शहरीकरण और बढ़ते प्रदुषण के कारण देश में आधे से अधिक मरीज सांस की बीमारी से पीड़ित हैं। हाल ही में आई चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 50 फीसदी से अधिक मरीज सांस की बीमारी से पीड़ित हैं। दूसरे नम्बर पर पेट की बीमारी से पीड़ित मरीजों का नम्बर आता है। ये आंकड़े फाउंडेशन और सरकरी एजेंसी द्वारा किए गए सर्वे पर आधारित हैं।
सर्वे की रिपोर्ट के लिए देश के 880 शहरों, कस्बों के 13,250 फिजिशियन से बात की गई। इन सारे फिजिशियनों में से 7400 डॉक्टरों ने अपने मरीजों का पूरा रिकार्ड रखा था। इस रिकॉर्ड के आधार पर 2,04,912 मरीजों के रिकॉर्ड की जांच की गई। इस जांच में ही पता चला कि सांस की बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह लगातार बढ़ता वायु प्रदूषण है।
सभी मरीजों में मिले समान लक्षण
एक दिन में हमे दस हजार लीटर हवा की सांस लेने के लिए जरूरत पड़ती है। ऐसे में लगातार बढ़ रही प्रदुषित हवा लंग्स को बीमार कर देती है। सर्वे की रिपोर्ट में जिन मरीजों को शामिल किया गया था उनमें लक्षणों की समानता काफी देखने को मिली है। जबकि पेट की बीमारियों में ये समानता नहीं देखी गई।
लोगों को सतर्क करने के लिए
यह सर्वे में मई में आने वाले विश्व अस्थमा दिवस को नजर में रखते हुए लोगों को जागरुक करने के लिए किया गया है। इस अवसर पर एम्स के चेस्ट रोग विभाग के हेड डॉ. रनबीर गुलेरिया ने बताया कि बच्चों में अस्थमा अटैक तेजी से बढ़ रहा है और इसकी बड़ी वजह प्रदूषण ही सामने आ रहा है उन्होंने ये भी चेताया कि आउटडोर प्रदूषण के साथ इंडोर प्रदूषण लंगस को कमजोर करने, बच्चों में लंगस विकसित ना होने देने और अस्थमा का बड़ा कारण है। नवजात की मौत के बढ़ते मामले भी प्रदूषण के साथ जोड़े जा रहे हैं। हाल ही में आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 भारत के हैं। लिस्ट में देश की राजधानी दिल्ली का नम्बर सबसे ऊपर आता है।
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