बढ़ते प्रदूषण की वजह से सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियों के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। वैसे तो शहरी और ग्रामीण, दोनों जगह रहने वाले लोगों को सांस की बीमारियां हो सकती हैं। लेकिन एक स्टडी की मानें तो शहरी बच्चों में सांस की बीमारियां होने का जोखिम अधिक होता है। इटली में यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी इंटरनेशनल कांग्रेस में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार शहरी बच्चों में, ग्रामीण बच्चों की तुलना में सांस या श्वसन से जुड़ी बीमारियां ज्यादा देखने को मिलती हैं। अध्ययन में कहा गया है कि शहरी बच्चों में छाती में संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
शहरी बच्चों में ज्यादा देखने को मिली सांस की बीमारियां
आपको बता दें कि गर्भावस्था से लेकर 3 साल तक के कुल 663 बच्चों पर अध्ययन किया गया था। जिसमें शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में तीन साल की उम्र से पहले खांसी और सर्दी जैसे श्वसन संक्रमण के मामले ज्यादा थे। शहरी क्षेत्रों में श्वसन संक्रमण के मामले औसतन 17 थे। वहीं, अगर ग्रामीण क्षेत्र की बात करें, तो इसमें औसतन 15 बच्चे खांसी, जुकाम और अन्य सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे।
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शहरी बच्चों को क्यों होता है सांस की बीमारियों का अधिक जोखिम?
कोपेनहेगन प्रॉस्पेक्टिव स्टडी के एक शोधकर्ता और चिकित्सक डॉ. निकलैस ब्रस्टैड शहर में रहने वाले बच्चों में सांस की बीमारियों का जोखिम अधिक रहता है। दरअसल, शहरों में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। इसके संपर्क में आने से बच्चों की श्वसन प्रणाली प्रभावित होती है। साथ ही, प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो रही है, जिसकी वजह से उन्हें अक्सर सांस संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ता है। गर्भवती कराने वाली महिलाओं में भी इसका जोखिम अधिक है।
स्तनपान कराने से बच्चों में कम होता है संक्रमण का खतरा
ब्राइटन और ससेक्स मेडिकल स्कूल और यूनिवर्सिटी, यूके के डॉ. टॉम रफल्स द्वारा प्रस्तुत अध्ययन की मानें, तो स्तनपान कराने से बच्चों में संक्रमण का जोखिम कम होता है। अध्ययन के अनुसार छह महीने से अधिक समय तक अगर शिशुओं और बच्चों को स्तनपान कराया जाए, तो संक्रमण से बचाने में मदद मिल सकती है।