किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। ये हमारे शरीर के अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है।
किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। ये हमारे शरीर के अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है। अगर किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होती है तो शरीर और खून में गंदगी जमा होने लगती है। खून में जमा इसी गंदगी को बाहर करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती है उसे डायलिसिस यानि अपोहन कहा जाता है। किडनी यानि गुर्दा शरीर में पानी और खनिज पदार्थों जैसे सोडियम, पोटैशियम, फास्फोरस और क्लोराइड आदि का सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है। जब किसी रोग या परेशानी के कारण किडनी अपना काम नहीं कर पाती है तो शरीर में यूरिया और क्रिएटिनिन जैसे अपशिष्ट पदार्थ जमा होने लगते हैं जिनकी वजह से किडनी तो प्रभावित होती ही है साथ ही साथ अन्य अंग भी प्रभावित होते हैं। आइये आपको बताते हैं डायलिसिस की प्रक्रिया क्या है और इसकी जरूरत कब पड़ती है।
डायलिसिस रक्त शोधन यानि ब्लड डिटॉक्सिफाई करने की एक प्रक्रिया है। गुर्दे हमारे शरीर में मौजूद गंदगी को बाहर निकालते हैं। शरीर के अंगों को ठीक से काम करने और शरीर में जरूरी पदार्थों का सामंजस्य बिठाने के लिए किडनी जीवनपर्यंत काम करती है। इसके इसी महत्वपूर्ण काम की वजह से प्रकृति ने किडनी को ऐसा बनाया है कि थोड़ी बहुत खराबी आने के बावजूद ये अपना काम करती रह सकती है और इंसान को खास परेशानी का अनुभव नहीं होता है। लेकिन जब यही किडनी 70-80 प्रतिशत तक खराब हो जाती है तब परेशानी के लक्षण दिखने लगते हैं और अगर यही किडनी 80-90 प्रतिशत तक खराब हो जाए तो डायलिसिस की जरूरत पड़ती है।
इसे भी पढ़ें : कम पानी पीने का नतीजा हो सकता है किडनी का संक्रमण
पेशाब हमारे शरीर के अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का महत्वपूर्ण जरिया है। किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होने पर कम मात्रा में पेशाब बनता है जिसकी वजह से शरीर में तमाम अपशिष्ट पदार्थ जमा होने लगते हैं। इसकी वजह से थकान, सूजन, उल्टी, मितली और सांस संबंधी परेशानियां होने लगती हैं। किडनी की डायलिसिस को हीमोडायलिसिस कहते हैं। इंसान के शरीर में दो किडनी होती हैं। आमतौर पर एक किडनी के पूरी तरह फेल हो जाने पर ही हीमोडायलिसिस की जरूरत पड़ती है।
गुर्दे की किसी बीमारी का या ऐसी किसी बीमारी का जिससे गुर्दे प्रभावित हो सकते हैं अगर लंबे समय तक इलाज नहीं किया जाता है तो इससे शरीर में गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं और गुर्दा फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। मरीज के दोनों गुर्दे फेल हो जाएं तो वो नहीं जी सकता इसलिए गुर्दों के पूरी तरह से फेल होने से पहले ही डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। अगर मरीर को एक्यूट किडनी फेल्योर हुआ है तो डायलिसिस की प्रक्रिया थोड़े समय के लिए होती है। आमतौर पर गुर्दों के ठीक हो जाने के बाद या नया गुर्दा लग जाने के बाद इस प्रक्रिया को बंद कर दिया जाता है। मगर यदि मरीज को क्रॉनिक किडनी फेल्योर हुआ है और गुर्दे इस स्थिति में नहीं हैं कि उन्हें बदला जा सके तो डायलिसिस की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है।
किडनी की गंभीर बीमारी यानि क्रॉनिक किडनी डिजीज होने पर किडनी जब शरीर में मौजूद अपशिष्ट पदार्थ क्रिएटिन को 15 प्रतिशत या उससे भी कम मात्रा में बाहर निकाल पाए तो डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। कई बार किडनी की समस्या के कारण शरीर में पानी इकट्ठा होने लगता है यानि फ्लूइड ओवरलोड होने लगता है तो भी मरीज को डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। शरीर में पोटैशियम की मात्रा बढ़ने पर भी डायलिसिस की जरूरत पड़ती है क्योंकि पोटैशियम की मात्रा बढ़ने पर दिल की गंभीर बीमारियों को खतरा बढ़ जाता है। इसी तरह शरीर में एसिड की मात्रा बढ़ने पर भी डायलिसिस की जरूरत पड़ती है।
इसे भी पढ़ें : मामूली समझ इन 3 चीजों को ना करें इग्नोर, हो सकती है किडनी फेल
हीमोडायलिसिस एक ऐसी प्रक्रिया है जो कई चरणों में संपन्न होती है। इसमें शरीर से मशीन के माध्यम से एक बार में 250 से 300 मिलीलीटर खून को बाहर निकालकर शुद्ध किया जाता है और फिर शरीर में वापस डाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया में डायलायजर नाम की एक चलनी का प्रयोग किया जाता है।
ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप
Read More Articles On Kidney Problems In Hindi
इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।