
कई लोगों का मानना है कि चीनी के विकल्प के तौर पर लिए जाने वाले कृत्रिम स्वीटनर के अनेक खतरे हैं। लेकिन, विशेषज्ञों की मानें तो ये सब बातें सच नहीं हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कृत्रिम मिठास पैदा करने वाली स्टेविया, एस्पार्टेम या जाइलिटोल जैसी चीजें सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाती।
विशेषज्ञों का कहना है कि हममें से अधिकतर लोग इन चीजों का कुछ रूपों में सैक्रीन बनने के जमाने से ही इस्तेमाल कर रहे हैं। सैक्रीन का अविष्कार एक सौ साल से भी पहले जर्मन केमिस्टों ने किया था। सैक्रिन को गरीबों की चीनी कहा जाता था। चीनी के इन विकल्पों के हानिकारक प्रभावों की बात भी करीब उतनी ही पुरानी है। कहा जाता है कि कृत्रिम मिठास का इस्तेमाल करने से डायबिटीज, कैंसर, उल्टी और चक्कर आने जैसी बीमारियां और अन्य कई परेशानियां हो सकती हैं। लेकिन अभी तक इन दावों में से कोई भी साबित नहीं हुआ है। जबकि आज कृत्रिम मिठासवाले स्वीटनरों का उत्पादन एक वैश्विक उद्योग का रूप ले चुका है।
आज छह हजार से भी ज्यादा उत्पादों में ये स्वीटनर पाये जाते हैं। जिनमें कई पेयों से लेकर केक, च्वुइंग गम और डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ शामिल हैं।
पिछले सप्ताह इंडियाना स्थित पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन में कहा गया कि कृत्रिम एस्पार्टेम वाले डायट ड्रिंक अपने चीनी युक्त संस्करण से ज्यादा स्वास्थ्यकर नहीं होते। और इनके सेवन से मोटापा, डायबिटीज और दिल की बीमारियां हो सकती हैं। इस अध्ययन के बाद एक बार फिर चीनी के कृत्रिम विकल्पों को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई।
वास्तव में चीनी के सभी विकल्प एक जैसे नहीं होते। इन्हें चार प्रमुख समूहों में बांटा जा सकता है। एस्पार्टेम या सैक्रीन जैसे कृत्रिम स्वीटनर रासायनिक यौगिकों से बनते हैं।
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