ऑटिज्म बच्चे के व्यवहार में आने वाले परिवर्तन से संबंधित रोग है। बच्चे के जन्म के छह माह से एक वर्ष के भीतर ही इस बीमारी का पता लग जाता है कि बच्चा सामान्य व्यवहार कर रहा है या नहीं। शुरुआती दौर में अभिभावकों को बच्चे के कुछ लक्षणों पर गौर करना चाहिए। जैसे बच्चा छह महीने का हो जाने पर भी किलकारी भर रहा है या नहीं। एक वर्ष के बीच मुस्कुरा रहा है या नहीं या किसी बात पर विपरीत प्रतिक्रिया दे रहा है या नहीं। ऐसा कोई भी लक्षण नजर आने पर अभिभावक को तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। ऑटिज्म रोगी के लिए काफी सारे प्रोग्राम होते हैं जो उनमें सामाजिक,व्यवहारिक व भाषा की समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। कुछ कार्यक्रम रोगियों में व्यवहारिक समस्याओं को कम करने के साथ ही उन्हें नए गुण भी सीखाते हैं। इसके अलावा बच्चों को लोगों से बात करने के गुण सीखाए जाते हैं जिससे वे आसानी से सामाजिक स्थितियों का सामना कर सकें।
ऑटिज्म क्या है
ऑटिज्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था से ही दिखाई देने लगते है। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों से असामान्य होता है। उनका व्यवहार भी अन्य बच्चों से काफी अलग होता है। अकसर अभिभावकों के लिए बहुत कम उम्र में बच्चों में इस बीमारी के लक्षणों को पहचान पाना मुश्किल होता है। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है और उसे व्यवहार में कुछ असमान्यताएं दिखाई देती हैं तब अभिभावक इस पर गौर करते हैं।
ऑटिज्म के लक्षण
- बिल्कुल बात न कर पाना।
- गुनगुन करके बात करना या बात करते हुए संगीत निकलना।
- हमेशा गुमसुम बैठे रहना।
- बड़बड़ाना।
- रोबोटिक स्पीच।
- दूसरों की बातों को बेमतलब दोहराना।
- बिना एक्सप्रैशन वाली टोन के बात करना।
- आंखें मिलाकर बात न कर पाना।
- बात समझने में मुश्किल।
- शब्दों की बहुत कम समझ होना।
- रचनात्मक भाषा की कमी।
क्यों होते हैं बच्चे इसका शिकार
ऑटिज्म के वास्तविक कारण के बारे में फिलहाल जानकारी नहीं है। पर्यावरण या जेनेटिक प्रभाव, कोई भी इसका कारण हो सकता है। वैज्ञानिक इस संबंध में जन्म से पहले पर्यावरण में मौजूद रसायनों और किसी संक्रमण के प्रभाव में आने के प्रभावों का भी अध्ययन कर रहे हैं। शोधों के अनुसार बच्चे के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली कोई भी चीज ऑटिज्म का कारण बन सकती है। कुछ शोध प्रेग्नेंसी के दौरान मां में थायरॉएड हॉरमोन की कमी को भी कारण मानते हैं। इसके अतिरिक्त समय से पहले डिलीवरी होना। डिलीवरी के दौरान बच्चे को पूरी तरह से आक्सीजन न मिल पाना। गर्भावस्था में किसी बीमारी व पोषक तत्वों की कमी प्रमुख कारण है।
ऑटिज्म के मरीज को कैसे संभाले
अक्सर माता-पिता के लिए यह सबसे बड़ी मुश्किल होती है कि वे अपने ऑटिज्म ग्रस्त बच्चे को कैसे संभाले या उसके साथ कैसे व्यवहार करें। ऐसे में सबसे पहले तो माता-पिता को बच्चे का साथ छोड़ने की जगह उनके साथ प्यार व दुलार के साथ पेश आना चाहिए। बच्चे को संभालने के लिए उसके व्यवहार को परखें और समझें कि वो क्या कहना चाहता है। ऐसे लोग अपनी हर इच्छा को तीखे या दबे हुए व्यवहार से ही बताना चाहते हैं। ऑटिज्म के मरीज अंतर्मुखी होते हैं, यह समाज से नहीं जु़ड़ पाते। यदि जुड़ते भी हैं, तो उनका व्यवहार काफी अलग होता है। ऐसे लोग किसी भी बात को सुनने के बाद लगातार बोलते रहते हैं। इनके दैनिक दिनचर्या में अगर कोई बदलाव आ जाए, तो ये मानसिक रूप से काफी परेशान हो जाते हैं। ऑटिज्म से पीड़ित मरीजों को समुचित देखरेख की जरूरत होती है। ऑटिज्म आजीवन रहने वाली बीमारी है, जिसे दवाइयों से ठीक कर पाना थोड़ा मुश्किल है।
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