पेट नहीं दिमाग से होता है भूख का अहसास

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के मशहूर मनोविज्ञान प्रोफेसर जेफरे ब्रून्सटॉर्म के अनुसार, भूख लगने का अहसास हमें पेट से नहीं बल्कि दिमाग से होता है।
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पेट नहीं दिमाग से होता है भूख का अहसास

विभिन्‍न प्रकार के व्‍यंजन

तेज भूख लगने पर हमें खाने की चीजें ही दिखाई देती हैं। हाल ही में किए गए एक अध्‍ययन के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के मशहूर मनोविज्ञान प्रोफेसर जेफरे ब्रून्सटॉर्म ने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि भूख का अहसास दिमाग को होता है।

 

एक साप्‍ताहिक पत्रिका में छपे अध्ययन के मुताबिक पाचन पर हमारी अल्पकालिक याद्दाश्त का गहरा असर पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि खाने के कुछ घंटों बाद लोग अपनी भूख का स्तर भोजन के अनुपात में याद नहीं रख पाते। इसके उलट उन्हें सामने रखे गए खाने की याद ज्यादा रहती है। यानी कोई व्‍यक्ति भूख के समय पर जो खाना खाता है, उसके मुकाबले उसने जो देखा है वह उसे ज्‍यादा याद रहता है।

 

जानकारों के मुताबिक भोजन करने का समय निश्‍चित होना चाहिए क्योंकि खाने के समय की अनिश्चितता का असर हमारे पिछले खाने की याद्दाश्त पर पड़ता है। इससे हमारी पाचन शक्ति भी प्रभावित होती है। ब्रून्सटॉर्म ने कहा कि भूख को खाद्य पदार्थ द्वारा शारीरिक विशेषताओं के आधार पर काबू में नहीं किया जा सकता। हमें भोजन की याददाश्त की निजी भूमिका को पहचानना होगा।

 

ब्रून्सटॉर्म का यह भी कहना है कि जैसा हम सोचते हैं, भूख और खाने का तालमेल उससे कहीं ज्यादा उलझा हुआ होता है। पूर्व में किए गए अध्ययनों से इस तरह के परिणाम भी सामने आए हैं कि कई बार खाने के प्रति हमारी धारणा शरीर में मौजूद खाने द्वारा होती हैं। अलग-अलग समय में समान कैलोरी वाले खाने के भूख संबंधी हार्मोन्स की प्रक्रिया अलग होती है। कई बार यह एकदम अलग होती है।

 

ऐसा देखा गया कि जब लोगों को यह कहकर कोई विशेष पेय दिया गया कि उसमें जबरदस्त कैलोरी है, तो उन्होंने पेट बहुत भरा हुआ महसूस किया, जबकि असल में वह लो-कैलोरी पेय था। अध्ययन के अनुसार हाल ही में खाये गये भोजन की स्मृति का हमारी आदतों पर जबरदस्त प्रभाव होता है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आप जो कुछ भी खाएं उसे कम से कम तीन सेकेंड तक नजदीक से देखें।



 

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