
एक समय था जब पीलिया सबसे खतरनाक बीमारी मानी जाती थी। पीलिया जिसे अंग्रेजी में जॉन्डिस कहा जाता है। रक्त में बिलीरुबिन का लेवल बढ़ जाने से पीलिया होता है। पीलिया से ज्यादा खतरनाक काला पीलिया होता है। इसे काला पीलिया इसलिए कहा जाता है क्योंकि जिस समय यह बीमारी फैलनी शुरू हुई थी तब इसका इलाज नहीं था, और ज्यादा गंभीर थी, इसलिए इसे काला पीलिया कहा गया। हरियाणा के हर्ष अस्पताल में दिल, छाती, गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. दया नंद का कहना है कि काला पीलिया हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के इंफेक्शन से होता है। जिस व्यक्ति को काला पीलिया होता है उसे भूख न लगना, थकान, बुखार जैसी परेशानियां होती हैं। इस रोग का पता डॉक्टर रक्त की जांच करके करके हैं। आज के इस लेख में डॉ. दया नंद से जानेंगे कि काला पीलिया के लक्षण, कारण और उपचार क्या हैं।
काला पीलिया क्या है?
क्रोनिक हेपेटाइटिस बी जब हो जाता है तब लिवर में कार्बन रहता है, तब काला पीलिया होता है। इससे लिवर डैमेज होने पर कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। इस बीमारी में मरीज का रंग भी काला पड़ने लगता है। इसलिए आम भाषा में लोग इसे काला पीलिया कहते हैं। लेकिन यह वैज्ञानिक नाम नहीं है। डॉक्टर पीलिया होने पर हेपेटाइटिस ए, बी और सी की जांच करते हैं। तब उसकी गंभीरता को देखते हुए उसे काला पीलिया कहा जाता है।
आमतौर पर काला पीलिया हेपेटाइटिस बी और सी की वजह से होता है। यह वायरस शरीर में ब्लड के जरिए जाते हैं। ब्लड में जाने पर यह लिवर को प्रभावित करते हैं। अगर इसकी पहचान शुरूआती लक्षणों को देखकर कर ली गई तो इलाज संभव हो जाता है। अगर सही समय पर ध्यान नहीं दिया तो कैंसर के साथ-साथ, किडनी की बीमारियों और चमड़ी की दिक्कतें भी हो सकती हैं इस बीमारी में जोड़ों में दर्द के लक्षण भी देखे जाते हैं।
डॉक्टर का कहना है कि शुरुआत स्तर में पीलिया होने पर उसका इलाज करने पर वह ठीक हो जाता है, लेकिन मरीजों में ये वायरस लिवर में रह जाते हैं और पैठ बना लेते हैं, उन मरीजों में लिवर सिकुड़ने लगता है और लिवर डैमेज होने लगता है।
काला पीलिया के लक्षण
काला पीलिया के लक्षण भी सामान्य पीलिया की तरह ही होते हैं। इन्फेक्शन के संक्रमण के 3 महीने के अंदर निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं।
- पेशेंट को बुखार
- थकान
- आंखें पीली होना
- पेशाब पीला होना
- नाखून पीला होना
- स्किन में खुजली होना
- भूख कम लगना
- जोड़ों में दर्द होना
- उल्टी होना
- दस्त होना
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होना
डॉक्टर दयानंद का कहना है कि हेपेटेटाइटिस सी के एक्यूट चरण प्रारंभिक होता है। इंफेक्शन होने के बाद के पहले 6 महीने को एक्युट हेपेटाइटिस कहा जाता है। इस चरण में मरीज को थकान, भूख कम लगना आदि परेशानियां होती हैं। अगर मरीज का इम्युन सिस्टम स्ट्रांग है तो यह लक्षण कुछ ही समय में ठीक हो जाते हैं। अगर इन लक्षणों का समय पर इलाज नहीं किया गया तो क्रोनिक हेपेटाइटिस सी की गंभीर स्थिति आती है। इस स्थिति में काला पीलिया होता है। इसमें लिवर अधिक डैमेज होता है। पीलिया बढ़ने पर सूजन होने लगती है। लिवर फेल होने पर पूरे शरीर में सूजन हो जाती है। उपरोक्त लक्षणों पर ध्यान देकर काला पीलिया से बचा जा सकता है।
कैसे फैलता है हेपेटाइटिस बी?
