झुर्रियों के कारण और चिकित्‍सा

आयु बढ़ने के साथ त्‍वचा को स्निग्ध और लचीली बनाये रखने के लिए जरूरी कोलाजेन और इलास्टिन कम होने लगता है। और इन त्‍वचा प्रोटीन की कमी के कारण हमारी त्वचा की नमी और लचीलापन कम होने लगता है।
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झुर्रियों के कारण और चिकित्‍सा

रिंकल्स वे फाइन लाइन्स या गहरी झुर्रियां हैं, जो मुख्यतया आयु बढ़ने के साथ हमारी त्वचा पर प्रकट होती हैं। आयु बढ़ने के साथ त्‍वचा को स्निग्ध और लचीली बनाये रखने के लिए जरूरी कोलाजेन और इलास्टिन कम होने लगता है। और इन त्‍वचा प्रोटीन की कमी के कारण हमारी त्वचा की नमी और लचीलापन कम होने लगता है। इसके अलावा निरंतर फेशियल मूवमेंट्स, सोने के तरीके और सन डैमेज ये सभी भी रिंकल्स के बनने में योगदान करते हैं।


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झुर्रियों के लक्षण

रिंकल्स को ऐसी महीन रेखाओं, गहरी झुर्रियों या लकीरों के रूप में जाना जाता है जो आयु बढ़ने के साथ हमारी त्वचा पर प्रकट होती हैं और अधिकांश ऐसे हिस्सों में पायी जाती हैं जो लगातार मूवमेंट में रहते हैं जैसे कि आंखें, मुंह और गर्दन के आसपास के हिस्से।

झुर्रियों के कारण

एजिंग- उम्र बढ़ने के साथ त्वचा अपनी स्निग्धता और लचीलापन खोने लगती है क्योंकि कोलेजेन और इलास्टिन का बनना कम हो जाता है। त्वचा अधिक पतली, सूखी होने लगती है जिससे यह ढीली हो जाती है और त्वचा पर फाइन लाइन्स या गहरी झुर्रियां बनना शुरू हो जाती हैं।

सन डैमेज- सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों का ज्‍यादा सामना करने से एजिंग की प्रक्रिया तेज होती है। सूरज का रेडिएशन त्वचा के टिश्यूज को नुकसान पहुंचता है कोलेजेन और एलास्टिन के फिर से बनने की प्रक्रिया पर असर पड़ता है और त्वचा अपना लचीलापन खो देती है। त्वचा डैमेज होने लगती है और प्रीमेच्योर रिंकल्स बनने लगते हैं।

स्मोकिंग - स्मोकिंग करने से त्वचा में कोलेजेन का बनना घट जाता है और प्रीमेच्योर एजिंग शुरू हो जाती है।

बार-बार फेशियल मूवमेंट्स, एक्सप्रेसन्स और स्लीपिंग पोश्चर्स भी महीन रेखाओं और रिंकल्स बनने में योगदान करते हैं। त्वचा हमारे सोने के दौरान सिकुड़ती है या हमारे चेहरे के साथ खिंचती है और जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे त्वचा अपना लचीलापन खोने लगती है और ये सिकुड़नें स्थायी बनने लगती हैं। इस तरह फाइन लाइन्स या गहरी झुर्रियां बन जाती हैं।

जोखिम के कारण

1. ड्राई त्वचा: ऐसे लोग जिनकी त्वचा कुदरती तौर पर ड्राई होती है उनके साथ प्रीमेच्योर एजिंग और रिंकल्स की समस्या ज्‍यादा होती है। नियमित मॉइश्चराईजिंग से फाइन लाइनों को बनने से रोका जा सकता है
2. स्मोकर्स के साथ समय से पहले एजिंग का जोखिम जुड़ा रहता है क्योंकि स्मोकिंग को त्वचा के कनेक्टिव टिश्यूज (कनेक्टिव टिश्यूज) बनने में बाधा माना जाता है और रिंकल्स आसानी से बनते हैं।
3. ऐसे लोग जिनको लम्बे वक्त तक धूप में रहना पड़ता है, उनकी त्वचा डैमेज हो जाने और प्रीमेच्योर एजिंग के कारण रिंकल्स बनने में तेजी आ जाती है।

मेडिकल ट्रीटमेंट

  • लगाने जाने वाली दवायें और क्रीमें जैसे कि विटामिन ए से तैयार होने वाली रेटिनॉयड्स रिंकल्स घटाने और एजिंग की त्वचा समस्याओं का ट्रीटमेंट करने में सहायक हैं। ट्रेटीनायन युक्त लगाने की क्रीमें भी रेटिनायड हैं। इन लगाने वाली दवाओं से इन्फ्लेमेशन और ड्राइता (ड्राइनेस) की समस्या हो सकती है।
  • ओवर-दि-काउंटर बिकने वाली रिंकल क्रीमें जिनमें रेटिनॉल, अल्फा हाइड्रॉक्सिल एसिड्स ("फ्रूट एसिड्स") और एन्टिऑक्सीडेंट्स हों उपयोग की जा सकती हैं हालांकि इनका असर मामूली होता है और रिंकल्स में बहुत हल्का सुधार देखा जा सकता है।

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कॉस्मेटिक/सर्जिकल ट्रीटमेंट

बोटोक्स या बोटोलिनम टॉक्सिन को उन मसल्स में इंजेक्ट किया जाता है, जो त्वचा की सतह पर लकीरें पैदा करती हैं। बोटोक्स मसल्स को सुन्न कर देता है और उनको सिकुड़ने नहीं देता जिससे त्वचा कम दिखने वाली लकीरों के साथ तनी हुई और मुलायम बनी रहती है। इसका असर कुछ महीनों तक तो रहता है लेकिन हमेशा नहीं रहता ट्रीटमेंट को दोहराने की जरूरत होती है। बोटोक्स को यदि सही तरह से इंजेक्ट किया जाये तो यह सुरक्षित है।

फिलर्स जैसे कि फैट, कोलाजेन और हाइलुरोनिक एसिड को त्वचा में वहां इंजेक्ट किया जाता है जहां रिंकल्स मौजूद हों। इससे वह हिस्सा फूल जाता है और त्वचा कम दिखने वाली लकीरों के साथ मुलायम और कसी हुई नजर आने लगती है। उस हिस्से में कुछ वक्त के लिये इन्फ्लेमेशन या स्वेलिंग (सूजन) का अहसास हो सकता है।


Image Source : Getty

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