एक अध्ययन में पता चला है कि ठंडे वातावरण में रहने से स्वस्थ रहा जा सकता है। अध्ययन के अनुसार, वातावरण ब्राउन फैट को बढ़ने से रोकता है, जो गर्मी पैदा करने के लिए ऊर्जा खर्च करता है और इस तरह मधुमेह और मोटापे के खतरे को कम करता है।
अध्ययन के अनुसार भी ठंडे तापमान में जांघों तथा पेट में मौजूद अस्वस्थ सफेद वसा को भूरे वसा (ब्राउन फैट) में बदल सकता है, जोकि शरीर की गर्मी के लिए कैलोरी बर्न करता है। लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि मोटे होने पर इस प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
अधिकांश वयस्कों में जमा वसा, सफेद वसा के रूप में जाना जाता है। पहले ये माना जाता था कि, केवल बच्चों में ही, उन्हें गर्म रखने के लिए ब्राउन फैट होता है।
हालांकि पिछले अनुसंधानों से पता चला था कि वयस्कों को में भी कुछ ब्राउन फैट होता है। फिर हार्वर्ड के शोधकर्ताओं द्वारा 2012 में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ, जिसमें बताया गया कि वयस्कों में पाया जाना वाला ब्राउन फैट, शिशुओं के ब्राउन फैट से अलग होता है।
हार्वर्ड टीम ने बताया कि बच्चों में ब्राउन फैट मस्ल्स से उत्पन्न होता है, जबकि वयस्कों में ब्राउन फैट दरअसल "गहरा पीला" फैट होता है, जोकि वास्तव में सफेद चर्बी की ब्राउनिंग होता है।
वहीं एक दूसरे अध्ययन में भी पता चला कि परिवेश का तापमान इंसानों में ब्राउन फैट के बढ़ने या घटने को प्रभावित करता है। ठंडे वातावरण में ब्राउन फैट बढ़ने की संभावना कम होती है, जबकि गर्म वातावरण नुकसानदेह हो सकता है।
ऑस्ट्रेलिया के गारवन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च में एंडोक्राइनोलॉजिस्ट पद पर आसीन पॉल ली ने इस संदर्भ में बताया कि इस अध्ययन से पहले तक उन्हें यह नहीं मालूम था कि क्या ब्राउन फैट को मानव शरीर में बढ़ाया या घटाया जा सकता है? ली ने बताया कि हमें अध्ययन से उन्हें पता चला कि इंसुलीन की संवेदनशीलता और ब्राउन फैट भविष्य में ग्लूकोज के मेटाबॉलिज्म के उपचार में नए आयाम खोल सकता है। यह शोध जर्नल डायबिटीज में प्रकशित हुई थी।a
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