जवानी में भी हो सकता है अर्थराइटिस

अर्थराइटिस को पहले बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह कम उम्र के लोगों को भी सताने लगी है। जानकार मानते हैं कि खराब जीवनशैली के चलते अब कई बार 20 वर्ष के आयु के युवा भी इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं।
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जवानी में भी हो सकता है अर्थराइटिस


पहले जो बीमारियां केवल बुजुर्गों को होती थीं, वे अब जवानों को भी होने लगी हैं। जानकार कहते हैं कि बदलती जीवनशैली के चलते अब बीमारियां 15 साल पहले होने लगी हैं। बड़े शहरों में यह समस्‍या और अधिक फैल गई है। कुछ साल पहले तक अर्थराइटिस को केवल बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह समस्‍या युवाओं में भी होने लगी है।

 

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पहले 50 साल की उम्र के बाद ही घुटनों की समस्‍या होती थी, लेकिन अब 40 बरस में ही घुटने जवाब देने लगते हैं। कई बार तो 20 वर्ष के युवाओं को भी घुटने दर्द और अर्थराइटिस के अन्‍य लक्षण नजर आने लगते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार युवा पीढ़ी (30-40 आयु वर्ग) का एक प्रतिशत (100 में एक युवा) घुटनों की समस्या से जूझने लगा है। विशेषज्ञ अनियमित जीवनशैली को इसका एक बड़ा कारण मानते हैं।

दर्द को नजरअंदाज न करें

यदि थोड़ा आपको चलने के बाद ही आपके घुटने चलने के बाद ही आपके घुटनों में दर्द होने लगता है या कुर्सी में बैठ कर भी असहज महसूस कर रहे हैं, सीढ़ी चढ़ने, पालथी मार कर बैठने में दिक्कत होती है तो यह अर्थराइटिस का लक्षण हो सकता है। आपको फौरन किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। यदि आपके घुटनों में पहले चोट लग चुकी है, तो आपको अधिक सावधान रहने की जरूरत है।

अधिक व्यायाम न करें घातक


कई बार घुटनों में दर्द होने पर लोग अधिक एक्सरसाइज करना शुरू कर देते हैं, वे मानते हैं कि इससे उनकी समस्‍या का हल हो जाएगा। जबकि कई बार यह स्थिति उलटा असर कर सकती है। इससे आपके घुटनों पर अधिक असर पड़ता है। घुटनों में तकलीफ का अर्थ है कि उनमें चिकनाई (ल्यूब्रिकेशन) की कमी होने से हड्डियों के बीच ब्रीदिंग स्पेस घट गया है। ऐसे में अगर आप इनसे ज्यादा मेहनत लेते हैं तो कार्टिलेज (हड्डी के ऊपर चढ़ा हुआ रबरनुमा कवर) घिसने का डर रहता है। ऐसी स्थिति में घुटनों को आराम देने की जरूर होती है।

 

युवा भी नहीं हैं अछूते

घुटने के जोड़ शरीर की काइनेटिक चेन के मुख्य हिस्से की भूमिका निभाते हैं। ये कूल्हे और टखने को आपस में जोड़ने का काम करते हैं। अमूमन घुटनों की समस्या प्रौढ़ावस्था या बुढ़ापे में आती है, लेकिन अब युवा भी इससे अछूते नहीं हैं। सर गंगाराम हॉस्पिटल के डॉक्‍टर ओएन नेगी का कहना है कि इस बीमारी के साथ समस्‍या यह है कि आमतौर पर शुरुआत में इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते और न ही किसी प्रकार का तीव्र दर्द या कोई सूजन दिखाई देती है। थोड़ा सा दर्द और असहजता ही होती है। इस खतरे की घंटी को समझना जरूरी है।

 

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शीशे में देखें घुटने

घुटनों की समस्या पहचानने के लिए शीशे के सामने नंगे पैर खड़े होकर अपने घुटनों की तरफ ध्यान से देखें। पैरों में खिंचाव न लाएं। फिर एक मार्कर पेन से घुटनों के बीचोबीच और टखने के जोड़ के बीच बिंदु लगा कर एक रेखा खीचें। अगर यह लाइन पूरी तरह सीधी है तो समझिए घुटनों की कोई समस्या नहीं है। अगर किसी भी तरह की गड़बड़ है तो शीशे के सामने ही कुछ कदम चलने पर पता चल जाएगा। थोड़ा चलते ही यह रेखा थोड़ी टेढ़ी नजर आएगी।

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