी जो मस्तिष्क, त्वचा, रक्त से लेकर फेफड़ों तक शरीर के हर अंग में संयोजी ऊतक की सूजन का सबसे प्रमुख कारण मानी जाती है।
5. पॉलीमायोसिटिस / डर्माटोमायोसिटिस (Polymyositis/ Dermatomyositis)
यह स्थिति स्किन को प्रभावित करती है। इसमें आपके स्किन के कनेक्टिंग टिश्यूज को नुकसान होता है।
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कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज के कारण (What Causes Connective Tissue Disease in Hindi?)
कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज ज्यादातर लोगों में आनुवंशिक कारणों से होती है। इसे अक्सर संयोजी ऊतकों से जुड़े आनुवंशिक विकार के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा इस बीमारी के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं जो इस प्रकार से हैं।
- वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने की वजह से।
- जहरीले केमिकल्स के संपर्क में आने से।
- सूरज की अल्ट्रावायलट किरणों के संपर्क में आने से।
- विटामिन डी और सी की कमी।
- शरीर का पोषण सही तरीके से न होना।
- संक्रमण की वजह से।
कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज के लक्षण (Connective Tissue Disease Symptoms in Hindi)
कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज की वजह से शरीर में दिखने वाले लक्षण हर मरीज में अलग-अलग हो सकते हैं। यह बीमारी शरीर के कई अंगों को प्रभावित करती है और उसी आधार पर इसके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं।
- हड्डियों से जुड़ी समस्याएं।
- जोड़ों का कमजोर होना।
- हार्ट और रक्त वाहिकाओं से जुड़ी समस्याएं।
- स्किन से जुड़े रोग।
- अस्वस्थ फील करना।
- उंगलियों का सुन्न हो जाना।
- मांसपेशियों और जोड़ों में गंभीर दर्द।

कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज का इलाज (Connecting Tissue Disease Treatment)
कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज का इलाज करने से पहले डॉक्टर इसके लक्षणों के आधार पर मरीज की जांच करते हैं। मरीज की मेडिकल हिस्ट्री जानने के बाद अगर जरूरत पड़ती है तो एक्स रे, एमआरआई स्कैन, ब्लड और यूरीन टेस्ट, बायोप्सी आदि का सहारा ले सकते हैं। इसका इलाज करने के लिए जांच के आधार पर दवाओं के सेवन की सलाह दी जाती है। मरीजों को विटामिन की खुराक का ध्यान रखने की सलाह डॉक्टर दे सकते हैं। गंभीर समस्या होने पर डॉक्टर मरीज को अस्पताल में भर्ती भी कर सकते हैं।
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कनेक्टिंग टिश्यू डिजीज से बचाव के लिए आपको विषाक्त पदार्थ और वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बचना चाहिए। इसके अलावा अलग आप विटामिन और शरीर के लिए जरूरी अन्य पोषक तत्वों की खुराक का ध्यान रखते हैं तो इस बीमारी से बचाव किया जा सकता है। हालांकि जिन लोगों को आनुवांशिक कारणों से इस बीमारी का खतरा होता है उनके लिए कोई भी बचाव संभव नहीं है।
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