
आजकल पीठ या रीढ़ की समस्याएं आम होती जा रही हैं। इस तरह रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्या में स्कोलियोसिस (Scoliosis) को भी शामिल किया जाता है। यह एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें रीढ़ की हड्डी साइड की ओर मुड़ जाती है, जिससे शरीर की आकृति असमान दिखाई देने लगती है। इस स्थिति में व्यक्ति को रोजाना के काम करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। स्कोलियोसिस शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है। इस लेख में श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के प्लूमोनोलॉजी सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर अनिमेष आर्या से जानते हैं कि क्या स्कोलियोसिस फेफड़ों के कार्य को भी प्रभावित कर सकती हैं?
स्कोलियोसिस और फेफड़ों के बीच क्या संबंध हो सकता है? - Connection Between Scoliosis and Lungs In Hindi
स्कोलियोसिस एक मेडिकल स्थिति है जिसमें व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी सामान्य रूप से 'S' या 'C' आकार में मुड़ जाती है। यह झुकाव दाएं या बाएं किसी भी दिशा में हो सकता है और इसके कारण व्यक्ति का पोश्चर खराब हो जाता है। यह समस्या बच्चों और किशोरों में अधिक पाई जाती है, विशेषकर तब जब वे तेजी से शारीरिक विकास कर रहे होते हैं। हालांकि यह वयस्कों में भी हो सकती है, विशेषकर किसी चोट, गठिया, या रीढ़ की अन्य समस्याओं के कारण स्कोलियोसिस हो सकता है। रीढ़ की हड्डी छाती (thorax) को आकार देती है। छाती के भीतर ही हमारे फेफड़े और दिल स्थित होते हैं। जब स्कोलियोसिस गंभीर होता है, तो यह छाती के आकार को बदल सकता है, जिससे फेफड़ों को पूरी तरह फैलने की जगह नहीं मिलती। यह स्थिति को Restrictive Lung Disease कहा जाता है।
स्कोलियोसिस से फेफड़ों पर पड़ने वाले प्रभाव - Can Scoliosis Affect Lungs In Hindi
फेफड़ों के कॉन्ट्रेक्शन में कमी
रीढ़ की टेढ़ी-मेढ़ी स्थिति के कारण छाती का फैलाव सीमित हो जाता है। इससे lung volume यानी फेफड़ों में हवा भरने की क्षमता घटती है। साथ ही, फेफड़े में सही तरह से कॉन्ट्रैक्शन (फैलना और सिकुड़ना) नहीं हो पाता है।
सांस लेने में तकलीफ
विशेष रूप से शारीरिक गतिविधि करते समय मरीज को जल्दी सांस फूलने लगती है क्योंकि फेफड़ों को पूरी तरह फैलने में बाधा आती है।
फेफड़ों में इंफेक्शन का जोखिम
फेफड़ों का सही तरीके से काम न करना बलगम (mucus) को बाहर निकालने की प्रक्रिया को धीमा करता है, जिससे निमोनिया और अन्य सांस संबंधी इंफेक्शन हो सकते हैं।
ऑक्सीजन का स्तर कम होना
स्कोलियोसिस से शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो सकता है (hypoxia), जिससे थकावट, चक्कर आना, और नींद में सांस रुकने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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इसमें मरीज को फिजिकल थैरेपी और व्यायाम, ब्रैस पहनना (Bracing) और सर्जरी (Spinal Fusion Surgery) की सलाह दी जा सकती है। स्कोलियोसिस शरीर के अन्य अंगों, विशेषकर फेफड़ों को प्रभावित कर सकती है। हल्के मामलों में ज्यादा समस्या नहीं होती है, लेकिन जब यह गंभीर रूप ले लेती है, तो सांस की तकलीफ, ऑक्सीजन की कमी और लाइफस्टाइल पर सीधा असर पड़ सकता है। ऐसे में मरीज को समय रहते उचित जांच और इलाज शुरु कराना चाहिए।
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