
मां का दूध बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ आहार होता है। यह शिशु के लिए अमृत का काम करता है। शिशु को जन्म से स्तनपान कराने से वे कम बीमार पड़ते हैं। स्तनपान रोगों और संक्रमणों का खतरा भी कम करता है। वे माताएं जो फिगर बिगड़ जाने के डर से शिशु को दूध नहीं पिलातीं उन्हें कई रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। वास्तव में तो गर्भावस्था के समय शरीर में जो वसा की अतिरिक्त मात्रा जमा हो जाती है, स्तन पान द्वारा वो कम हो जाती है। शिशु जन्म के बाद बच्चे को स्तनपान कराने से रक्तस्राव बंद होने में मदद मिलती है और प्रसव के बाद महिला की शारीरिक स्थिति भी सामान्य होने में सहायता मिलती है। स्तनपान कराने के लिए स्तन परिपूर्णता होना ज़रूरी होता है, लेकिन प्रसव के बाद कई बार महिलाओं को स्तन अतिरक्तता हो सकती है। तो चलिये जानते हैं कि स्तन अतिरक्तता व स्तन परिपूर्णता क्या है और इनका शिशु और माता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
स्तन परिपूर्णता
स्तन परिपूर्णता तब होती है जब मां के स्तनों से दूध आना शुरू होता है। आमतौर पर यह शिशु को जन्म देने के तीन से पांच दिनों के बाद होता है। जब मां के स्तन दूध से भरे हुए होते हैं तब वे सूजे हुए तथा बड़े लग सकते हैं। सामान्यतः स्तनों से दूध तब निकलने लगता है, जब शिशु को स्तनपान कराया जाता है या दूध को पंप किया जाता है।
स्तन अतिरक्तता
जब कभी-कभी शिशु मां के स्तनों से पूरा दूध नहीं पी पाता है, तो यह दूध सूखता नहीं है और इसकी अधिकता हो जाती है, जिस कारण कई समस्याएं भी हो सकती हैं। स्तन अतिरक्तता तब भी हो सकती है जब मां के स्तन दूध बनाना शुरू करते हैं। और जब मां का शरीर दूध की बड़ी राशि बनाता है, जिसे सुखआया नहीं जा सकता तो यह दुग्ध नलिकाओं पर दबाव डाल सकता है। जिस कारण दुग्ध नलिकाओं के माध्यम से दूध का निकलाना मुश्किल हो जाता है। दुग्ध नलिकाएं, दूध का निर्माण करने वाली ग्रंथियों (छोटी थैलियों), से स्तन तक दूध ले जाती हैं। स्तन अतिरक्तता तब भी हो जाती है जब शिशु दूध ठीक से नहीं पी रहा होत है, या आप उसे सही अंतराल से दूध नहीं पिला रही होती हैं। स्तन अतिरक्तता होने पर स्तनों में सूजन या दर्द हो सकता है या फिर उनका आकार अलग दिख सकता है। स्तन अतिरक्तता की स्थिति में शिशु को स्तनपान के लिए स्तनों का प्रयोग करने में मुश्किल हो सकती है।
स्तन अतिरक्तता का जोखिम बढाने वाले कारक
- स्तन अतिरक्तता का जोखिम बढाने वाले कारक
- स्तनपान कराने या पम्पिंग करते समय अपने स्तन पूरी तरह खाली ना होने पर।
- स्तनपान नाकराने पर, शिशु को स्तनों से दूध कम पिलाने पर या जल्दबाज़ी में स्तनपान कराने पर।
- मां के शरीर द्वारा बच्चे की जरूरत से ज्यादा दूध बनाने पर।
- बेहद चुस्त ब्रा या अन्य कपड़े पहने पर या स्तनों पर दबाव डालने पर।
स्तन अतिरक्तता, स्तनपान को कैसे प्रभावित करती है?
स्तनों में अतिरिक्त दूध की मात्रा को नहीं हटाया जाए तो दूध की आपूर्ति में कमी हो जाती है। इस कारण शिशु को स्तनों से दूध पीने में असुविधा होती है। जिस कारण निपल्स को भी नुकसान हो सकता है। यदि अतिरिक्त दूध को ना हटाया जाए तो स्तन में सूजन (स्तन संक्रमण) हो सकता है।
Read More Articles On Wonens Health In Hindi.
Read Next
इतना बुरा भी नहीं है मेनोपॉज
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version