डॉ. दया नंद का कहना है कि काला पीलिया होने में हेपेटाइटिस बी और सी दोनों जिम्मेदार होते हैं, लेकिन हेपेटाइटिस बी के लक्षण ज्यादा दिखाई देते हैं। उन्होंने हेपेटाइटिस बी के फैलने के निम्न तरीके बताएं हैं-
- अगर मां हेपेटाइटिस बी से संक्रमित है तो उससे नवजात शिशु को भी काला पीलिया हो जाएगा।
- नशा करने के लिए एक ही सुई का उपयोग कई लोगों द्वारा करना।
- असुरक्षित यौन संबंध बनाने से।
- जो लोग टैटू बनवाते हैं उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिस निडल से वे टैटू बनवा रहे हैं वह सुरक्षित हो।
हेपेटाइटिस सी कैसे फैलता है?
- संक्रमित व्यक्ति के रक्त से स्वस्थ व्यक्ति में
- संक्रमित व्यक्ति को लगाई गई सुई स्वस्थ व्यक्ति को लगाना।
- अगर कोई व्यक्ति संक्रमित है और उसका ब्रश स्वस्थ व्यक्ति ने इस्तेमाल कर लिया है तब भी यह वायरस दूसरे व्यक्ति को संक्रमित कर सकते हैं। संक्रमित व्यक्ति के मसूडो़ं से अगर खून निकलता है और उसका ब्रश कोई और इस्तेमाल कर ले तब भी यह हेपेटाइटिस सी उस व्यक्ति में फैल सकता है।
काला पीलिया की पहचान डॉक्टर कैसे करते हैं?
डॉक्टर दयानंद का कहना है कि काला पीलिया की पहचान कर पाना थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि शुरुआती लक्षणों को देखने से यह बीमारी जल्दी पहचान में नहीं आती। इसके लक्षणों को देखने के बाद डॉक्टर रक्त की जांच करवाते हैं, जिसमें यह बीमारी पकड़ में आती है।
डॉ. दया नंद का कहना है कि जब पीलिया का मरीज हमारे पास आता है तब अगर उसके लक्षण पीलिया के हैं तो रक्त का जांच करवाते हैं। पीलिया लंबे समय से है तो लिवर की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड करते हैं। अधिक गंभीर पीलिया है तो लिवर की बायोप्सी भी की जाती है।
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काला पीलिया से बचाव
काला पीलिया से बचने के लिए डॉ. दयानंद ने निम्न उपाय बताए हैं-
- अगर कोई व्यक्ति किसी का रक्त का इस्तेमाल कर रहा है तो पहले उसकी जांच कर लें, कहीं रक्त में हेपेटाइटिस बी या सी के किटाणु तो नही हैं।
- गर्भवती महिला को डिलेवरी के समय ही दवा दी जाती है। महिला को हेपेटाइटिस बी का टीका लगाने की सलाह दी जाती है।
- एक ही सुई का प्रयोग कई लोग न करें। जब भी सुई का इस्तेमाल करें तो वह साफ हो, इसका ध्यान रखें और नई निडल हो।
- शारीरिक संबंध बनाते समय गर्भनिरोधकों का प्रयोग करें।
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वैक्सीन लगवाएं
हेपेटाइटिस बी और सी से बचने के लिए भारत में कई सालों से टीका लगवाया जा रहा है। भारत सरकार ने इस टीके को पोलियो के टीके के साथ लगवाना भी शुरू किया है। इस टीके को लगवाने के लिए 0-1-6 का नियम अपनाया जाता है।
0-1-6 नियम
0- पहला टीका शिशु को लगता है।
1-दूसरा टीका एक महीने बाद लगता है।
2-तीसरा टीका 6 महीने बाद लगता है।
डॉक्टर का कहना है कि अगर पीलिया खिलाफ लडने के लिए यह वैक्सीन पूरी तरह से प्रभावी है। अगर यह वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो टीका शरीर में एंटीबॉडी बना देता है जिससे वह बच जाता है। जब तक लिवर डैमेज नहीं होता तब तक पीलिया का इलाज आसान है।
काला पीलिया एक गंभीर बीमारी है। इससे बचने के लिए इसके लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है। पीलिया का टीका भी इसका बचाव है।
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