अगर नवजात शिशु रात में बार-बार जाग जाता है, उसे रात में नींद नहीं आती तो इसमें डरने वाली बात नहीं है। यह शिशुओं में सामान्य होने वाली समस्या है। इसे हम अनिद्रा भी कहते हैं। चाइल्ड स्पेशलिस्ट जॉय भादुरी ने कहा- बायोलॉजिकल क्लॉक के कारण से नवजात शिशु को रात को नींद नहीं आती है। जब बच्चा नौ माह मां के पेट में रहता है, उस वक्त जब मां सोती है (रात के समय) उस वक्त पेट में बच्चा जागता है, जब मां जागती है ( दिन के समय) तो शिशु सोता है। यह नौ माह होता है, जब तक बच्चा जन्म नहीं ले लेता। इसलिए जन्म के छह माह से एक साल तक बच्चों में यह आदत बनी रहती है। इसलिए शिशु जन्म लेने के बाद भी रात को जागते हैं और दिन में सोते हैं। ऐसी आदत कई बच्चों में होती है।
अनिद्रा है मुख्य वजह
शिशु रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि एक साल के शिशु को रात में नींद न आने या सुबह जल्दी नींद खुलने का संबंध अनिद्रा से है। ज्यादातर बच्चे बेड पर जाने के 15 से 20 मिनट के अंदर सो जाते हैं, लेकिन कुछ बच्चों को लगातार सोने में दिक्कत आती है। वो देर तक जागते रहते हैं, रोते-चिड़चिड़ाते हैं और कई बार थोड़ी देर में ही सोकर उठ जाते हैं और दोबारा सोना नहीं चाहते हैं। अगर यह लगातार होता है तो हो सकता है कि बच्चे को अनिद्रा की समस्या है। यह न सिर्फ शिशु के लिए, बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी परेशानी का कारण हो सकता है। शारीरिक तकलीफ कान दर्द, बुखार या दांत आने की वजह से भी शिशु को नींद आने में परेशानी हो सकती है।
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शिशुओं के रात में जागने का कारण
नई चीजों को सीखने के लिए उठ जाते हैं
चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. जोय ने बताया कि जब शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास होता है तो वो नई चीजें सीखने के लिए रात को उठ जाते हैं। इसके बाद शिशु को फिर नींद नहीं आती, जिससे सोने में परेशानी होती है। शिशु की तबीयत ठीक नहीं रहने के कारण भी उनके सोने का रूटीन खराब हो जाता है। वो दिन के समय सोएंगे, वहीं रात को उसे देर से नींद आती है।
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भूख लगने के कारण भी टूटती है नींद
जन्म के बाद लगभग 6 महीने तक शिशु के नींद का पैटर्न अलग-अलग रहता है। शिशुओं का स्लीपिंग पैटर्न हर हफ्ते बदलता रहता है। कभी बच्चे दिनभर में 17 घंटे सो सकते हैं, जिसमें से वो बस एक से दो घंटे की नींद लेकर बीच-बीच में जागते रहते हैं। शिशु के पेट छोटे होते हैं इसलिए नींद के दौरान बीच-बीच में दूध पीने की जरूरत होती है। पेट छोटे होने के कारण उन्हें भूख जल्दी-जल्दी लगती है और वो एक ही बार में लंबी नींद नहीं ले सकते हैं। अगर आपको शिशु को रात में जागकर दूध पीने की आदत है, तो इसे आप कुछ उपायों से ठीक कर सकती हैं। इसके अलावा व्यस्कों की तुलना में शिशुओं को कम-कम समय के अंतराल पर भूख लगती है।
शिशु की उम्र बढ़ने के साथ उसका स्लीप शेड्यूल भी बदलता है
शिशु की उम्र पर ही उसका स्लीप शेड्यूल निर्भर करता है। एक या दो महीने के शिशु रात को नींद के दौरान भूख लगने पर जागते हैं जबकि पांच या 6 महीने के शिशु पूरी रात सो सकते हैं। शिशु की उम्र बढ़ने के साथ उसका स्लीप शेड्यूल भी बदलता है। एक महीने का होने पर शिशु दिन में 14 घंटे की नींद लेना शुरू कर सकता है व वह रात में एक बार में लगभग चार या पांच घंटे तक लगातार सो सकता है। इसके बाद वो हर दो या तीन घंटे में दूध पीने के लिए उठता है।
डर के कारण भी नहीं आती है नींद
कभी-कभी शिशु की नींद खराब होने की वजह डर भी हो सकती है। बच्चे को अंधेरे से डर या अकेले सोने का डर उनकी नींद खराब कर सकता है। हो सकता है बच्चा अचानक किसी आवाज से डर जाए व जब उसकी नींद खुले, तो अपने आसपास किसी को न पाकर घबरा जाए। इस कारण बच्चे को नींद आने में परेशानी हो सकती है।
शिशुओं के लिए जरूरी है 14–17 घंटे की नींद
नवजात को 24 घंटे में 14–17 घंटे की नींद की जरूरी है। हालांकि, कुछ नवजात 18–19 घंटे भी सो सकते हैं। नवजात दूध पीने के लिए कुछ घंटे में जागते हैं। स्तनपान करने वाले बच्चे ज्यादा जाग सकते हैं, वहीं बोतल से दूध पीने वाले बच्चे कम उठते हैं। जो नवजात लंबे वक्त तक सोते हैं, उन्हें दूध पिलाने के लिए पूरे दिन में बीच-बीच में उठाना चाहिए। उन्हें रात में अधिक वक्त तक सोने देना ठीक है।
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अगर बच्चे की नींद न पूरी हो, तो आगे चलकर उसे हो सकती है ये समस्याएं
- ऊर्जा में कमी
- थकावट
- दिन के वक्त अधिक सोना
- व्यवहार में चिड़चिड़ापन
- मोटापा
- दिमागी विकास में परेशानी
- हृदय संबंधी समस्याएं
- डायबिटीज
अनिद्रा के कारण होने वाली समस्याएं
- चिड़चिड़ा हो जाना
- पूरे दिन रोना
- रात को सोने में परेशानी
- दिन में झपकी लेना या सोना
- सुबह उठने के बाद भी नींद में होना
बच्चों को अच्छी नींद दिलाने के उपाय
- अपने बच्चे को सुलाने का एक रूटीन बना लें। हर रोज आप अपने शिशु को उस तय वक्त पर ही सुलाएं।
- अपने बच्चे को सुलाने से पहले नहलाएं, लोरी सुनाएं, मालिश करें।
- शिशु को सुलाने से पहले उसके कपड़े बदलें, उसकी नैपी चेक करें और साथ ही उसके बेड की सफाई का ध्यान रखें।
- ध्यान रहे कमरे में कोई शोर न हो, रोशनी कम से कम होनी चाहिए, बच्चे के आसपास कोई फोन या गैजेट नहीं होने चाहिए।
- अगर बच्चा अंधेरे में सोने से डरता है तो हल्की रोशनी वाला नाइट बल्ब कमरे में लगा सकते हैं।
- उनके सोने की जगह पर ज्यादा चीजें न हो और अगर आप उन्हें कंबल या चादर ओढ़ा रही हैं, तो ध्यान रहे कि उनका मुंह न ढकें।
- अपने बच्चे को पीठ के बल सुलाएं।
इस तरह आप अपने बच्चे के स्लीप पैटर्न को समझकर उसके सोने जागने की आदतों में थोड़े बदलाव कर सकते हैं ताकि उसकी नींद भी पूरी हो जाए और वो स्वस्थ भी रहे।
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